भारतीय संविधान की निर्माण प्रक्रिया एवं स्त्रोत

भारतीय संविधान के प्रमुख स्रोत

भारतीय संविधान उधार का थैला

किसी भी राष्ट्र की शासन व्यवस्था का संचालन उस राष्ट्र के संविधानानुसार किया जाता है। भारत की शासन व्यवस्था का संचालन भी भारतीय संविधान के अनुसार किया जाता है। भारत के संविधान का निर्माण एक प्रतिनिधि सभा द्वारा सुनियोजित तरीके से किया गया था, जिसे संविधान निर्मात्री सभा कहा गया। भारत में इस संविधान सभा की प्रेरणा का स्त्रोत 17वीं और 18वीं शताब्दी की लोकतांत्रिक क्रान्तियाँ हैं। इंग्लैण्ड के समतावादियों तथा हेनरीमेन ने संविधान सभा के विचार का प्रसार किया, किन्तु सर्वप्रथम अमेरिका और फ्रान्स में इस विचार को क्रियान्वित किया गया।

भारत में संविधान सभा के सिद्धान्त के सर्वप्रथम दर्शन 1895 के ‘स्वराज विधेयक’ में होते हैं, जिसे तिलक के निर्देशन में तैयार किया गया था। 20वीं सदी में इस विचार की ओर सर्वप्रथम संकेत महात्मा गांधी ने किया। 1924 में पं. मोतीलाल नेहरू ने ब्रिटिश सरकार के सम्मुख संविधान सभा के निर्माण की माँग प्रस्तुत की।

दिसम्बर 1936 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में संविधान सभा के अर्थ और महत्व की व्याख्या की गई। 1937 व 1938 के अधिवेशनों में इस माँग को दोहराया गया। 1940 में पाकिस्तान प्रस्ताव के प्रतिपादन के लिए दो पृथक-पृथक संविधान सभाओं की माँग प्रारम्भ की गई।

अगस्त 1940 के प्रस्ताव में ब्रिटिश सरकार ने कहा कि “भारत का संविधान स्वभावतः स्वयं भारतवासी ही तैयार करेंगे।” इसके बाद 1942 के क्रिप्स मिशन के द्वारा ब्रिटेन ने स्पष्टतः स्वीकार किया कि भारत में एक निर्वाचित संविधान सभा का गठन होगा, जो युद्ध-के बाद भारत का संविधान तैयार करेगी। किन्तु भारतीयों ने क्रिप्स योजना को अस्वीकार-कर दिया। अन्त में 1946 की केबिनेट मिशन योजना में भारतीय संविधान सभा के प्रस्ताव को स्वीकार कर इसे व्यावहारिक रूप प्रदान कर दिया गया।

संविधान निर्माण

जुलाई 1946 में संविधान सभा के निर्वाचन हुए। संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन 19 दिसम्बर, 1946 को संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में प्रारम्भ हुआ। डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा को सर्वसम्मति से अस्थायी अध्यक्ष चुना गया। 11 दिसम्बर, 1946 को कांग्रेस में नेता डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष निर्वाचित हुए।

संविधान निर्माण की दिशा में सबसे पहला काम था- जवाहरलाल नेहरूद्वार प्रस्तुत ‘उद्देश्य प्रस्ताव’। यह प्रस्ताव 13 दिसम्बर, 1946 को प्रस्तुत किया गया। था। 13 दिसम्बर से 19 दिसम्बर, 1946 तक संविधान सभा ने कुल आठ दिन विचार-विमर्श किया। 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा में सदस्यों ने खड़े होकर सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को पास किया उ‌द्देश्य प्रस्ताव की स्वीकृति के बाद हो संविधान सभा ने संविधान निर्माण की समस्त के विभिन्न पहलुओं के सम्बन्ध में अनेक समितियाँ नियुक्त की।

प्रमुख समितियाँ निम्न थीं-

  • (1) संघ संविधान समिति;
  • (2) प्रान्तीय संविधान समिति;
  • (3) संघ शक्तिसमिति
  • (4) मल अधिकारों, अल्पसंख्यकों आदि से सम्बन्धित परामर्श समितिः
  • (5) प्रारूप समिति
  • (6) वार्ता समिति, आदि।

ब्रिटिश सरकार ने 3 जून, 1947 को एक योजना प्रकाशित की, जिसके अनुसार देश का विभाजन होना था। अक्टूबर 1947 को संविधान सभा के सचिवालय की परामर्श शाखा ने संविधान का पहला प्रारूप तैयार किया।

