- संयंत्र स्थिति की समीक्षा (Review of Plant Location): सर्वप्रथम तो प्रबन्ध अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि संयन्त्र की स्थिति क्या है? संयंत्र कहीं ऐसी जगह तो स्थापित नहीं है जहाँ कच्चा माल, यातायात एवं संदेशवाहन के साधन, शक्ति के साधन, सस्ती श्रम शक्ति, उचित औद्योगिक वातावरण व बैंक आदि आधारभूत सुविधाओं का अभाव हो। वैसे संयन्त्र की स्थापना तथा स्थिति के सम्बन्ध में सलाह तकनीकी विशेषज्ञ ही दे सकते हैं तो भी प्रबन्ध अंकेक्षक उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह देखेगा कि क्या वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए संयन्त्र की स्थिति उपयुक्त है? यदि संयन्त्र की स्थिति अनुपयुक्त स्थान पर है तो क्या स्थिति में परिवर्तन किया जाना आवश्यक है? संयन्त्र की स्थिति में परिवर्तन करना बहुत ही जोखिमपूर्ण कार्य है, अतः इस सम्बन्ध में सलाह देने से पूर्व प्रबन्ध अंकेक्षक को निम्नलिखित बिन्दुओं पर बहुत सोच-समझकर विचार करना चाहिए:
- क्या संयन्त्र की अनुपयुक्त स्थान पर स्थिति ही उपक्रम की असफलता का कारण
- क्या संयन्त्र की स्थिति में सुधार कर उपक्रम को हानि से बचाश जा सकता है?
- क्या विगत समय में हानि से बचने के लिए कोई कारगर उपाय किए गए है?
- इन उपायों का परीक्षण कर देखना चाहिए कि क्या हानि से बहने के लिए कोई अन्य कदम उठाने की आवश्कता है?
- क्या संयन्त्र का स्थान परिवर्तन कर वास्तव में हानि से बचा जा सकेगा?
- संयन्त्र के स्थान परिवर्तन पर कितना व्यय होगा?
- क्या संस्था इस व्यय को वहन करने में सक्षम हो सकेगी?
- क्या निकट भविष्य में संयन्त्र की स्थिति पुनः परिवर्तन की तो नहीं होगी? उपरोक्त समस्त तथ्यों के सम्बन्ध में प्रबन्ध अंकेक्षक को उपलब्ध ऑकडो तकनीकी विशेषों की सेवाएँ लेनी चाहिए। संयन्त्र स्थान परिवर्तन हेतु आवश्यक पूँजी व इस परिवर्तन फलस्वरूप होने वाली बचत दोनों का तुलनात्मक अध्ययन करने के पश्चात् ही प्रबन्ध अंकेक्षक को संयन्त्र स्थान परिवर्तन की सलाह देनी चाहिए।
- संयन्त्र विन्यास की समीक्षा (Review of Plant Layout)- भूमि, भवन, मशीन व औजार, सुविधा व उपकरणों की न्यूनतम लागत पर अच्छे किस्म का उत्पादन प्राप्त करने के उद्देश्य से उपयुक्त स्थान पर स्थापन को ही संयन्त्र विन्यास कहते है। प्रबन्धअंकेक्षक को देखना चाहिए कि कारखाने में प्रत्येक कार्य के लिए अलग से स्थान है जिसका निर्धारण इस प्रकार किया गया है कि निर्माण कार्य निरन्तर अबाध गति से चलता रहे। संयन्त्र विन्यास का निर्माण प्रक्रिया में बहुत अधिक महत्व है। प्रबन्ध अंकेक्षक को संयन्त्र विन्यास की समीक्षा करते समय निम्नलिखित बाते ध्यान में रखनी चाहिए :
- निर्माण प्रक्रिया के अनुरूप ही संयन्त्र का विन्यास किया गया है।
- उत्पादन की मात्रा व निर्माण विधि के अनुरूप संयन्त्र का विन्यास किया गया है,
