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Home»Collage Study»अवबोध की प्रक्रिया
Collage Study

अवबोध की प्रक्रिया

adminBy adminJune 13, 2025No Comments5 Mins Read
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अवबोध की प्रक्रिया
अवबोध की प्रक्रिया , अवबोध की प्रकृति एवं लक्षण
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अवबोध एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति वातावरण से सूचनाओं व उत्तेजकों को ग्रहण करके उनका चयन, संयोजन एवं विवर्धन करते हैं। अवबोध के द्वारा ही चयनित सूचनाओं, ज्ञान एवं तथ्यर्थों का विचारपूर्वक प्रविधियन करके उनसे निर्णय लेते हैं तथा व्यवहार करते हैं। अवबोध आपने बारे में दूसरों के बारे में तथा दैनिक जीवन अनुभव के बारे में धारणा निर्मित करने का ढंग है। यह वह पर्दा या फिल्टर है जिससे सूचनायें लोगों पर प्रभाव डालने के पूर्व होकर गुजरती है। अवबोधन के निर्मित होने की एक निश्चित प्रणाली है। इसमें अनेक उप-क्रियायें सम्मिलित होती हैं जो एक दूसरे से जुड़ी हुई है त्था एक दूसरे को प्रभावित करती है। इन उप-क्रियाओं पर वातावरण एवं अवबोधक के चिन्तन, दृष्टिकोण एवं अभिप्रेरण का भी प्रभाव पड़ता है।