29 अगस्त, 1947 को संविधान सभा ने ‘प्रारूप समिति’ की नियुक्ति को। डॉ. अम्बेडकर अम्बेडकर इस समिति के अध्यक्ष चुने गए। ‘प्रारूप समिति’ ने भारत का जो प्रारूप संविधान तैयार किया, वह फरवरी 1948 में संविधान सभा के अध्यक्ष को सुपुर्द किया गया। 15 नवम्बर 1948 को प्रारूप संविधान पर धाराबार विचार प्रारम्भ हुआ । 8 जनवरी, 1949 तक संविधान सभा 67 अनुच्छेदों पर विचार कर चुकी थी, इसे प्रथम वाचन कहा जाता है। 16 नवम्बर 1949 को द्वितीय वाचन समाप्त हो गया। संविधान का तीसरा वाचन 26 नवम्बर, 1949 तक चला जबकि संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान को अंतिम रूप से पास किया गया। संविधान सभा के अंतिम दिन 24 जनवरी, 1950 को संविधान की तीन प्रतियाँ सभा पटल पर रखी गईं। 26 जनवरी, 1950 को उसका भारतीय गणराज्य की (अन्तरिम) संसद के रूप में आविर्भाव हुआ।

सम्पूर्ण संविधान निर्माण में 2 वर्ष 11 मास 8 दिन लगे। इस कार्य पर लगभग 64 लाख रुपए खर्च हुए। संविधान के प्रारूप पर भी 114 दिन चर्चा होती रही। अपने अंतिम रूप में संविधान में 395 अनुच्छेद 8 अनुसूचियाँ थीं। संविधान के कुछ अनुच्छेद 26 नवम्बर 1949 के दिन लागू कर दिए गए, पर शेष संविधान 26 जनवरी के दिन के ऐतिहासिक महत्व के कारण 26 जनवरी, 1950 ई. से लागू किये गए।

भारतीय संविधान के स्रोत हमारी शासन व्यवस्था का संचालन हमारे संविधान के अनुसार ही होता है। संविधान शासन व्यवस्था को आधार प्रदान करता है। संविधान राष्ट्र की जनता की आस्थाओं एवं मान्यताओं को अभिव्यक्त करता है। संविधान निर्माता अनेक स्थानों से संविधान निर्माण के लिए विषय-वस्तु का संकलन करते हैं। संविधान की विचारधारा, मान्यताएँ एवं दर्शन को कहीं न कहीं से प्रेरणा अवश्य मिलती है।

भारतीय संविधान को एक संविधान द्वारा सुनियोजित तरीके से एवं व्यवस्थित रूप से बनाया गया है।

भारतीय संविधान के निर्माण में मुख्य स्रोत

  • 1. भारतीय संविधान का मूल दस्तावेज-भारत का संविधान संविधान-निर्मात्री सभा द्वारा निर्मित लिखित आलेख है। मूल संविधान में 395 अनुच्छेद थे, जो 22 भागों में विभक्त थे तथा 9 अनुसूचियाँ थीं। इसमें 76वें संविधान संशोधन के पश्चात् कुल 444 अनुच्छेद हो गए हैं, जो 26 भागों में विभाजित हैं और 12 अनुसूचियाँ हैं। इस संविधान को स्वरूप की दृष्टि से विश्व का सबसे बड़ा संविधान कहा जाता है।
  • 2. संविधान सभा के वाद-विवाद-संविधान सभा के वाद-विवाद प्रतिवेदन के अध्ययन से संविधान निर्माताओं के ध्येयों एवं इच्छाओं का बोध होता है। संविधान सभा की कार्यवाही एवम् वाद-विवाद काफी विस्तृत हैं।
  • 3. पुराने संवैधानिक अधिनियम-हमारे संविधान पर संवैधानिक अधिनियमों; जैसे- 1858, 1892, 1909, 1919 तथा 1935 का अत्यधिक प्रभाव है, संविधान में अनेक बातें इन्हीं अधिनियमों से ली गई हैं। वास्तव में भारत का वर्तमान संविधान एक बहुत बड़े अंश का 1935 के भारत शासन अधिनियम पर आधारित है।
  • 4. संविधियाँ, अध्यादेश, नियम, विनिमय, आदेश आदि-संविधान के मूल प्रलेख के अतिरिक्त संविधियाँ अध्यादेश, नियम विनिमय आदेश आदि भी हमारे संविधान के कानूनी तत्व हैं। केन्द्रीय संसद ने अनेक कानून बनाए हैं, जो संविधान के अभिन्न भाग बन गए हैं। अधिकांश नियम और आदेश तथा विभिन्न प्रकार के अध्यादेश केन्द्रीय और राज्य कार्यपालिकाओं द्वारा बनाए जाते हैं।
  • 5. संवैधानिक संशोधन-सन् 1950 से अब तक भारतीय संविधान के 76 संशोधन हो चुके हैं और वे सब भारतीय संविधान के अभिन्न स्रोत हैं। इन संवैधानिक संशोधनों से संविधान की बुनियादी धारणा और स्वरूप में अंतर आया है।
  • 6. विश्व के अन्य संविधानों की प्रमुख बातें बनाम ‘उधार का थैला’-भारत के संविधान निर्माताओं ने अपने संविधान को व्यावहारिक एवं उत्तम संविधान बनाने के प्रयासों में विश्व के कई प्रमुख देशों के संविधानों का गहन अध्ययन कर, उनमें से अच्छी एवं सकारात्मक बातें ग्रहण कर भारतीय संविधान को तैयार किया है, जिसके कारण कई लोग इसे ‘कैंची एवं गोंद का प्रयोग’ तो कई इसे ‘उधार का थैला’ की संज्ञा देते हैं।

