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Home»Accountancy»प्रबन्ध सूचना प्रणाली का अंकेक्षण
Accountancy

प्रबन्ध सूचना प्रणाली का अंकेक्षण

adminBy adminJune 11, 2025No Comments10 Mins Read
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प्रबन्ध सूचना प्रणाली का अंकेक्षण
प्रबन्ध सूचना प्रणाली का अंकेक्षण
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सूचना प्रणाली की समीक्षा के उद्देश्य (Objectives of Reviewing the Information System):

प्रबन्धकीय सूचना प्रणाली के अंकेक्षण का कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व यह ज्ञात करना आवश्यक है कि इस प्रणाली की समीक्षा क्यों की जा रही है तथा इससे अंकेक्षण के क्या उद्देश्य हैं। सामान्यतयाः निम्नांकित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्रवन्धकीय सूचना प्रणाली की समीक्षा की जाती है:

  1. यह जानने के लिए कि सभी सूचनाएं एकत्रित की गयी है:
  2. यह जात करने के लिए कि सूचनाएं समन्वित रूप से संग्रहित की गयी है तथा एकत्रीकरण में दोहराव नहीं है:
  3. यह जानने के लिए कि जो ऑकडे एकत्रित किये गये हैं वे शुद्ध हैं व उचित समय पर उनका संग्रहण किया गया है।
  4. यह जानने के लिए कि सूचनाओं के संग्रहण में पर्याप्त सतर्कता एवं गोपनीयता रखी गयी है:
  5. यह जानने के लिए कि समंकों व ऑकों का प्रबन्धकों द्वारा यथासमय उपयोग किया जाता है व उपयोग से पूर्व इनका भली-भांति परीक्षण कर लिया जाता है:
  6. समीक्षा से यह प्रकट होता है कि जो भी तथ्य प्रबन्धकों को प्रस्तुत किये जाते हैं, उन्हें आसानी से समझा जा सकता है एवं उन्हें उपयोग में लाया जा सकता है।
  7. प्रबन्ध सूचना प्रणाली की समीक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह पता लगाना होता है कि सूचना एकत्रित करने की लागत सूचनाओं से प्राप्त उपयोगिता से कहीं अधिक तो नहीं है।

अंकेक्षण, प्रक्रिया (Audit Procedure): प्रबन्धकीय सूचना प्रणाली की मितव्ययता व कार्यक्षमता की समीक्षा करने लिए प्रबन्ध अंकेक्षक को निम्न प्रक्रिया अपनानी चाहिए:

  1. विवरणों की प्राप्ति (Receiving The Statements) : सर्वप्रथम प्रबन्ध अंकेक्षक को सूचना प्रणाली से सम्बन्धित सभी विवरण प्राप्त कर लेने चाहिए। इन विवरणों का सम्बन्ध निम्नलिखित प्रतिवेदनों से हो सकता है:
    • उच्च प्रबन्ध को प्रस्तुत किये जाने वाले सामयिक प्रतिवेदन
    • क्रियात्मक सम्बन्ध को प्रस्तुत किये जाने वाले सामयिक प्रतिवेदन
    • निम्न प्रबंध को प्रस्तुत किये जाने वाले प्रतिवेदन
    • संस्था की दैनिक क्रियाओं यथा क्रय-विक्रय, विपणन, प्रशासन, अनुसंधान एवं विकास आदि क्षेत्रों से सम्बन्धित प्रतिवेदन
    • कर्मचारियों के कार्य दिवसों, उनके कार्य की प्रगति, दिये गये वेतन व छुट्टियों आदि से सम्बन्धित प्रतिवेदन :
    • श्रम निकासी व श्रम संगठनों की गतिविधियों से सम्बन्धित प्रतिवेदन :बाजार स्थिति व प्रतिस्पर्धियों की गतिविधि से सम्बन्धित प्रतिवेदन :
    • अन्य आन्तरिक व बहाय सूचनाओं से सम्बन्धित प्रतिवेदन।
  2. तकनीकी विशेषताओं का अध्ययन (Study of Technical Features) : प्रबन्ध अंकेक्षक को सूचना प्रणाली की समीक्षा करते समय व्यवसाय से संबन्धित निम्नलिखित तकनीकी तथ्यों के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए :
    • कर्मचारियों में कार्य व दायित्व का विभाजनः
    • प्रबन्धकों के अधिकार व कर्तव्यः
