उपरोक्त विवेचन तो विपणन अंकेक्षण के सैद्धान्तिक पहलू से सम्बन्धित है, निम्नलिखित विवेचन अंकेक्षण के व्यवहारिक पहलू अर्थात विक्रय एवं वितरण अंकेक्षण से सम्बन्धित है:
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लागत अंकेक्षण की कार्य योजना किसी संस्था में प्रथम बार लागत अंकेक्षण के रूप में नियुक्त होने पर लागत अंकेक्षण को सर्वप्रथम उस संस्था के सम्बन्ध में सामान्य जानकारी प्राप्त करनीचाहिए एवं उसकी उत्पादन निर्माणी प्रक्रिया का विस्तार से अध्ययन कर अपनी लागत अंकेक्षण की कार्ययोजना को तैयार कर लेना चाहिए। तत्पश्चात् संस्था का व्यावहारिक लागत अंकेक्षण करना चाहिए जिसके अन्तर्गत लागत के विभिन्न तत्वों एवं लागत लेखाके विभिन्न पहलुओं की विस्तृत जाँच करनी चाहिए। इस सम्बन्ध में लागत अंकेक्षक को निम्नलिखित बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देते हुए अंकेक्षण कार्य करना चाहिए : उपर्युक्त मुख्य बिन्दुओं का अंकेक्षण कार्य करने…
व्यवसाय व उद्द्योग की सामान्य गतिविधि के दौरान क्रय-प्रक्रिया निरन्तर जारी रहती है। क्रय किये गए माल व सेवाओं का महत्व किसी भी दशा में रोकड से कम नहीं है। अतः क्रय प्रक्रिया पर कठोर नियंत्रण की आवश्यकता है। किसी भी व्यापारी को निम्न तथ्यों के प्रति आश्वस्त होने के लिए क्रय प्रक्रिया को नियंत्रण में रखना पड़ता है
कम्पनी अधिनियम के लागत अंकेक्षण सम्बन्धी प्रावधान – उपर्युक्त प्रतिवेदन एवं सूचनाएँ तथा स्पष्टीकरण प्राप्त होने पर केन्द्रीय सरकार चाहे तो कम्पनी से अतिरिक्त सूचना, स्पष्टीकरण या जानकारी माँग सकती है, जिसे वह उचित समझे। [धारा 233B(8)]
प्रबन्ध का अर्थ संगठन के उद्देश्य प्राप्त करने के लिए दूसरों से कार्य लेना है। प्रवन्ध में कार्य का विभाजन विभिन्न क्रियात्मक क्षेत्रों यथा, विक्रय, उत्पादन, कार्मिक, क्रय, वित्तीय और लेखे तथा सचिवीय कार्य में किया जाता है। प्रबन्ध तीन स्तरीय होता -उच्च, मध्य व निम्न । प्रबन्ध के प्रत्येक कार्य की पाँच क्रियाएँ नियोजन, संगठन, स्टाफिंग, निर्देशन व नियंत्रण होती है। प्रबन्ध को प्रत्येक कार्य पूर्ण कार्यकुशलता व कार्यक्षमता से करना होता है। इसे सही समय पर सही निर्णय भी लेने होते हैं। लागत अंकेक्षण काफी सीमा तक प्रबन्ध के सहायक के रूप में कार्य करता है। लागत अंकेक्षण…
भारत में लागत अंकेक्षण कम्पनी अधिनियम की धारा 209 (1) (d) तथा धारा 233-B के प्रावधानों के अन्तर्गत किया जाता है। वैधानिक प्रावधानों के अन्तर्गत लागत अंकेक्षण के क्षेत्र में आने वाली कम्पनियाँ प्रतिवर्ष लागत अंकेक्षण करवाना अनिवार्य नहीं है परन्तु लागत लेखे रखना आवश्यक है। लागत अंकेक्षण करते समय अंकेक्षक के लिए यह सम्भव नहीं हो पाता है कि लागत खार्तों की सम्पूर्ण जाँच एवं सत्यापन हो पाये अतः वह कुछ चुनिंदा खातों का ही प्रमाणन व सत्यापन करता है। ऐसी स्थिति में आन्तरिक नियंत्रण की पर्याप्तता व सार्थकता निर्धारण हेतु लागत अंकेक्षक को वित्तीय व आन्तरिक अंकेक्षक के…
लागत अंकेक्षण से विभिन्न वर्गों के व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न लाभ प्राप्त होते हैं (1) कम्पनी को लाभ – कम्पनी से सम्बन्धित विभिन्न वर्ग यथा, विनियोजक, कम्पनी का प्रशासन, अंशधारी, श्रमिक तथा ऋणदाता सभी लागत से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं। लागत अंकेक्षण से कम्पनी के विभिन्न वर्गों को निम्नलिखित लाभ हैं- (2) वैधानिक वित्तीय अंकेक्षक को लाभ – लागत अंकेक्षण हेतु लागत से सम्बन्धित विभिन्न मदों की विस्तृत जाँच की जाती है तथा लाभ हानि खाते की विभिन्न मदों का भी सत्यापन किया जाता है जिससे वैधानिक वित्तीय अंकेक्षण के कार्य यथा- स्टॉक, सामग्री आदि का मूल्यांकन…
लागत लेखा एवं वित्तीय लेखा एक ही पेड़ की दो शाखाएँ हैं, परन्तु वित्तीय का प्रादुर्भाव लागत लेखे से पूर्व हुआ है। दोनों के प्रादुर्भाव के कारण अलग-अलग रहे हैं। यही स्थिति लागत अंकेक्षण व वित्तीय अंकेक्षण की है। दोनों अंकेक्षणों में प्रमुख अन्तर इस प्रकार है
सीखना मानव व्यवहार का एक महत्वपूर्ण पहलू है। सीखने की संज्ञानात्मक एवं सामाजिक विचारधाराएं अत्यन्त महत्वपूर्ण होती जा रही है किन्तु फिर भी सीखने की प्रक्रिया के अधिकतर सिद्धान्त सुगम व सक्रिय अनुबन्धन विचारधाराओं से विकसित हुए हैं। सीखने के कुछ प्रमुख सिद्धान्त –
अवबोध की क्रिया ‘व्यक्ति’ और ‘वास्तविकता’ के बीच निरन्तर चलती रहती है। अवबोध की क्रियाविधि के तीन प्रमुख घटक है चयन, संगठन तथा विवेचन। इन्हीं से व्यक्ति का व्यवहार प्रकट होता है। (1) चयन :- वातावरण में कार्यशील अनेक उद्दीपक एवं उत्तेजनाएँ निरन्तर प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित कर रही होती हैं। किन्तु वह इनमें से कुछ ही उद्दीपकों पर ध्यान देने के लिए उनका चयन करता है। व्यक्ति समस्त सूचनाओं को ग्रहण न करके केवल चयनित सूचनाओं को ही प्राप्त करता है। एक व्यक्ति एक निश्चित समय पर केवल कुछ उद्दीपकों का ही क्यों और कैसे चयन करता है, इस…