मुद्राकोष मुख्य रूप से निम्न कार्य करता है-
- कोष से ऋण प्राप्त करना – सदस्य देश कोष से ऋण की सुविधा ले सकते हैं। जब किसी देश में भुगतान, सन्तुलन में अस्थायी रूप से विषमता उत्पन्न हो जाती है तो वह कोष से धन उधार ले सकता है। में सभी सदस्य देशों की मुद्राएं स्वतन्त्र हैं और उनकी विनिमय दरों में बाजार भाव से उतार-चढ़ाव हो रहे हैं। कोष के द्वारा ऋण देने का कार्य केन्द्रीय बैंक के माध्यम से ही किया जाता है। मुद्राकोष द्वारा ऋण देने की निम्न शर्ते है-
- मुद्राकोष द्वारा प्रदत्त सुविधाएँ – कोष मुख्य रूप से निम्न प्रकार की सहायता देता है-?
- क्षतिपूरक वित्तीय सहायता – इस योजना के अन्तर्गत उन देशों को सामान्य व्यवस्था से अधिक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है जो मुख्य रूप से प्राथमिक पदार्थों का उत्पादन एवं निर्यात करते हैं।
- तेल के लिये सुविधा – मुद्राकोष व 17 ऋणदाता देशों के बीच 1974 में एक करार हुआ जिसके अन्तर्गत वे देश, जो तेल की कीमतों द्वारा अत्यधिक प्रभावित हुए हैं, उनको ऋण दिया जा सकता था ।
- पूरक वित्त सुविधा – मुद्राकोष और 14 ऋणदाता देशों के मध्य हुआ इस करार के अनुसार 1979 से मुद्राकोष ऐसे देशों को पूरक वित्त सहायता दे सकता है जिनकी आवश्यकता उनके साधारण कोटे से अधिक है और जो भुगतान शेष की असाध्य कठिनाई का सामना कर रहे हैं।
- संरचनात्मक समायोजन सुविधा – यह सुविधा मार्च, 1966 में प्रारम्भ की गयी । इसका उद्देश्य ऐसे सदस्य देशों को, जो भुगतान शेष की गंभीर स्थिति से गुजर रहे हो और जिन्हें संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रम की अत्यन्त आवश्यकता है, रियायती दर पर वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इसके अन्तर्गत लगभग 27 बिलियन एस. डी. आर. के संसाधन उपलब्ध हैं। वित्तीय सहायता की ब्याज दर 0.5 प्रतिशत वार्षिक है । कर्जे का भुगतान कर्जा लेने के 5) वर्ष अथवा 10 वर्ष बाद प्रारम्भ होता है।
- दुर्लभ मुद्रा – जिन देशों की मुद्रा की मॉग अधिक की जाती है, कोष उन्हें ‘दुर्लभ मुद्रा’ कर सकता है। कोष ऐसी मुद्राओं को सदस्य देशों में उनकी आवश्यकतानुसार बॉट देता है। उसकी को बढ़ाने का प्रयत्न भी करता है एवं कोष उससे वह मुद्रा खरीद सकता है एवं उधार भी ले है। दुर्लभ मुद्रा में लेन देन पर सदस्य देश विनिमय नियन्त्रण भी कर सकते हैं।
- विनिमय दरों का निर्धारण – प्रारम्भ में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का मुख्य कार्य सभी सदस्य देशों की विनिमय दरों का नियंत्रण करना था। जब कोई देश कोष का सदस्य बनता था तो उसकी मुद्रा का मूल्य स्वर्ण तथा डालर में निर्धारित किया जाता था। एक बार दर निर्धारित होने के बाद प्रत्येक सदस्य देश से यह आशा की जाती थी कि अपनी समता दर एक निर्धारित प्रतिशत से अधिक बढ़ने या कम नहीं होने देगा। 1971 के ‘स्मिथ सोनियन’ नियम समझौते के अन्तर्गत सदस्य देशों द्वारा विनिमय की निर्धारित दरों में 2.25 प्रतिशत तक का परिवर्तन कोष द्वारा स्वीकार्य होगा। इसके पश्चात् भी विनिमय दरों को स्थिर रखनी सम्भव नहीं हुआ और सभी मुख्य देशों ने स्वतंत्र विनिमय दरों को अपना. लिया । वर्तमान में प्रत्येक सदस्य देश की मुद्रा का इकाई मूल्य एस. डी. आर. में निश्चित किया जाता है एवं विनिमय दरें अब बाजार में माँग की पूर्ति के अनुसार काम या अधिक हो सकती है।