    • उत्पादन प्रक्रिया के सम्बन्ध में जानकारी:
    • उन वस्तुओं के बारे में जानकारी जिनका क्रय-विक्रय किया जाता है:
    • क्रय-विक्रय प्रक्रिया की जानकारी
    • वित्तीय एवं लागत लेखांकन के सम्बन्ध में जानकारी
    • आन्तरिक नियंत्रण पद्धति की जानकारीः
    • आन्तरिक अंकेक्षण पद्धति की,
    • कर्मचारियों के वेतन व कार्य का रिकार्ड रखने की प्रणाली के विषय में जानकारीः
    • सामग्री नियंत्रण पद्धति के विषय में जानकारी, आदि।
  3. सूचना मिश्रण का अंकेक्षण (Audit of Information Mixture): सूचना मिश्रण से तात्पर्य है कि भिन्न-भिन्न स्त्रोतों से प्राप्त विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को समन्वित कर उनसे यथास्थिति को ज्ञात करने से है। इस सम्बन्ध में प्रबन्ध अंकेक्षक देखेगा
    • सूचना प्राप्त करने के भिन्न भिन्न स्त्रोत हैं पर सभी सूचनाओं को केन्द्रीय आधार पर संग्रहित किया जाता है,
    • विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त सूचनाओं का इस प्रकार से समन्वय किया जाता है कि उनसे कोई सामान्य निष्कर्ष निकाला जा सके
    • विभिन्न समंकों व आकड़ों को इस प्रकार से एकीकृत किया गया है कि प्रबन्धकों को सभी सूचनाएं समय पर प्राप्त हो जाये
    • प्रत्येक सूचना व सूचना का प्रत्येक भाग सम्पूर्ण सूचना प्रणाली को उपयोगी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है:
    • विभिन्न स्त्रोतों से सूचनाएं एकत्रित कर उन्हें इस प्रकार संग्रहित किया जाता है कि वे उत्पादन, विपणन, प्रशासन, अनुसंधान, क्रय-विक्रय, विकास आदि सभी क्रियाओं हेतु उपयोगी सिद्ध हो सके।
  4. सूचना के स्वरूप का अंकेक्षण (Audit of Information Form): प्रबन्ध अंकेक्षक को देखना चाहिए कि प्रवन्धकों को जो भी सूचना प्रस्तुत की जाये वह किस रूप में दी जानी चाहिए। इसके लिए प्रबन्ध अंकेक्षक को कुछ सूचनाओं के नमूने देखकर निम्नलिखित बातों का पता लगाना चाहिए :
    • प्रबन्धकों को जो भी सूचना दी जाती है, वह इस रूप में दी जानी चाहिए कि प्रबन्धक शीघ्र ही सूचना का आशय समझ सके
    • सूचना न तो अत्यधिक विस्तृत हो और न अत्यधिक संक्षिप्त हो:
    • जो प्रबन्धक बहुत व्यस्त रहते हैं उन्हें मात्र महत्वपूर्ण सूचनाओं को रूप में प्रेषित की जाती है
    • सूचना से सम्बन्धित विषय सामग्री को तालिकाबद्ध रूप से दर्शाया चाहिए ताकि प्रत्येक व्यक्ति प्रतिवेदन का आवश्यक भाग पढ़ सके।
    • सूचना को सही रूप से के लिए सूचना के साथ पर्याप्तमात्रा में आंकडे व समंक दिये गये हैं
    • सूचना का विभिन्न उपशीर्षकों में विभाजन कर उसे बोधगम्य बना दिया जाता है
    • सूचना में आवश्यकतानुसार, चित्री, रेखाचित्री, चार्टी व सारणियों का प्रयोग किया जाता है। सूचना के स्वरूप के साथ ही प्रबन्ध अंकेक्षक को निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए.
      • क्या सूचना का दिया जाना वास्तव में आवश्यक था?
      • क्या इस सूचना को अन्य किसी सूचना के साथ मिलाया जा सकता था?
      • क्या सूचना का वास्तव में कोई उपयोग किया गया है?
      • क्या सूचना निर्णय लेने में सहायक सिद्ध हुई है?
      • क्या सूचना को और भी संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जा सकता था?
      • क्या सूचना के साथ प्रासंगिक आंकडे भी संलग्न किये गये हैं?
      • क्या सूचना का दोहराया जाना उचित था?
      • कहीं ऐसा तो नहीं कि आवश्यक सूचना प्रबन्धकों को उपलब्ध ही न करायी गयी हो?
