बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने भारत में अपने पैर स्थापित कर लिये हैं । इन्होंने विश्वव्यापीकरण को तीव्रता प्रदान करने में काफी मदद की है। भारत में ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैण्ड, इटली, द. कोरिया, नीदरलैण्ड, जापान आदि की कई बहु राष्ट्रीय कम्पनियों विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में संलग्न है। Ad · by Google * 🔥 Management Accounting Book For BBA B.Com & M.Com of Various Universities Buy on Amazon Ad · by Google * 🔥 Advanced Financial Management For M.Com. and other P.G. Classes Buy on Amazon Ad · by Google * 🔥 SELLING IS NOT CHEATING Sales is Strategy, Skills,…
Author: admin
वैश्वीकरण का तात्पर्य है – दुनिया को एक वैश्विक गाँव में बदलना, जहाँ हर देश अन्य देशों के साथ व्यापार, निवेश, तकनीक और संसाधनों का आदान-प्रदान कर सके। इसका उद्देश्य सीमाओं को लांघकर एक वैश्विक साझेदारी विकसित करना है। वैश्वीकरण के दोषों को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है- Ad · by Google * 🔥 Financial Management,12e Paperback – 24 February 2021 Buy on Amazon Ad · by Google * 🔥 Marketing Management, 16e Paperback – 1 April 2022 Buy on Amazon Ad · by Google * 🔥Financial Reporting and Analysis Paperback – 1 January 2020 Buy on Amazon…
भारत सरकार ने 1991 के बाद वैश्वीकरण की बाद उठाये विभिन्न कदम – आज का युग सूचना, तकनीक और संचार का युग है। देशों की सीमाएं अब केवल भौगोलिक मानचित्रों तक सीमित रह गई हैं। वस्तुएं, सेवाएं, पूंजी और विचार अब एक देश से दूसरे देश तक आसानी से पहुंचते हैं। यह पूरी प्रक्रिया वैश्वीकरण (Globalization) कहलाती है। वैश्वीकरण न केवल आर्थिक संबंधों को प्रभावित करता है, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं को भी जोड़ता है। भारत ने भी बीते कुछ दशकों में वैश्वीकरण की ओर कई अहम कदम उठाए हैं। Ad · by Google * 🔥 Financial Management,12e…
प्रतिकूल भुगतान संतुलन को दूर करने हेतु इस इकाई में पूर्व में उल्लेखित उपाय विकासशील देशों पर भी लागू होते है तथा आज इन उपायों को विकासशील देशों के संदर्भ में लग किया जा सकता है। विकासशील देशों के विशेष परिस्थितियों को देखते हुए कुछ विशेष उपाय किया जाना उचित होगा। कुछ प्रमुख उपायों का विवरण इस प्रकार है :- Ad · by Google * 🔥 Financial Management,12e Paperback – 24 February 2021 Buy on Amazon Ad · by Google * 🔥 Marketing Management, 16e Paperback – 1 April 2022 Buy on Amazon Ad · by Google * 🔥Financial Reporting…
विकासशील देशों के समक्ष विकास जनित दबाव के कारण कच्चामाल, मशीनरी, तकनीक इत्यादि के आयात की आवश्यकता रहती है। साथ ही तुलनात्मक रूप में निर्यात वृद्धि नहीं होती है। फलस्वरूप भुगतान संतुलन सदैव प्रतिकूल रहता है। विकासशील देशों में भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता के कारणों का यदि विश्लेषण किया जाय तो स्पष्ट होता है कि इन देशों में निर्याों की तुलना में आयात अधिक होते हैं। कारण विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये इन देशों में विकास एवं विनियोग कार्यक्रम चलाए जाते है। विकास हेतु इन देशों में बड़ी मात्रा में पूंजी एवं अन्य संसाधनों की जरूरत होती…
