किसी उपक्रम में प्रबन्ध सूचना प्रणाली की स्थापना का एक विशिष्ट स्थान होता है। लिए विशेषज्ञों की सेवाएँ लेनी चाहिए। इसकी स्थापना हेतु प्रबन्ध के विभिन्न स्तरों केलिए सूचना की आवश्यकताओं की जानकारी करनी होती है तथा सूचनाओं के स्रोतों का निर्धारण किया जाता है। तत्पश्चात सूचनाओं का संग्रहण व विधियन (Processing) करके सम्बन्धित व्यक्तियों को प्रेषित किया है। प्रबन्ध सूचना प्रणाली की स्थापना के निम्नलिखित चरण हो सकते है:
- उद्देश्यों एवं प्रारम्भिकताओं का निर्धारण (Determination of Objects and Preliminaries): सूचना प्रणाली की स्थापना के पूर्व व्यवसाय के उद्देश्यों, योजनाओं व नीतिर्यो का अध्ययन आवश्यक है। इससे यह जात हो जायेगा कि किस प्रकार की सूचनाओं की आवश्यकता होगी, उनका क्या स्रोत होगा तथा किस स्तर पर प्रदान किया जायेगा? संस्था के संगठनात्मक संरचना का अध्ययन करना चाहिए ताकि संस्था में विभिन्न उत्तरदायी केन्द्रों, उनके अधिकार एवं कर्तव्यों की जानकारी होती रहे। विभिन्न स्तरों के अधिकारियों तथा उच्च प्रबंधक से इस सम्बन्ध में विस्तृत विचार कर उनका सहयोग प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। उनके सहयोग के बिना कोई सूचना प्रणाली सफल नहीं हो सकती है। उद्देश्यों एवं व्यवसाय की प्रकृति एवं आकार के अनुसार ही उद्देश्य एवं प्रारम्भिकर्ताओं को निश्चित करना चाहिए।
- नियोजन एवं रचना (Planning and Designing): यह कार्य निम्नलिखित बिन्दुओं के अध्ययन के पश्चात् ही प्राप्त हो सकता है:
- कार्यक्षेत्रों की पहचान (Recognition of Functional Areas): संगठनात्मक चार्ट की सहायता से विभिन्न कार्यक्षेत्रों, उत्तरदायित्व केन्द्रों, सत्ता के केन्द्रों की जानकारी चाहिए क्योंकि सूचनाएँ उन्हीं से एकत्रित की जायेंगी तथा उन्हेंसंशोधित कर आगे प्रेषित की जायेंगी।
- सूचना सम्बन्धी आवश्यकता का निर्धारण (Assessment of Information Needs): प्रबन्ध के विभिन्न स्तरों-उच्च, मध्यम तथा निम्न की सूचना सम्बन्धी आवश्यकताओं की जानकारी करनी चाहिए ताकि प्रबन्ध सूचना प्रणाली का उसी प्रकार से नियोजन किया जा सके। इस सम्बन्ध में बाहम पक्षों की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखना चाहिए, यथा सरकार, उपभोक्ता, अंशधारी आदि। प्रत्येक स्तर के प्रबन्ध के कार्यों का अध्ययन भी उपयोगी होगा क्योंकि उससे ऐसे प्रश्नों के उत्तर स्वतः ही मिल जायेंगे, यथा किस प्रकार के समको की आवश्यकता होगी? कब आवश्यकता होगी? किसे आवश्यकता होगी? तथा किस रूप में आवश्यकता होगी? इसके पश्चात् सूचनाएँ प्रेषित करने के अन्तरालों का भी निर्धारण करना चाहिए। इस प्रकार सूचना को प्राप्त करने वालों से इन सभी बातों पर विचार करके सूचना की प्रकृति, प्रकार तथा इसकी अवधि का निर्धारण करना उपयुक्ता होगा।
- स्रोतों का निर्धारण (Determination of Sources): सूचना सम्बन्धी आवश्यकता के निर्धारण के पश्चात् सूचना के स्रोतों का निर्धारण करना चाहिए। बहुत से व्यवसायों में,, सूचनाओं के संग्रहण तथा आन्तरिक सूचनाओं एवं समंकों का लेखा रखने के लिए डेटा बैंक रखे जाते हैं। इसके अतिरिक्त आन्तरिक स्रोतों में व्यवसाय के लेखे, फाइलै तथा अन्य प्रपत्र होते हैं तथा बाह्य स्रोतों में व्यावसायिक, सरकारी तथा गैर-सरकारी प्रकाशन आदि सम्मिलित किये जा सकते. है
- समंको के संग्रहण एवं विधियन की प्रणालियों का निर्धारण (Determination of Methods of Collection and Processing of Data): सूचना के विभिन्न स्रोतों के निर्धारण के पश्चात् समंकों के संग्रहण तथा विधियन की प्रणालियों का निर्धारण करना आवश्यक है। प्रारूप जिसमें सूचना संग्रहीत करनी है तथा समको की मात्रा आदि पर भी विचार करना चाहिए। यदि मशीनों की सहायता से समक संग्रहीत किये जाने हैं तो संकेताक्षरों के सम्बन्ध में निर्णय करना चाहिए।
