व्यापार की शर्तों निम्न बातों पर निर्भर होती है।(क) देश के निर्यात माल की माँग लोच निर्यात माल की माँग लोच कम पर व्यापार शर्ते अनुकूल होती हैं, लोच अधिक होने पर व्यापार शर्ते प्रतिकूल होती हैं।।(ख) देश के आयात माल की माँग लोच आयात माल की माँग लोच अधिक हो तो शर्ते अनुकूल होती हैं, लोच कम हो तो शर्ते प्रतिकूल होती है। 1(ग) देश के निर्यात माल की पूर्ति की लोच निर्यातों की पूर्ति-लोच कम होने ने पर व्यापार शर्ते प्रतिकूल तथा अधिक होने पर व्यापार शर्ते अनुकूल होंगी ।(घ) देश के आयात माल की पूर्ति दूसरे देश के निर्यात की लोच आयातों की पूर्ति की लोच अधिक होने पर व्यापार शर्ते प्रतिकूल और लोच कम होने पर अनुकूल होंगी । इन चारों प्रकार की लोचो को सामूहिक रूप से “पारस्परिक मॉग की लोच” कहते हैं। पारस्परिक माँग की लोच में परिवर्तन होने से व्यापार की शर्तों में भी परिवर्तन हो जाते है। पारस्परिक माँग की लोच सापेक्षिक मॉग की तीव्रता से सम्बन्धित है जो कि अनके बातों पर निर्भर होती है, जैसे-आयात व निर्यात वस्तुओं का स्वभाव, वस्तुओं की अनेकता, क्रय करने की क्षमता व रुचियाँ, सरकारी नीति जनसंख्या का आकार व उसकी वृद्धि आदि ।
(1) आयात व निर्यात वस्तुओं का स्वभाव प्राथमिक वस्तुओं की माँग प्रायः बेलोच होती है, जबकि आय में वृद्धि होने से निर्मित वस्तुओं की माँग लोचदार होती है।(2) वस्तुओं की अनेकता अनके प्रकार की वस्तुओं से माँग की लोग प्रभावित हो जाती है। उस देश की जो अनेक प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करता है, निर्यात तीव्रता अधिक तथा आयात तीव्रता कम होती है, क्योंकि ऐसा देश स्वयं ही अनेक वस्तुओं का उत्पादन करने में समर्थ होता है। विदेशों में स्थानापन्न की उपलब्धता के कारण स्वदेशी निर्यात वस्तुओं की माँग कुप्रभावित होती है।(3) क्रय करने की क्षमता व रूचियों किसी देश की आर्थिक स्थिति उस देश द्वारा आयात वस्तुओं को क्रय करने की क्षमता को प्रभावित करती है तथा नागरिकों की रुचियाँ आयात की जाने वाली वस्तुओं के प्रकार को निर्धारित करती है।(4) सरकारी नीति सरकार की नीति भी किसी देश की सापेक्षिक माँग स्थिति को प्रभावित करती है। सीमा शुल्क, आयात अभ्यंश एवं अन्य ऐसे ही उपाय जिनको कि सरकार द्वारा विदेशी व्यापार नीति के रूप में स्वीकार किया जाता है, कृत्रिम रूप से आयात माँग को सीमित कर देते हैं और इस तरह उस देश की व्यापार शर्ते सुधर सकती हैं।(5) जनसंख्या का आकार और उसकी वृद्धि जनसंख्या वाले देश की आयात वस्तुओं के लिए तीव्रता सापेक्षिक रूप से अधिक होती है। इससे व्यापार शर्त गिर जाती 12
व्यापार शर्तों को प्रभावित करने वाले प्रधान तत्व
इस प्रकार व्यापार शर्तों को प्रभावित करने वाली प्रधान बातें निम्न प्रकार है:
(1) आयार्ता तथा निर्यातों की मॉग में परिवर्तन
(2) सीमा शुल्क (Tariff)
(3) अवमूल्यन (4) आर्थिक विकास(1) मांग में परिवर्तन का व्यापार शर्तों पर प्रभाव अन्य बातें समान रहने पर किसी देश के निर्यातों में वृद्धि होने पर आयातों की तुलना में निर्यातों की कीमतें बढ़ जायेंगी तथा उस देश की व्यापार शर्तों में सुधार हो जायेगा। इसके विपरीत किसी देश के आयातों की माँग बढ़ने पर उसके निर्यातों की अपेक्षा आयार्ता का मूल्य बढ़ जायेगा। इससे उस देश की व्यापार शर्ते प्रतिकूल होंगी ।(2) सीमा शुल्क का व्यापार शर्तों पर प्रभाव एक देश अपनी व्यापार शर्तों में सुधार हेतु सीमा शुल्क की नीति अपना सकता है। सीमा शुल्क से व्यापार की शर्ते उस स्थिति में सुधर सकती हैं जबकि दूसरे देश की प्रस्ताव वक्र पूर्णतः लोचदार न हो तथा दूसरा देश पहले से आने वाले माल पर बदले की भावना से सीमा शुल्क न लगाये। बदले की भावना से लगाये गये सीमा शुल्क की स्थिति में व्यापार शर्तों पर सीमा शुल्क का अंतिम प्रभाव, सीमा(50)
शुल्कों के सापेक्षिक आकार पर निर्भर होगा। परन्तु इस प्रकार नीतियों से व्यापार के आकार में कमी होगी और दोनों देशों को हानि होगी ।(3) अवमूल्यन का व्यापार शर्तों पर प्रभाव अवमूल्यन से एक देश की मुद्रा की विनिमय दरकम हो जाती है। इससे व्यापार की शर्तों में सुधार या गिरावट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। अवमूल्यन से व्यापार शर्तों में सुधार होगा या गिरावट, यह बात किसी देश के आयातों और निर्यातों की माँग और पूर्ति की लोच पर निर्भर होगी। अवमूल्यन से किसी देश के व्यापार की शर्तों में सुधार उस दशा में होगा जबकि उस देश के निर्यातर्ता की माँग में पर्याप्त मात्रा में वृद्धि हो जाए जिससे कि अवमूल्यन के कारण निर्यार्ता से मिलने वाली कम कीमत की क्षतिपूर्ति हो जाये। यदि अवमूल्यन के पश्चात् निर्यात मॉग में वृद्धि नहीं होती या बहुत थोड़ी वृद्धि होती है तो व्यापार शर्तों में गिरावट आ जावेगी ।(4)1.आर्थिक विकास का व्यापार शर्तों पर प्रभाव किसी देश के आर्थिक विकास से उसदेश के कुल उत्पादन में तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो जाती है। आय में वृद्धि से आयात वस्तुओं की माँग में वृद्धि हो सकती है। आर्थिक विकास के इस प्रभाव को माँग की आय लोच कहते हैं। इसके अतिरिक्त आर्थिक विकास के कारण इन वस्तुओं के घरेलू उत्पादन में वृद्धि होने से पूर्ति बढ़ सकती है। इसे पूर्ति की आय लोच कहते हैं।