व्यापार की शर्तों निम्न बातों पर निर्भर होती है।(क) देश के निर्यात माल की माँग लोच निर्यात माल की माँग लोच कम पर व्यापार शर्ते अनुकूल होती हैं, लोच अधिक होने पर व्यापार शर्ते प्रतिकूल होती हैं।।(ख) देश के आयात माल की माँग लोच आयात माल की माँग लोच अधिक हो तो शर्ते अनुकूल होती हैं, लोच कम हो तो शर्ते प्रतिकूल होती है। 1(ग) देश के निर्यात माल की पूर्ति की लोच निर्यातों की पूर्ति-लोच कम होने ने पर व्यापार शर्ते प्रतिकूल तथा अधिक होने पर व्यापार शर्ते अनुकूल होंगी ।(घ) देश के आयात माल की पूर्ति दूसरे देश…
वैश्वीकरण के लाभ :- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि, तकनीकी नवाचार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, रोजगार सृजन, निवेश के नए अवसर और उपभोक्ताओं को बेहतर विकल्प जैसे अनेक लाभ मिलते हैं। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि वैश्वीकरण के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। विभिन्न देशों के बीच आयात-निर्यात सरल हुआ है, जिससे व्यवसायों को नए बाज़ार मिले हैं। तकनीकी सहयोग और मुक्त व्यापार समझौतों ने व्यापार की गति को तेज किया है। इससे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में स्थान मिला है। Ad · by Google * 🔥 Financial Management,12e Paperback – 24 February 2021 Buy on Amazon…
जब किसी देश का आयात, निर्यात से अधिक हो जाय तो भुगतान संतुलन प्रतिकूल माना जाता है। निर्यात में कमी विभिन्न कारणों से हो सकती है। जैसे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में देश का पिछड़ापन, देश में विदेश वस्तुओं के उत्पादन में कमी हो जाना देश के विकास के लिए विशेष आयात किया जाना इत्यादि । विदेशों में भेजा जाने वाला ब्याज, लाभांश, विविध सेवाओं की राशि भी यदि प्राप्तियों की तुलना में कम हो तो भुगतान संतुलन में प्रतिकूलता उत्पन्न हो जाती है। भुगतान संतुलन में प्रतिकूलता अल्पकालिक अथवा दीर्घकालीन हो सकती है।भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता दूर करने हेतु उपायकिसी देश…
भुगतान संतुलन की परिभाषा, महत्त्व एवं व्यापार संतुलन से तुलना करने के पश्चात् भुगतान संतुलन के अतंर्गत सम्मिलित की जाने वाली प्रमुख मदों की जानकारी होना आवश्यक है। भुगतान संतुलन का प्रारूप व्यापारिक स्थिति विवरण की तरह होता है। इसके क्रेडिट साइड में समस्त प्राप्तियों को दर्शाया जाता है जबकि डेबिट साइड में समस्त भुगतान दिखाए जाते है। डेबिट एवं क्रेडिट के अन्तर में भुगतान संतुलन की स्थिति को समझा जा सकता है। भुगतान संतुलन की प्रमुख मर्दों को दो भागों में विभाजित कर दर्शाया जाता है। प्रथम चालू खाता (Current Account) जिसे दृश्य एवं अदृश्य (Visible & invisible) मदें…
भुगतान संतुलन के तात्पर्य देश के सम्पूर्ण आयातों, निर्यातों एवं अन्य सेवाओं के बाजार मूल्य के विवरण से लगाया जाता है। इसमें देश की विदेशी मुद्रा की लेनदारियों एवं देनदारियों का विवरण रहता है। लेनदारियों एवं देनदारियों के अन्तर को भुगतान संतुलन कहा जाता है। इस प्रकार भुगतान संतुलन किसी देश के अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवहारों का विवरण होता है। Ad · by Google * 🔥 Financial Management,12e Paperback – 24 February 2021 Buy on Amazon Ad · by Google * 🔥 Marketing Management, 16e Paperback – 1 April 2022 Buy on Amazon Ad · by Google * 🔥Financial Reporting and…