सर्वप्रथम ब्रिटिश संविधान ने हमारे संवैधानिक कलेवर का निर्माण किया है। हमने ब्रिटिश आदर्श की ‘संसदीय शासन प्रणाली’ अपनायी है, जिसके अन्तर्गत मंत्रिमण्डल सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है तथा राष्ट्रपति ब्रिटिश सम्राट की भांति औपचारिक प्रधान है। ब्रिटिश संसद की भाँति हमारी लोकसभा देश की राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बना दी गई हैं। अमेरिकी संविधान के बुनियादी सिद्धान्तों का प्रभाव भी हमारे संविधान पर दृष्टव्य है। संघात्मक शासन व्यवस्था, मौलिक अधिकारों का अध्याय, स्वतन्त्र और निष्पक्ष सर्वोच्च न्यायालय एवं न्यायिक पुनर्निरीक्षण का सिद्धान्त असंदिग्ध रूप से अमेरिकी संवैधानिक आदर्श पर ही अपनाए गए हैं।

फ्रांसीसी संविधान की मिसाल पर हमारे नए स्वतन्त्र लोकतन्त्र को गणतन बनाया गया। अन्य संघों की भाँति हमारे संविधान द्वारा भी संघ और राज्यों के ब शक्ति का विभाजन किया गया है। संविधान के इस अंश का निर्माण कनाडा के सर की प्रेरणा पर आधारित है, परन्तु हमारे संविधान में एक समवर्ती सूची और जोड़ दी है, जो आस्ट्रेलिया के संविधान की देन कही जा सकती है। आयरिश संविधान से है हमारे संविधान निर्माताओं ने राज्यनीति के निदेशक सिद्धान्तों की प्रेरणा ली है। ‘न्याय का समान संरक्षण’ का क्षेत्र परिभाषित करते हुए हमारे सर्वोच्च न्यायालय की व्याख उस विषय पर अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या से मेल खाती है। इस प्रका कभी-कभी विदेशी न्यायालयों के निर्णय भी हमारे न्यायालयों का मार्ग निर्देशन कसे हैं।

  • 7. न्यायिक निर्णय-भारतीय संविधान का एक प्रमुख स्त्रोत वे न्यायिकनिर्णय हैं, जो न्यायाधीशों ने समय-समय पर दिए हैं। न्यायाधीश संवैधानिक कानून की व्याख्या करते हैं और उनके निर्णय तब तक प्रभावी रहते हैं, जब तक कि न्यायपालिका स्वयं के द्वारा इस सम्बन्ध में कोई अन्य निर्णय न दे दे। भारत के सर्वोच न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा ऐसे अनेक न्यायिक निर्णय दिए गए हैं, जो हमारे देश के कानून का उसी प्रकार महत्वपूर्ण भाग है, जिस प्रकार संविधान के विभिन्न अनुच्छेद ।
  • 8. प्रथाएँ एवं अभि समय-संविधान के अलिखित भाग के रूप में प्रथाओं,अभिसमयों या परम्पराओं का विशिष्ट महत्व होता है। यद्यपि भारतीय संविधान लिखित है तथा इसमें अनेक परम्पराएँ विकसित हो गई हैं, जो हमारे संविधान के लिए एक स्रोत का काम करती हैं।9.

संवैधानिक टीकाएँ एवं संविधान विशेषज्ञों के विचार-भारतीय संविधानका एक अन्य महत्वपूर्ण स्त्रोत भारतीय संवैधानिक कानून पर लिखी गई टीकाएँ और ग्रन्थ हैं तथा संविधान विशेषज्ञों के विचार भी सम्मिलित हैं, जैसे-डी. डी. बसु द्वारा लिखित “कामेण्ट्री ऑन दि कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया” निंग्स की ‘सम केरेक्टरस्टिक्स ऑफ दि कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया’ प्रमुख हैं।

संक्षेप में, हमारे संविधान निर्माताओं ने कभी यह दावा नहीं किया था कि वे कोई मौलिक अद्भुत संविधान खोज निकालेंगे। वे तो अच्छा और काम चलाऊ संविधान ही बनाना चाहते थे। वे इस लक्ष्य में काफी सफल हुए, यह आरोप कि हमारा संविधान अन्य देशों के संविधानों का अन्धानुकरण है, संविधान के आंशिक अध्ययन पर आधारित है।

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