निर्माण कार्य सम्पन्न करने की अनेक विधियों हैं। इनमें से कौन सी विधि अपनायी जाये? इस बात का निर्धारण प्रबन्धको द्वारा उत्पाद की प्रकृति, उपलब्ध सुविधाओं व पूँजी आदि को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। प्रबन्ध अंकेक्षक इस सम्बंध में देखेगा कि प्रबन्धकों द्वारा सही विधि का चयन किया जाता है। यदि वह उपयुक्त समझे तो निर्माण विधि में परिवर्तन का सुझाव भी दे सकता है। निर्माण विधियों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है:
- उपकार्य निर्माण विधि (Job Manufacturing Method) : इस विधि के अन्तर्गत वस्तु का निर्माण ग्राहक के आदेश पर ही किया जाता है। ग्राहक जिस वस्तु का जिस किस्म का व जितनी मात्रा में आदेश दे वैसा ही उत्पादन उतनी ही मात्रा में किया जाता है अर्थात संस्था पहले से निर्माण करके नहीं रखती है। अतः यह आवश्यक नहीं है कि दोउपकार्यों की किस्म एक ही हो। जब एक नहीं होती है तो लागत भी समान होना आवश्यक नहीं है।
- खेप निर्माण विधि (Batch Manufacturing Method) : इस विधि में उत्पादन कार्य खेपों में होता है, एक खेप में एक ही वस्तु की एक किस्म की अनेक इकाइयों का निर्माण होता है। एक ही खेप में उत्पादित इकाइयों की किस्म एक होनी चाहिए परन्तु किस्म एक खेप से दूसरी खेप में भिन्न-भिन्न हो सकती है। खेप में उत्पादन ग्राहक के आदेश पर भी किया जा सकता है या संस्था भावी मॉग को ध्यान में रखकर उत्पादन कर सकती है।
- प्रक्रिया निर्माण विधि (Process Manufacturing Method): इस विधि में एक ही वस्तु के उत्पादन को अनेक अवस्थाओं में बाँट दिया जाता है तथा इन अवस्थाओं का क्रम निर्धारित कर दिया जाता है जिन्हें प्रक्रिया कहते हैं। किसी भी वस्तु का निर्माण करने के लिए यह आवश्यक है कि वह वस्तु क्रमानुसार इन सभी प्रक्रियाओं में से होकर गुजरे। प्रत्येक प्रक्रिया में निर्मित माल अगली प्रक्रिया के लिए कच्चा माल होता है व अन्तिम प्रक्रिया से प्राप्त माल निर्मित विक्रय योग्य माल होता है। किसी भी संस्था के लिए यह आवश्यक नहीं है कि सभी प्रक्रियाएँ वह स्वयं ही सम्पन्न करे।संस्था स्वतंत्र रूप से कोई एक या एक से अधिक प्रक्रिया अपने यही सम्पन्न कर सकती है।
- क्रमागत निर्माण विधि (Serialized Manufacturing Method) : वैसे तो यह विधि के समान ही है परन्तु इन दोनों विधियों में एक प्रमुख अन्तर यह है कि क्रमागत निर्माण विधि में किसी इकाई संयन्त्र से बाहर तब ही आती है जबकि उस इकाई पर सम्पूर्ण कार्य पूरा हो जाए अर्थात विधि में किसी इकाई पर होने वाली सम्पूर्ण प्रक्रियाएँ एक साथ ही हो जाती हैं, जबकि प्रक्रिया विधि में एक प्रक्रिया पूरी हो जाने पर इकाई को दूसरी प्रक्रिया में निवेश करना होता है।
स्पष्ट है कि निर्माण के लिए कौन सी विधि अपनाई जाए इस तथ्य का निर्धारण वस्तु की प्रकृति को ध्यान में रख कर ही करना चाहिए। प्रबन्ध अंकेक्षक भी इस सम्बन्ध में अपनी राय देते समय उत्पाद की प्रकृति को ध्यान में रखेगा। निर्माण विधि की समीक्षा /