- पुनर्कय – जब कोई देश कोष से उधार लेता है तो अपनी मुद्रा देता है और दूसरे देश की मुद्रा खरीदता है। इस प्रकार ऋणी देश के मौद्रिक भण्डार कोष के पास बढ़ जाते हैं। इन ऋणों को चुकाना पुनक्रय कहलाता है, क्योंकि ऋणी देश के लिए आवश्यक है किः वह अपनी बेधी हुई मुद्रा की 5 वर्ष के भीतर पुनः खरीद ले ।
- प्राविधिक सहायता – वित्तीय सहायता के अतिरिक्त कोष अपने सदस्यों को तकनीकी सहायता भी प्रदान करता है। इस कार्य के लिए वह विभिन्न देशों में विशेषज्ञ दल भेजता है। तकनीकी सहायता सदस्य देशों की मौद्रिक, विनिमय तथा प्रशुल्क नीतियों का निर्धारण व क्रियान्वयन केन्द्रीय बैंकिंग विधान के निर्माण, साख तथा बैंकिंग व्यवस्था में सुधार, वित्तीय तथा भुगतान सन्तुलन आदि विषयों से सम्बन्धित रही है। इन कार्यों के लिए मुद्राकोष के विशेषज्ञों को एक सप्ताह से लेकर एक वर्ष तक सम्बन्धित देशों में रहना पड़ा है।
- प्रशिक्षण कार्यक्रम – 1951 से मुद्राकोष सदस्य देशों के प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था कर रहा है। इन कार्यक्रमों में अन्तर्राष्ट्रीय भुगतान, आर्थिक विकास, अंक संकलन तथा वित्तीय विश्लेषण आदि विषयों का प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण अवधि प्रायः 6 माह से 12 माह की होती है। कोष की प्रशिक्षण क्रियाओं का विस्तार एवं विकास करने के लिए 1963 में एक प्रशिक्षणालय स्थापित किया गया है। यह विभिन्न भाषाओं में वित्तीय नीति विश्लेषण सम्बन्धी प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करता है।
- प्रकाशन – अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा अपनी वार्षिक रिपोर्ट, भुगतान सन्तुलन (वार्षिक), अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय समाचार, सर्वेक्षण (साप्ताहिक) आदि प्रकाशिक किये जाते हैं।
- पर्यावरण के प्रति जागरुकता – यह मुद्रा कोष का नवीनतम कार्य है। कोष आर्थिक नीतियों के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान में रखकर 1991 से महत्वपूर्ण दिशा निर्देश जारी किए एवं ऐसे कार्यों के लिए ऋण देने से इन्कार किया जिनसे पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इस सम्बन्ध में कोष ने अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से सम्पर्क किया जो पर्यावरण के क्षेत्र में शोध कार्य कर रही है जिससे पर्यावरण के प्रति अधिक जागरुकता उत्पन्न की जा सके ।
मुद्राकोष के वर्जित कार्य – मुद्राकोष निम्नलिखित कार्य नहीं कर सकता –
- मुद्राकोष निजी क्षेत्र की संस्थाओं अथवा व्यक्तियों के साथ व्यवसाय नहीं कर सकता,
- कोष सदस्य राष्ट्रों की भीतरी अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, केवल आवश्यक परामर्श दे सकता है।