ऋण एवं अग्रिम (Loans & Advances): किसी भी बैंक में सम्पति पक्ष की और की यह सबसे महत्वपूर्ण मद है क्योंकि बैंकों का सबसे प्रमुख कार्य उधार देना ही हैं। बैंक सामान्यतः नकद साख, अध विकर्ष व बिलों की कटौती के रूप में साख सुविधाएं उपलब्ध करवाते हैं। इस मद की जाँच करते समय अंकेक्षक को निम्न कदम उठाने चाहिए:-
Author: admin
सामाजिक अंकेक्षण की विधियों को निम्नलिखित दो वर्गों में रखा जा सकता है- उक्त के अतिरिक्त कम्पनी की आन्तरिक क्रियाओं का भी मापन किया जाता है। आन्तरिक क्रियाओं में उत्पाद की गुणवत्ता, मानव पर्यावरण, उत्पादकता तथा क्षमता का रख-रखाव आदि को सम्मिलित किया जाता है। इस विधि द्वारा प्रबन्धक यह जान सकते हैं कि सामाजिक आवश्यकताओं के सम्बन्ध में कम्पनी की गतिविधियों कितनी अनुकूल है तथा कम्पनी की योजनाजी में इस दृष्टिकोण से क्या परिवर्तन वाछनीय है।
किसी भी संस्था की गतिविधियों का समाज के विभिन्न घटकर्का पर भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रभाव पड़ता है। समाज के विभिन्न घटक और उन पर भिन्न-भिन्न प्रभाव का वर्णन इस प्रकार है- इसके विपरीत यदि कम्पनी वायु जल अथवा ध्वनि का प्रदूषण करती है तो सभी पड़ोसियों के स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है। अतः कम्पनी का अस्तित्व पड़ोस में जन-साधारण को कई प्रकार से प्रभावित करता है। collagestudy.com
राष्ट्रीयकृत बैंकों का नियमन बैंकिंग कम्पनी (उपक्रमों की अवाप्ति व हस्तांतरण) अधिनियम 1970 [The Banking Companies (Acquisition and transfer of undertaking) Act, 1970] द्वारा होता है। इस अधिनियम की धारा 10 (1) के अनुसार अंकेक्षण के सम्बन्ध में निम्न प्रावधान है –
कुछ समय तक सामाजिक लेखांकन और सामाजिक अंकेक्षण को एक ही समझा जाता रहा। इससे काफी भ्रम का वातावरण रहा डॉ.एल.एस. पोरवाल के अनुसार वास्तव में ये दोनों उसी प्रकार से भिन्न है, जिस प्रकार से लेखांकन और अंकेक्षण। सामाजिक लेखांकन में प्रतिष्ठान की सामाजिक निष्पत्ति का मापन किया जाता है, जबकि सामाजिक अंकेक्षण में सामाजिक निष्पत्ति सम्बन्धी लेखों की निष्पक्ष जाँच की जाती है। “निगम की सामाजिक निष्पत्ति पद निगम की क्रियाओं के समाज पर प्रभाव, प्रतिबिम्बित करता है। इसमें इसकी आर्थिक क्रियाओं तथा अन्य कार्यों का जीवन की गुणवत्ता में योगदान की निष्पत्ति को सम्मिलित किया जाता है।…
एक अच्छी निर्णय प्रक्रिया के कुछ आवश्यक तत्व होते हैं। निर्णयन की समीक्षा करते समय प्रबन्ध अंकेक्षक देखेगा कि निर्णयन में निम्नलिखित तत्व विद्यमान है या नहीं। सर्वोत्म विकल्प का चयन (Selection of the Best Alternative) : निर्णय कोक्रियान्वीत करने के लिए विभिन्न विकल्पों में से वैज्ञानिक आधार पर सर्वश्रेष्ठ विकल्प का किया जाना चाहिए। विकल्प के चयन में किसी प्रकार के पक्षपात से ग्रसित नहीं होना चाहिए व दबाव के आगे झुकना भी नहीं चाहिए। ऐसा निर्णय ही श्रेष्ठ निर्णय होता है।
किसी भी किया पर नियंत्रण करने व उसके सम्बन्ध में आवश्यक निर्णय लेने हेतु उस क्रिया से सम्बन्धित सभी सूचनाओं का उपलब्ध होना आवश्यक है। निमार्ण क्रियाओं को भली भांति संचालित करने का दायित्व प्रबन्धकों का होता है तथा प्रबन्धक अपने इस दायित्व का भली-ऑति निर्वाह तभी कर सकता है, जबकि उनके पास आवश्यक सभी सूचनाएँ उपलब्ध हो। अतः प्रबन्ध अंकेक्षक देखेगा कि सूचना प्रणाली सक्षम है या नहीं, प्रबन्धकों को निर्माण से संबंधित आवश्यक सूचनाएँ समय पर उपलब्ध होती है या नहीं, समय पर आवश्यक ऑकडे मिलते है या नहीं। निर्माण क्रियाओं के कुशल संचालन के लिए प्रबन्धकों को…
प्रक्रिया निर्माण का तात्पर्य है कि एक ही निर्माण कार्य को अनेक भागों में बांटकर उत्पादन करना। प्रक्रिया निर्माण में एक प्रक्रिया से उत्पन्न माल दूसरी प्रक्रिया के लिए कच्चे माल का कार्य करता है। निर्माण कार्य में सामान्यतः चार प्रकार की प्रक्रियाओं का प्रयोग होता है: कोई प्रक्रिया को उपक्रम स्वयं सम्पादित नहीं कर रहा है ती प्रवन्ध अंकेक्षक को देखना चाहिए कि क्या इस प्रक्रिया का सम्पादन संस्थान द्वारा किया जाना लाभप्रद रहेगा।प्रबन्ध अंकेक्षक को प्रक्रिया की सामविकता की भी जाँच करनी चाहिए कि क्या कोई प्रक्रिया बहुत अधिक पुरानी हो गई है तथा इसमें विकास व सुधार…
निर्माण कार्य सम्पन्न करने की अनेक विधियों हैं। इनमें से कौन सी विधि अपनायी जाये? इस बात का निर्धारण प्रबन्धको द्वारा उत्पाद की प्रकृति, उपलब्ध सुविधाओं व पूँजी आदि को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। प्रबन्ध अंकेक्षक इस सम्बंध में देखेगा कि प्रबन्धकों द्वारा सही विधि का चयन किया जाता है। यदि वह उपयुक्त समझे तो निर्माण विधि में परिवर्तन का सुझाव भी दे सकता है। निर्माण विधियों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है: स्पष्ट है कि निर्माण के लिए कौन सी विधि अपनाई जाए इस तथ्य का निर्धारण वस्तु की प्रकृति को ध्यान में रख कर ही…