  5. सूचना प्रवाह का अंकेक्षण (Audit of Information Flow): प्रबन्ध सूचना प्रणाली की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य यह होता है कि सूचनाओं का सभी दिशाओं में निर्वाध प्रवाह होता रहे व प्रबन्धको को सभी आवश्यक सूचनाएं सही समय पर उपलब्ध हो जाये। प्रबन्ध अंकेक्षक देखेगा कि सूचनाओं का उपर से नीचे व नीचे से उपर की और निर्वाध प्रवाह हो रहा है। सूचना के ऊपर की ओर प्रवाह से नियन्त्रण का कार्य सुगम हो जाता है, जबकि नीचे की ओर प्रवाह से अधीनस्थ कर्मचारियों में दायित्व की आवना जागृत होती है। प्रबन्ध अंकेक्षक देखेगा कि सूचनाओं का ऊपर-नीचे, नीचे-ऊपर व समानान्तर स्तरों पर निर्वाध रूप से प्रवाह हो रहा है तथा सूचनाओं के प्रवाह में कोई कठिनाई तो नहीं है। सूचनाएँ उसी रूप में समझी जा रही है जिस रूप में उन्हें प्रेषित किया गया था। प्रबन्ध अंकेक्षक यह भी देखेगा कि सूचनाओं का प्रवाह इस प्रकार का है कि यदि इस प्रवाह को किसी ग्राफ पेपर पर अंकित किया जाये तो किसी पिरामिड की आकृति उभरे। इससे तात्पर्य यह है कि प्रबन्धको को अति आवश्यक सूचनाएं अति संक्षिप्त व ठोस रूप में ही प्राप्त होनी चाहिए ताकि उनका अधिक समय नष्ट न हो।
  6. पर्याप्तता अंकेक्षण (Adequnacy Audit): प्रवन्ध अंकेक्षक को यह भी देखना होगा कि प्रबन्ध सूचना प्रणाली व्यवसाय के स्वभाव व संस्था की आकृति की दृष्टि से पर्याप्त है। प्रबन्धकों को सभी सूचनाएं यथासम्भव सही समय पर व सही रूप में मिल जाती है प्रबन्ध अंकेक्षक देखेगा कि व्यवसाय में निर्णयन की प्रकृति व निर्णय की आवृत्ति को देखते हुए सूचना प्रणाली पर्याप्त है। सूचना प्रणाली की आवश्यकता व पर्याप्तता का जान करने हेतु प्रबन्ध अंकेक्षक नवीन वैज्ञानिक विधियों, यथा संचालन अनुसन्धान, तन्त्र रचना व समंक प्राविधि आदि का सहारा ले सकता है।
  7. उपयुक्तता अंकेक्षण (Properiety Audit): प्रबन्ध अंकेक्षक देखेगा कि व्यवसाय में जो सूचना प्रणाली अपनायी गयी है वह वर्तमान परिस्थितियाँ, संस्था के व्यवसाय, आकार व प्रकृति आदि को देखते हुए उपयुक्त है। प्रबन्ध अंकेक्षक यह भी देखेगा कि सूचना प्रणाली व्यवसाय के उद्देश्यों की सम्पूर्ति करने तथा आधुनिक तकनीक अपनाए जाने की दृष्टि से उपयुक्त है।
  8. सूचना की लागत का अंकेक्षण (Audit of Cost of Information): वैसे लागत काअंकेक्षण करना प्रबन्ध अंकेक्षण का कार्य नहीं है परन्तु सूचना प्रणाली की समीक्षा करते समय प्रबन्ध अंकेक्षक को लागत तत्व पर भी ध्यान देना चाहिए। प्रत्येक सूचना को एकत्रित या संग्रहित कर उसे आवश्यक व्यक्ति तक पहुंचाने में कुछ न कुछ लागत अवश्य आती है। अतः सूचना प्रणाली पर किया जाने वाला व्यय सूचना प्रणाली से प्राप्त उपयोगिता से अधिक नहीं होना चाहिए, अर्थात सूचना प्रणाली पर व्यय सूचना प्रणाली के अभाव में होने वाली हानि से अधिक नहीं होना चाहिए। अन्य शब्दों में सूचना प्रणाली से प्राप्त उपयोगिता से उस पर किया जाने वाला व्यय अधिक नहीं होना चाहिए। सूचना प्रणाली लागू करने के लागत निर्णयों, अवसर के हाथ से निकल जाने. व प्रक्रिया के पूरा न से होने वाली हानियों से छुटकारा मिल जाता है तो दूसरी तरफ सूचनाओं के संग्रहण पर व्यय पड़ता है। प्रबन्ध अंकेक्षक सूचना प्रणाली से प्राप्त लाभव इस पर होने वाले व्ययों की तुलना कर, देखेगा कि सूचना प्रणाली किस स्तर पर अमितव्ययी है व इसमें सुधार की क्या गुंजाईश है।
  9. सूचना के प्रयोक्ताओं का अंकेक्षण (Audit of the User of Information): सूचना प्रणाली की सफलता व उपयोगिता सूचना प्रणाली का प्रयोग करने वालों व इसके की विधि पर निर्भर करती है। अगर सूचना प्रणाली का संचालन करने वाले योग्य व कार्यकुशल है तो प्रबन्धकों को यथा समय आवश्यक सूचनाएं उपलब्ध करवा सकेंगे अन्यथा नहीं। सूचना प्रणाली के सम्बन्ध में प्रबन्ध अंकेक्षक को निम्नांकित बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए :
    • क्या सूचना प्रणाली का संचालन योग्य व्यक्तियों के हाथों में है?
