प्रक्रिया निर्माण का तात्पर्य है कि एक ही निर्माण कार्य को अनेक भागों में बांटकर उत्पादन करना। प्रक्रिया निर्माण में एक प्रक्रिया से उत्पन्न माल दूसरी प्रक्रिया के लिए कच्चे माल का कार्य करता है। निर्माण कार्य में सामान्यतः चार प्रकार की प्रक्रियाओं का प्रयोग होता है:
- संयोजक प्रक्रिया (Synthetic Process) : इस प्रकार की प्रक्रिया के अन्तर्गत एक से अधिक वस्तुओं का संयोजन करके उत्पाद का निर्माण किया जाता है। सामान्यतः इस प्रक्रिया का प्रयोग तकनीकी वस्तुओं का निर्माण करने वाले कारखानों में किया जाता है, यथा घड़ी बनाने वाले कारखानों में विभिन्न प्रकार के पुर्जी को जोड़कर उन्हें घड़ी का रूप दे दिया जाता है।
- विश्लेषण प्रक्रिया (Analytical Process): विश्लेषण प्रक्रिया में कये माल का (विश्लेषण किया जाता है अर्थात् विभाजन किया जाता है तथा एक ही प्रकार के कर माल का विश्लेषण (विभाजन करके कई तरह के उपयोगी पदार्थ प्राप्त किये जाते हैं। सामान्यतः विश्लेषण प्रक्रिया रासायनिक पदार्थों के उत्पादन में अपनायी जाती है, यथा जमीन से प्राप्त खनिज तेल का विश्लेषण प्रक्रिया द्वारा शोधन करके इससे पेट्रोल, डीजल मिट्टी का तेल, पैराफिन मोम, डामर आदि उपयोगी पदार्थ प्राप्त किये जाते हैं।
- अनुकूल प्रक्रिया (Conditioning Process): अनुकूलन प्रक्रिया में उपलब्ध कर (माल को आवश्यकता के अनुरुप रूप, रंग, आकृति दी जाती है, इस प्रक्रिया में कच्चे माल के भौतिक स्वरूप व लक्षणी में आमूलचूल परिवर्तन हो जाता है तथा इस प्रक्रिया से अनमिज व्यक्ति तो यह बता भी नहीं सकता कि उक्त उत्पाद के निर्माण के लिए कौन-सा कच्चा माल प्रयुक्त किया गया है, यथा जंगली में मिलने वाले बांस, कृत्रिम धागा बनाने के लिए अनुकूलन प्रक्रिया कर ही प्रयोग किया जाता है।
- निष्कर्षण प्रक्रिया (Extractive Process): इस प्रक्रिया में एक ही प्रकार के करीमाल से विभिन्न उपयोगी तत्त्वी को पृथक-पृयक किया जाता है। सामान्यतः निष्कर्षण प्रक्रिया के अन्तर्गत धरती, वायु या जल से कोई तत्त्त्व अथवा पदार्थ निकालकर उस पदार्य को विभिन्न उपयोगी तत्वों में बॉट दिया जाता है, यथा समुद्र के पानी से नमक व मैग्नीशियम निकालना।प्रत्येक उद्योग उपरोक्त निर्माण प्रक्रियाओं में कोई भी प्रक्रिया अपनी आवश्यकतानुसार अपनायेगा। निर्माणी संस्था इन सभी प्रक्रियाओं को एक साथ अपना सकती है, जैसे जमीन से खनिज तेल निकालना, निष्कर्षण प्रक्रिया है व खनिज तेल का निष्कर्षण करके इससे पेट्रोल, डीजल, कोलतार आदि प्राप्त करना विश्लेषणात्मक प्रक्रिया है। इस सम्बन्ध में प्रबन्ध अंकेक्षक देखेगा कि आवश्यकतानुसार ये प्रक्रियाएं अपनायी गई है। प्रक्रिया की विभिन्न अवस्थाओं का निर्धारण सोच-समझकर किया गया है या नहीं।यह भी सम्भव है कि निर्माण कार्य में एक से अधिक प्रक्रियाएँ अपनानी पड़े, इनमें से कोई प्रक्रिया कारखानो में हो व कोई प्रक्रिया कारखाने के बाहर, जिन्हें अन्य पक्षकारी से पूरी करवायी जाये। जैसे कोई घड़ी बनाने वाली कम्पनी, जिसे घड़ी बनाने में वैसे तो तीन प्रक्रियाएँ अपनानी पड़ेगी निष्कर्षण प्रक्रिया-लोहे को खानों से निकालना, अनुकूलन प्रक्रिया-खनिज लोहे की गलाकर इसे विभिन्न हिस्से पुर्जी का रूप देना व संयोजन प्रक्रिया-विभिन्न हिस्से पुर्जी को जोड़कर घड़ी का रूप देना। कोई निर्माणी संस्था इनमें के कुछ या सभी प्रक्रियाएँ अपना सकती है। यथा यह घड़ी कम्पनी बने बनाये हिस्से या पुर्जा का क्रय कर सकती है (या स्वयं भी इनका निर्माण कर सकती है) व संयोजन कार्य स्वयं कर सकती है। प्रबन्ध अंकेक्षक को लागत तकनीकों की सहायता से यह ज्ञात करने का प्रयास करना चाहिए कि संस्था के लिए कोई प्रक्रिया अपने यहाँ सम्पन्न करना मितव्ययी रहेगा या उन पुर्जी को बाजार से क्रय करना। यदि
कोई प्रक्रिया को उपक्रम स्वयं सम्पादित नहीं कर रहा है ती प्रवन्ध अंकेक्षक को देखना चाहिए कि क्या इस प्रक्रिया का सम्पादन संस्थान द्वारा किया जाना लाभप्रद रहेगा।प्रबन्ध अंकेक्षक को प्रक्रिया की सामविकता की भी जाँच करनी चाहिए कि क्या कोई प्रक्रिया बहुत अधिक पुरानी हो गई है तथा इसमें विकास व सुधार की कोई गुंजाइश है अथवा नहीं। प्रबन्ध अंकेक्षक देखेगा कि संस्था प्रक्रिया विधियों में परिवर्तन के प्रति जागरुक है तथा प्रक्रिया विधियों के नवीनीकरण की और ध्यान दे रही व नवीन आविष्कारों को भी अपना रही है अथवा नहीं।