सम्पूर्ण अवबोधन प्रक्रिया को विभिन्न तत्वों में बाँटा जा सकता है-

  1. बाह्य वातावरण – व्यक्ति का बाह्य वातावरण उसके आस-पास के परिवेश, भौतिक दशाओं, जलवायु, परिसर, अड़ोस-पड़ोस से मिलकर बनता है। इसके अतिरिक्त, समाज की संस्कृति, सामाजिक दशायें, मूल्य, परम्परायें, प्रथायें शिक्षा प्रणाली, नैतिक एवं धार्मिक मानदण्ड आदि घटक भी वातावरण का निर्माण करते है। जो व्यक्ति के चिन्तन एवं दृष्टिकोण के माध्यम से उसके अवबोध को प्रभावित करते है। वातावरण से ही प्रेरणायें, उत्तेजनायें एवं विभिन्न प्रकार के उद्दीपक उत्पन्न होते है।
  2. प्रेरणायें, उद्दीपन एवं सामना – उद्दीपन एवं प्रेरक घटक व्यक्ति के सोच व विचारों को प्रोत्साहित करते हैं एवं प्रेरणा देते हैं। जब एक व्यक्ति वातावरण से उत्पन्न होने वाले प्रेरकों या विभिन्न परिस्थितियों का सामना करता है तो उसके अवबोध की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। व्यक्ति का यह सामना उसकी तात्कालिक ऐन्द्रिक उत्तेजनाओं अथवा सम्पूर्ण भौतिक व सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण के साथ हो सकता है। उदाहरण के लिए, एक कर्मचारी को प्रत्येक दिन अपने सुपरवाइजर अथवा सम्पूर्ण औपचारिक संगठनात्मक वातावरण का सामना करना पड़ता है। इन उद्दीपकों में वस्तुएँ घटनाये तथा व्यक्ति शामिल हैं जो अवबोधक के विचारों की उत्प्रेरित करते हैं।
  3. अवबोध क्रियाविधि – अवबोध की क्रियाविधि का मुख्य भाग सूचनाओं के चयन, संयोजन, विवेचन एवं प्रतिपुष्टि से मिलकर बनता है। इनका संक्षेप में वर्णन निम्न प्रकार है-
    • चयन – वातावरण में अनेक चीजें एक साथ घटित हो रही होती है। किन्तु व्यक्ति सभी पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाता, न यह उसके लिए आवश्यक होता है अतः उसे सबसे पहले कुछ ज्यादा जस्नी चीजों पर ध्यान देना होता है। व्यक्ति चयनित चीजों पर ध्यान देकर ही अपने जीवन को प्रभावपूर्ण ढंग से चला सकता है।
    • संयोजन – व्यक्ति की अवबोध की प्रक्रिया में संयोजन से तात्पर्य ग्रहण की गई सूचनाओं को ‘अर्थपूर्ण सम्पूर्णता’ में बदलना है ताकि वह उपयोगी एवं मार्गदर्शक बन सके। इस क्रिया को संरूपण प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है। अर्थ संयोजन के कई ढंग है, जैसे समूहीकरण करके, सरलीकरण के ‌द्वारा अथवा रिक्त अन्तराल को पूरा करके।
    • व्याख्या करना – अवबोधक प्राप्त सूचना एवं सामग्री, जिसको उपयुक्त आधारों पर संगठित कर लिया जाता है, की व्याख्या करके सम्पूर्ण स्थिति से ‘अर्थ’ निकालता है। व्यक्ति अपने ढंग से चीजों की व्याख्या करता है इसमें वह अपनी धारणाओं का सहारा लेता है। विवेचन करते समय अवबोधक कुछ प्रतीकों, विशेषर्णा का प्रयोग करता है। वह सूचनाओं को विकृत भी कर सकता है तथा वह अपनी स्वयं की भावनाओं, मतों, संवेगों, विश्वासों से संचालित होकर निर्णय लेता है। वह अपने पक्षपातों के अनुरूप ही अपने अर्थ को प्रकट कर सकता है। यदि अवबोधक विवेकशील नहीं है तो वह सूचनाओं को विकृत करके गलत व्याख्या कर सकता है। व्याख्या करने की अवस्था में अवबोधक निर्णायक होने का प्रयास करता है। वह दूसरों के बारे में अच्छा-बुरा, सही-गलत, बुद्धिमान-मूर्ख आदि होने का निर्णय तुरन्त ले लेता है। अवबोधन में व्यक्ति न केवल सूचनाओं को विकृत कर लेता है वरन् कई बार वह उन सूचनाओं की उपेक्षा की कर लेता है जो उसके लिए अहितकर होती है। व्यक्ति के पक्षपात, व्यक्तिपरकता, निर्णयात्मक अभिवृत्ति आदि के कारण वह चीजों की सही व्याख्या नहीं कर पाता है। वह यथार्थ को न देखकर केवल अपनी जानात्मक पसन्द व वरीयताओं को अधिक महत्व देता है। यही कारण कि अवबोध में व्यक्ति वास्तविक स्थिति से दूर हट जाता है।
    • प्रतिपुष्टि – अगली उप क्रिया प्रतिपुष्टि है। किम्बल एवं गारमेजी लिखते हैं कि “अधिकांश बोधात्मक क्रियार्य उत्तेजनाएँ उत्पन्न करती हैं जिनके द्वारा बोधात्मक घटना की व्याख्या करने में सहायता मिलती है।” इसका एक उदाहरण गति-संवेदन प्रतिपुष्टि है। इसमें मॉस-पेशियों से संवेदी प्रभाव व सूचनायें प्रकट होने लगती हैं जिनसे एक श्रमिक उसके ‌द्वारा दोये जाने या माल की गति का अवबोध कर सकता हैं। एक अन्य उदाहरण मनोवैज्ञानिक प्रतिपुष्टि का है जो एक कर्मचारी के अवबोध को प्रभावित कर सकती है। यह है कर्मचारी के सुपरवाइजर ‌द्वारा भौहे टेढ़ी करना अथवा उसके ‌द्वारा सुर परिर्वतन करना अर्थात तेजी या नरमी से पेश आना। प्रतिपुष्टि के द्वारा प्राप्त सूचनाओं से व्यक्ति का अवबोध प्रभावित होता है।
  4. निर्णय एवं व्यवहार – अवबोध की अभिव्यक्ति व्यवहार एवं निर्णय के अन्र्तगत होती हैं यह व्यवहार बाहय या प्रकट अथवा गुप्त हो सकता है। वस्तुतः व्यक्ति का अवबोध एक व्यवहारात्मक घटना है तथा यह संगठनात्मक व्यवहार का एक महत्वपूर्ण भाग हैं अवबोध के फलस्वरूप, एक कर्मचारी तेजी से धीमे कार्य कर सकता है. यह उसका खुला व्यवहार है अथवा वह अपने मस्तिष्क में किसी अभिवृत्ति का निर्माण कर सकता है। यह उसका अप्रकट व्यवहार है।
  5. परिणाम – यह वातावरण से जुड़ा घटक है। अवबोध निर्मित हो जाने के बाद व्यक्ति को वातावरण में कार्य करना चाहिए ताकि वह एक निश्चित परिणाम प्राप्त कर सकें इसके अन्तर्गत यदि परिणाम उसके अवबोध के अनुकूल होता है तो उसे अपने निर्णय व व्यवहार को सुदृढ करने अथवा उसके पुर्नबलन की प्रेरणा मिलती है। किन्तु यदि परिणाम उसके अवबोधित निर्णय व व्यवहार के अनुकूल नहीं होता हैं तो वह दण्ड के लिए प्रेरित होता है। अवबोध का यह पहलू संगठनात्मक परिणाम से भी जुड़ा है।
  6. स्थिति एवं अवबोधक के लक्षण – अवबोध प्रणाली पर स्थिति के अनेक, घटकों का भी प्रभाव पड़ता है। संगठनात्मक स्थिति व भूमिका व्यक्ति के अवबोध को प्रभावित करती है। इसी प्रकार अवबोधक के अनेक लक्षण जैसे उसकी आवश्यकतायें, प्रेरक, स्व-धारणा विगत अनुभव मनोवैज्ञानिक दशा आदि भी सम्पूर्ण अवबोध प्रणाली को प्रभावित करते है।

अवबोध की प्रक्रिया विवेचनात्मक क्रिया है

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