    • क्या ये लोग आवश्यक सूचना का चयन कर उसे प्रबन्धकों तक में सक्षम है?
    • क्या वे सूचना को प्रबन्धकों तक उचित रूप में पहुँचाने में सक्षम है?
    • क्या वे लोग सूचना का आवश्यक भाग छोड़ने का साहस रखते है?
    • क्या वे लोग सूचना को उचित शीर्षक व उप शीर्षकों में बांट है?
    • क्या वे सूचना का उचित रूप से सम्पादन कर सकते हैं, आदि
  10. विकास का अंकेक्षण (Audit of Development): विकास एक चलने वाली प्रक्रिया जो प्रत्येक क्षेत्र में होता रहता है। अतः सूचना प्रणाली भी विकास प्रक्रिया से अछूती कैसे रह सकती है। प्रबन्ध अंकेक्षक देखेगा कि सूचना प्रणाली में निरन्तर सुधार व विकास हो रहा है तथा इसके विकास के मार्ग में किसी प्रकार की बाधाएँ तो नहीं है। सूचना प्रणाली के विकास हेतु निम्नलिखित आवश्यक तथ्य हैं, जिनका प्रबन्ध अंकेक्षक ध्यान रखेगा:
    • विभिन्न स्तरों पर सूचना की आवश्यकता का निर्धारण कर दिया गाया है
    • सूचना प्रणाली पर प्रबन्धकों का यथोचित नियन्त्रण है।
    • सूचना प्रणाली के कारण प्रबन्धक कही यह तो नहीं सोच रहे हैं कि निर्णयन में उनका महत्व कम हो गया है:
    • प्रबन्धक निर्णयन में स्व-विवेक तथा उपलब्ध सूचनाओं का एक साथ प्रयोग कर रहे है
    • निर्णयन में प्रबन्धक सूचनाओं की अपेक्षा कर अपने स्वयं की पसन्द तो नहीं थोप रहे है:
    • सूचना एकत्रित कर समन्वय रिपोर्ट बनाने वालों व सूचना का उपयोग करने वार्ता में पर्याप्त समन्वय है:
    • सूचनाओं के संग्रहण में नवीन वैज्ञानिक विधियों का सहारा लिया जाता है:
    • प्रवन्धकों द्वारा सूचनाओं का भरपूर उपयोग किया जाता है।
  11. लचीलेपन की समीक्षा (Review of Flexibility): प्रबन्ध अंकेक्षक देखेगा कि प्रबन्धकीय सूचना प्रणाली लचीली है। सूचना प्रणाली गतिशील परिस्थितियों तथा बढती हुई आवश्यकताओं के अनुरूप है। प्रबन्ध अंकेक्षक देखेगा कि प्रवन्धकीय सूचना प्रणाली प्रबन्ध व प्रक्रिया के विभिन्न स्तरों के अनुरूप है तथा मानवीय एवं मशीनी दोनों ही साधनों के साथ तालमेल करने में सक्षम है। यदि सूचना प्रणाली लोचशील नहीं है तो परिस्थितियों में तनिक भी परिवर्तन होते ही सम्पूर्ण ढांचे को ही परिवर्तित करना होगा जो बहुत ही महंगा कार्य होगा। अतः सूचना प्रणाली लचीली होनी चाहिए तथा प्रबन्ध अंकेक्षक को इस तथ्य की जांच भली-भाँति कर लेनी चाहिए।
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