जब किसी देश का आयात, निर्यात से अधिक हो जाय तो भुगतान संतुलन प्रतिकूल माना जाता है। निर्यात में कमी विभिन्न कारणों से हो सकती है। जैसे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में देश का पिछड़ापन, देश में विदेश वस्तुओं के उत्पादन में कमी हो जाना देश के विकास के लिए विशेष आयात किया जाना इत्यादि । विदेशों में भेजा जाने वाला ब्याज, लाभांश, विविध सेवाओं की राशि भी यदि प्राप्तियों की तुलना में कम हो तो भुगतान संतुलन में प्रतिकूलता उत्पन्न हो जाती है। भुगतान संतुलन में प्रतिकूलता अल्पकालिक अथवा दीर्घकालीन हो सकती है।भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता दूर करने हेतु उपायकिसी देश में लम्बे समय तक यदि भुगतान संतुलन प्रतिकूल रहता है तो वह अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक होता है। प्रतिकूल भुगतान संतुलन देश में विदेशी मुद्रा की कमी को इंगित करता है।
किंडलबार्गर ने ब्रिटेन के भुगतान संतुलन के संदर्भमें कहा है “ब्रिटिश सरकार जब चाहे पॉड छाप सकती है अथवा बैंकिंग व्यवस्था के माध्यम से उसकी मांग बढ़ा सकती है, किन्तु वह अमेरिकी डालर का सृजन नहीं कर सकती है।” अतः यह जस्टी है कि समायोजनात्मक व्यवस्था से भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता दूर की जाये ।
यद्रद्यपि भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता एवं अनुकूलता एक समान्य परिस्थितियां है। किन्तु लम्बे समय से चल रही प्रतिकूलता को दूर किया जाना आवश्यक है। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के अनुसार भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता की कोई समस्या नहीं होती है। भुगतान संतुलन में संतुलन स्वतः ही होता रहता है। किन्तु आधुनिक युग में प्रतिकूल भुगतान संतुलन को संतुलित करने हेतु समयबद्ध प्रयास किया जाना जरूरी होता है। प्रतिकूल भुगतान संतुलन को दूर करने हेतु निम्नांकित उपाय अपनाएं जा सकते.
- मौद्रिक उपाय
- प्रतिकूल भुगतान संतुलन को संतुलित करने हेतु आयातों में कमी तथा निर्यार्ता में वृद्धि करने के प्रयास किये जाते है। इसके लिऐ मुद्रा की आपूर्ति में परिवर्तन करने का प्रयास किया जाता है। अतः इन उपायों को मौद्रिक उपाय कहा जाता है। प्रमुख मौद्रिक उपाय इस प्रकार है:-
1) महंगी मुद्रा नीति अथवा मुद्रा संकुचन भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता दर्शाने हेतु महंगी मुद्रा नीति का सहारा लिया जाता है। देश में मुद्रा की मात्रा को सीमित करने का प्रयास किया जाता है। मुद्रा की बाजार में कमी होने में लागत कम हो जाएगी तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में हमारी वस्तुएं महंगी होने से निर्यात बढ़ जायेगें । भुगतान संतुलन को संतुलित करने हेतु मुद्रा संकुचन उपाय को अर्थशास्त्रियों द्वारा समान्यतः ठीक नहीं माना जाता, क्योंकि इससे विकासात्मक गतिविधियां प्रभावित होती है तथा देश में बेरोजगारी बढ़ने की संभावना रहती है। उत्पादन घटने लगता है। प्रो. केन्स के अनुसार मुद्रा संकुचन अनुपयुक्त होता है। यह उपाय देश के लिए आत्मघाती होता 12
2) मुद्रा का अवमूलन: विदेशी मुद्रा की तुलना में अपने देश की मुद्रा का मूल्य कम करना अवमूल्यन कहलाता है। देशी मुद्रा सस्ती हो जाने के कारण कम विदेशी मुद्रा में अधिक वस्तुएं क्रय की जा सकती है। अतः एक ओर आयात हतोत्साहित होते हैं तो दूसरी ओर निर्यात में वृद्धि होने लगती है। उदाहरणार्थ भारत एवं अमेरिका में वतमान विनिमय दर 40 रु. के बराबर एक अमेरिकी डालर है। यदि रुपये का अवमूल्यन कर 45 रु. के बराबर एक अमेरिकी डालर कर दिया जाय तो एक अमेरिकी डालर में से 40 रु. के स्थान पर 45 रु. मूल्य की वस्तुएं क्रय करने की क्षमता उत्पन्न हो जायगी । अप्रत्यक्षतः वस्तुएं तुलनात्मक रूप में सस्ती हो जायगी। मुद्रा अवमूलन तभी कारगार होता है जब कि अन्य देशों द्वारा प्रतिस्पर्धात्मक कार्यवाही नही की जावे यदि मुद्रा का अवमूलन करने वाले प्रतिस्पर्धी देश भी जवाबी कार्यवाही करते हुए अपने देश की मुद्रा विनिमय दर कम कर दें तो मुद्रा अवमूलन प्रभावहीन हो जायगा ।
(3) विनियम नियंत्रण स्वदेशी मुद्रा की विनिमय दर को एक निश्चित स्तर पर बनाये रखने हेतु किये जाने वाले प्रयासों को विनिमय नियंत्रण कहा जाता है। प्रतिकूल भुगतान संतुलन को ठीक करने में विनिमय नियंत्रण नौति को अधिक उपयुक्त माना गया है। सरकार द्वारा विदेशी मुद्रा से संबंधित समस्त लेन-देन अपने अधिकार में ले लिये जाते है तथा सरकार सीमित मात्रा में ही विदेशी मुद्रा के लेन-देन की अनुमति देती है। इस प्रकार विनिमय नियंत्रण के माध्यम से विदेशी पूंजी के निर्यात पर नियंत्रण स्थापित किया जाता है। फलस्वरूप प्रतिकूलता का तात्कालिक समाधान मिल जाता है।इस प्रकार प्रतिकूल भुगतान संतुलन को दूर करने हेतु उपयुक्त तीनों उपायों में से कौन-सी विधि ज्यादा उपयोगी है। यह देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करेगा । वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा प्रतिकूल भुगतान संतुलन की स्थिति को ठीक करने हेतु सलाह दी जाती है। प्रत्येक उपाय के गुण दोषों पर विचार कर उस उपाय को अपनाया जाता है ।