किसी भी संस्था की गतिविधियों का समाज के विभिन्न घटकर्का पर भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रभाव पड़ता है। समाज के विभिन्न घटक और उन पर भिन्न-भिन्न प्रभाव का वर्णन इस प्रकार है-
- अंशधारी (Shareholder) – कम्पनी के अंशधारी कम्पनी के स्वामी होते हैं। कम्पनी सम्बन्धी समस्त जोखिम मूल रूप से इन्हीं की होती है। यदि कम्पनी पर आर्थिक संकट के बादल मंडराते हैं तो प्रबन्ध में लगे चन्द लोग तो अपना हिसाब बैठाकर खिसक जाते हैं और समस्त हानि को इन अंशधारियों को ही वहन करना पड़ता है। इनका मूल रूप से लाभांश और कम्पनी के अंशों के बाजार मूल्य में वृद्धि में हित होता है। ये दोनों ही घटक कम्पनी की लाभदायकता पर निर्भर करते हैं। अतः यदि कम्पनी की लाभदायकता का ध्यान नहीं रखा गया तो विनियोजकों का पूँजी बाजार से विश्वास उठ जायेगा जिसका परिणाम होगा पूँजी बाजार से विनियोजकों का हट जाना और औद्योगीकरण की गति मन्द पड़ना। अतः कोई भी लोकोपकारी कार्य उसी सीमा तक करने चाहिए जिस सीमा तक कम्पनी की क्षमता आर्थिक भार को सुगमता से उठा सके।
- ऋणपत्रधारी (Debenture holder) – कम्पनी के ऋणपत्रधारी कम्पनी के स्वामी नहीं होते बल्कि कम्पनी को ऋण प्रदान करने वाले होते हैं। अतः कम्पनी को कम लाभहोने अथवा घाटा होने की स्थिति में भी इनको निर्धारित दर पर ब्याज मिलता रहता है। अत अंशधारियों की अपेक्षा इनकी जोखिम कम होती है। इनकी जोखिम तभी प्रारम्भ होती है जबकि कम्पनी को घाटे के कारण उसकी समस्त अंश पूँजी समाप्त हो जावें। ऐसी स्थिति आने पर कम्पनी का समापन निश्चित लगने लगता है। समापन की स्थिति में ऋणपत्रधारियों को पूर्ण भुगतान प्राप्त होने के पश्चात् ही राशि बचने पर अंशधारियों का भुगतान किया जाता है। ऋणपत्रों का एक निश्चित समय के पश्चात् शोधन भी आवश्यक होता है, अतः कम्पनी को ऋणपत्रों पर ब्याज का भुगतान व शोधन करने के लिए तरल साधनों की आवश्यकता पड़ती है। अतः कोई भी लोकोपकारी कार्य करते समय कम्पनी की तरल आवश्यकता का भी पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।
- उपभोक्ता (Consumer) – कम्पनी के उत्पाद अथवा सेवाओं का उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं का कम्पनी में सर्वाधिक हित होता है। कम्पनी की भी उपभोक्ताओं की सन्तुष्टि में सर्वाधिक रुचि होनी चाहिए, क्योंकि असन्तुष्ट उपभोक्ता कम्पनी को छोड सकता है और ऐसी स्थिति में कम्पनी का अस्तित्व खतरे में पड़ जावेगा। उपभोक्ता की सन्तुष्टि इस बात पर निर्भर करती है कि कम्पनी उनको सही गुणवत्ता का माल अन्य प्रतिद्वन्द्वयों की तुलना में उचित मूल्य पर दे। इसके लिए यह आवश्यक है कि वस्तु की लागत कम रखी जावें और कम मुनाफे पर वस्तु का विक्रय मूल्य तय किया जावें। यदि कम्पनी इस बात का ध्यान रखती है तो यह माना जायेगा कि कम्पनी अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति जागरूक है। अन्य लोकोपकार कार्यों पर धन खर्च करने से पूर्व कम्पनी को उपभोक्ताओं की सन्तुष्टि का ध्यान रखना चाहिए।
- कर्मचारी (Employee) – कम्पनी के कर्मचारी कम्पनी के नींव के पत्थर होते हैं। इनमें यदि असन्तोष व्याप्त हो जाता है तो भली-चंगी कम्पनी रुग्ण हो जाती है। कर्मचारी संघों के रूप में राजनीति का प्रवेश भी कर्मचारियों का उसके प्रबन्धकों में बिगाड़ उत्पन्न कर रहा है। वह कम्पनी सौभाग्यशाली है, जिसके कर्मचारियों का उसके प्रबन्धकों से सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध हो। किसी भी कम्पनी के लिए यह सबसे बड़ी उपलखि होगी यदि उसके कर्मचारियों में कम्पनी के प्रति समर्पण भाव जागृत हो सके। कर्मचारियों की उत्पादकता पर उनके मनोबल तथा प्रशिक्षण-व्यवस्था का बहुत प्रभाव पड़ता है। इन मर्दा पर यदि खर्च किया जाता है तो वह मानव संसाधन में विनियोग है जो बड़ी हुई उत्पादकता के रूप में कम्पनी को कई गुना वापस मिलने वाला है। अतः कम्पनी को अपने कर्मचारियों की सन्तुष्टि का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।
- सरकार (Government) – देश में कल्याणकारी राज्य की स्थापना तभी सम्भव है जबकि आर्थिक खुशहाली का वातावरण हो। ऐसी स्थिति में अंशधारियों, ऋणपत्रधारियों को उनके धन की सुरक्षा और उस पर नियमित आय प्राप्त होगी, कर्मचारियों को उचित पारिश्रमिक मिलेगा, उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर आवश्यक मात्रा में सही वस्तु प्राप्त होगी तथा सरकार को कर के रूप में धन प्राप्त होगा। अतः सरकार की इस बात में प्रमुख रुचि रहती है कि देश में औद्योगिक विकास की गति सुदृढ़ हो। ऐसी स्थिति में ही लोकोपकारी कार्य भी सम्भव हो सकेंगे। सरकार करो से प्राप्त धन का एक भाग पर्यावरण को स्वस्थ रखने में खर्च करती है।
- जनसाधारण (General Public) – जनसाधारण की एक कम्पनी में अंशधारियों के रूप में, उपभोक्ता के रूप में तथा कर्मचारियों के रूप में तो रुचि होती ही है, साथ ही कम्पमी के पड़ोस में रहने वाले लोगों का कई अन्य प्रकार से भी कम्पनी की गतिविधियों में हित होता है। यदि कम्पनी स्कूल खोलती है, औषधालय खोलती है, सड़क निर्माण करती है, बगीचा लगाती है तथा अन्य ऐसे ही लोकोपकारी कार्य करती है तो सभी पड़ोसियों को उसका लाभ मिलता है। इसके विपरीत यदि कम्पनी वायु जल अथवा ध्वनि का प्रदूषण करती है तो सभी पड़ोसियों के स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है। अतः कम्पनी का अस्तित्व पड़ोस में जन-साधारण को कई प्रकार से प्रभावित करता है।
इसके विपरीत यदि कम्पनी वायु जल अथवा ध्वनि का प्रदूषण करती है तो सभी पड़ोसियों के स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है। अतः कम्पनी का अस्तित्व पड़ोस में जन-साधारण को कई प्रकार से प्रभावित करता है।
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