- संवहन रीतियाँ (Methods of Communication): समंको के विश्लेषण के पश्चात उनको विभिन्न कार्यक्षेत्रों, उत्तरदायित्व केन्द्रों, प्रबन्ध के विभिन्न स्तरों को प्रेषित करने की विधियों का निर्धारण करना चाहिए। प्रायः सूचनाएँ व समक प्रतिवेदनों के द्वारा प्रेषित किये जाते हैं। अतः विभिन्न प्रकार के प्रतिवेदों तथा विचरणों की सूचियाँ तैयार करनी चाहिए। इसके साथ ही उनका प्रारूप, विषय सामग्री तथा उनकी अवधि व अन्तराल आदि का निर्धारण भी सोच विचार कर करना चाहिए। कई सूचनाएँ मौखिक अथवा चार्टी के द्वारा भी प्रस्तुत की जाती हैं। यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रतिवेदनों की संख्या कम से कम रखनी चाहिए परन्तु उसका निर्धारण संचालन क्रियाओं के सन्दर्भ में ही करना चाहिए।
- प्रबन्ध सूचना प्रणाली की संरचना (Designing of Management Information System): उद्देश्यों एवं प्रबन्ध की आवश्यकताओं के निर्धारण के पश्चात् सूचना पद्धति की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए। इसकी संरचना ऐसी विधि से होनी चाहिए कि वे सभी सूचनाएँ प्रदान की जा सकें जो प्रबन्ध को संस्था के समग्र लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक हो। इसमें प्रबन्धकों को उनके द्वारा चाही गई सूचना सतत् रूप से प्राप्त होती रहेगी तथा उन सभी व्यक्तियों को भी प्रेषित की जा सकेगी जिन्हें इनकी आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त प्रबन्ध टीम के सदस्यों की प्रकृति तथा उनकी पसन्दगी तथा कार्य करने के तरीकों का भी ध्यान रखना चाहिए। मात्र वही सूचनाएँ प्रेषित की जानी चाहिए जो निर्णयन हेतु आवश्यक हो। संक्षेप में कहा जा सकता है कि सूचना संवहन में अपवाद के सिद्धान्त का सदैव ध्यान रखना चाहिए।
- लाभ विश्लेषण (Cost Benefit Analysis): प्रवन्ध सूचना प्रणाली की संरचना सम्बन्धी समस्त लागत कारकों का निर्धारण करने के पश्चात् एक सम्पूर्ण सूचना प्रणाली अपनाने पर होने वाली लागत एवं लाभों का अनुमान लगाना चाहिए। लागों में प्रारंभिक, संचालन सम्बन्धी तथा अन्त में मूल्यांकन की लागत सम्मिलित होती हैं। समस्त लागतों तथा इस प्रणाली के अपनाने से अर्जित लाभों के माध्यम से विचार करना चाहिए। लागत अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि यह प्रणाली इससे प्राप्त होने वाले लाभों से अधिक खर्चीली है तो यह संस्था के संसाधनों पर अनावश्यक भार होगा।
- सूचना प्रणाली को लागू करना (Implementation of Information System): उक्त चरणों के पश्चात् सूचना प्रणाली को धीरे-धीरे पूर्ण निरन्तरता के आधार पर पूर्ण उत्साह से लागू किया जाना चाहिए। लागू करने का क्रम भी पहले ही निश्चित करना चाहिए तथा जिन व्यक्तियों का सूचना प्रणाली से सम्बन्ध है उन्हें इसके क्रियान्वयन हेतु प्रशिक्षण भी देना चाहिए। एक सूचना प्रणाली पुस्तिका जिसमें क्रियान्वयन सम्बन्धी विधि तथा नियम आदि निहित हो, तैयार करनी चाहिए। क्रियान्वयन के लिए योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति के साथ-साथ सूचना प्रणाली को प्रभावी बनाने हेतु संस्था के सभी व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त करना भी आवश्यक है।
- समीक्षा (Review) : इस प्रणाली के लागू करने के पश्चात् यह जानने के लिए किसूचना प्रणाली संस्था की सूचना सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति कर रही है अथवा नहीं, उसे योजनानुसार संचालित करके, उसका मूल्यांकन करना चाहिए। इस समीक्षा से प्रबन्ध को प्रणाली के संचालन में आने वाली कठिनाइयों तथा समस्याओं का पता लग जाता है। इसके अतिरिक्त इस प्रणाली में किसी भी स्तर की कमियाँ भी दृष्टि में आ जायेंगी और उसे अधिक प्रभावकारी बनाने हेतु सुधारात्मक कार्यवाही की जायेगी। तत्पश्चात् सूचना प्रणाली से प्राप्त होने वाले लाभों के सन्दर्भ में लागत का विश्लेषण भी करना चाहिए। समीक्षा के पश्चात् यदि यह ज्ञात हो कि सूचना प्रणाली सन्तोषजनक कार्य करने में सक्षम नहीं है तो उसके सुधार के लिए कुछ अतिरिक्त उपाय करने चाहिए अथवा बन्द करने की आवश्यक कार्यवाही करनी चाहिए।
प्रबन्ध सूचना प्रणाली की स्थापना पूरा हो गया