भारत सरकार ने 1991 के बाद वैश्वीकरण की बाद उठाये विभिन्न कदम –
आज का युग सूचना, तकनीक और संचार का युग है। देशों की सीमाएं अब केवल भौगोलिक मानचित्रों तक सीमित रह गई हैं। वस्तुएं, सेवाएं, पूंजी और विचार अब एक देश से दूसरे देश तक आसानी से पहुंचते हैं। यह पूरी प्रक्रिया वैश्वीकरण (Globalization) कहलाती है। वैश्वीकरण न केवल आर्थिक संबंधों को प्रभावित करता है, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं को भी जोड़ता है। भारत ने भी बीते कुछ दशकों में वैश्वीकरण की ओर कई अहम कदम उठाए हैं।
- व्यापार नीति में उदारीकरण – भारत सरकार द्वारा एक ऐसा वातावरण बनाने के लिए प्रयास किया गया जिसमें विदेशी व्यापार पर विनिमय और लाइसेन्स नियन्त्रण की मात्रा को कम करने के साथ-साथ निर्यात को भी प्रोत्साहन दिया जाए। व्यापार नीति में बहुत से नये उपाय भी किये गये हैं,
- जैसे-
- रुपये के मूल्य में 18% का अवमूल्यन किया गया ।
- निर्यातको के लिए अग्रिम लाइसेन्सिंग प्रणाली को सरल बनाया गया।
- पूँजीगत माल के आयात की अनुमति दी गयी।
- व्यापारिक धाराओं में 51% तक विदेशी पूँजी लगाने की अनुमति दी गई।
- खुले सामान्य लाइसेन्स के अन्तर्गत पूँजीगत । माल, कच्ची सामग्रियों और संघटकों के आयात के लिए उपयोगकर्ताओं की वास्तविक आवश्यकता की शर्त को हटा दिया गया।
- आयात-निर्यात नीति 1999-2000 व आयात-निर्यात नीति 2000-2001 की घोषणा की गई जिसका प्रमुख उद्देश्य निर्यात-उत्पादन के लिए आयातों को उदारीकृत करना था।”
- जैसे-
- उदारीकृत विनिमय दर प्रणाली – देशी व्यापार की दिशा में उदारीकरण का एक बहुत महत्वपूर्ण कदम यह था कि मार्च 1992 में रुपये को आशिक रूप से परिवर्तनीय और मार्च 1994 में पूर्ण रूप से परिवर्तनीय बना दिया गया । उदारीकरण नीति के अन्तर्गत सरकार ने चालू खाते के लिए स्वतन्त्र विनिमय दर प्रणाली लागू कर रखी है। इस नीति के कारण आयातों में कमी होने की सम्भावना है क्योंकि आयात का मूल्य चुकाने के लिए आयातकर्ता को विदेशी मुद्रा खुले बाजार से क्रय करनी होती है जो सीमित मात्रा में है। इसका कारण यह है कि हमारे निर्यात, आयात की अपेक्षा कम हैं।
- विदेशी विनिमय नीति में उदारीकरण – विदेशी विनियोग को आकर्षित करने के लिए अनेकउपाय किये गये हैं, जैसे- \
- उच्च प्राथमिकता प्राप्त 34 उद्योगों में 51% तक विदेशी विनियोग की । अनुमति बिना किसी रोक-टोक के प्रदान की जायेगी। यह सुविधा उन मामलों में ही उपलब्ध होगी जहाँ उत्पादन के लिए विदेशी पूँजी आवश्यक होगी ।
- यदि सम्पूर्ण उत्पादन निर्यात के लिए हो तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को 100% तक पूँजी विनियोग की अनुमति भी दी जा सकती है। \
- राष्ट्रपति द्वारा 8 जनवरी, 1993 को जारी किये गये एक अध्यादेश के द्वारा विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम (फेरा) 1973 को काफी उदार बना दिया गया । जून 2000 से फेरा (FERA) के स्थान पर विदेशी मुद्रा प्रबन्धन अधिनियम (FEMA) लागू कर दिया गया ।
- अनिवासी भारतीय तथा उनके पूर्ण स्वामित्व वाले विदेशी निर्गमित निकार्या को उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों तथा उद्द्योगों में शत-प्रतिशत विदेशी विनियोग करने की अनुमति है
वैश्वीकरण की ओर कदम इस प्रकार किये गये पूँजी विनियोग तथा उस पर होने वाली आय को प्रत्यावर्तित करने के सम्पूर्ण लाभ दिये जायेंगे ।