- संयन्त्र विन्यास करते समय उत्पाद की प्रकृति व स्वभाव को भी ध्यान में रखा गया है;
- अकेक्षक को संयन्त्र विन्यास की समीक्षा करते समय आदर्श संयन्त्र विन्यास को ध्यान में रखना चाहिए।
- आदर्श संयन्त्र विन्यास का प्रारूप निम्न प्रकार है;
- प्रबन्ध अंकेक्षक को उक्त आदर्श संयन्त्र विन्यास की सहायता से संयन्त्र विन्यास की समीक्षा कर निम्नलिखित बिन्दुओं की जाँच करनी चाहिए :
- गलत संयन्त्र विन्यास के कारण उत्पादन में रुकावट तो नहीं आ रही है,
- सामग्री तथा अर्द्ध-निर्मित माल को इधर-उधर करने में साधनों का अपव्यय तो नहीं हो रहा है।
- स्थान एवं उपलब्ध सेवाओं का मितव्ययतापूर्वक सर्वोतम उपयोग हो रहा है अथवा नहीं,
- सुपरवाइजर की स्थिति ऐसी है कि वह समस्त निर्माण क्रियाओं पर सतत् निगरानी रख पाता है या नहीं,
- संयन्त्र में आग या अन्य किसी दुर्घटना से बचाव हेतु सम्पूर्ण प्रबन्ध विद्यमान हैं। यदि, प्रबन्ध अंकेक्षक संयत्र विन्यास से सन्तुष्ट नहीं है तो उसे यह देखना होता है कि क्या संयन्त्र विन्यास में परिवर्तन आवश्यक है? इन परिवर्तनों की लागत क्या होगी? क्या लागत का वांछित प्रत्याय प्राप्त हो सकेगा? आदि।
- निर्माण योजना की समीक्षा (Review of Manufacturing-Planning) – निमार्ण चक्र का प्रारम्भ ही वास्तव में उत्पाद योजना से होता है। निर्माण योजना का निर्माण विक्रय विभाग द्वारा की गई सम्भावित विक्रय की भविष्यवाणी के आधार पर किया जाता है। प्रबन्ध अंकेक्षक को देखना चाहिए कि उत्पादन योजना का निर्माण करते समय स्टॉक स्तरों को ध्यान में रखा गया है। प्रबन्ध अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि निर्माण कम्पनी में स्टॉक स्तरों का निर्धारण करते समय उत्पादन योजनाएँ बनायी गयी है तथा संस्थान में उपलब्ध कर्मचारियों व मशीनों का ध्यान रखा गया है। उत्पादन योजनाएँ वास्तविक व यथार्थ होनी चाहिए ताकि योजनाओं के तथ्यों को प्राप्त किया जा सके। प्रबन्ध अंकेक्षक को देखना चाहिए कि वास्तविक परिणार्मी की योजना से तुलना की जाती है या नहीं। वास्तविक परिणाम योजना के अनुरूप नहीं होने पर विचलनों को दूर करने हेतु क्या प्रयास किये गये हैं? क्या ये प्रयास पर्याप्त व सही दिशा में किये गये हैं?
- मशीन प्रयोग की समीक्षा (Review of Machine Utilization) – मशीनों में विनियोजित पूँजी भी उत्पादन लागत का एक महत्त्वपूर्ण भाग है और वर्तमान में मशीनें निरन्तर मनुष्य का स्थान लेती जा रही हैं। ऐसे में प्रबन्ध अंकेक्षक द्वारा मशीन के उचित उपयोग की समीक्षा किया जाना अत्यन्त आवश्यक है। अतः प्रबन्ध अंकेक्षक यह देखेगा कि मशीन का निर्धारित उद्देश्यों के लिए अधिकतम क्षमता के साथ प्रयोग हो रहा है। मशीन की सफाई समय पर होती है या नहीं तथा तेल आदि समय पर दिया जाता है या नहीं। प्रबन्ध अंकेक्षक को देखना चाहिए कि मशीनों की 100% क्षमता का उपयोग हुआ है या नहीं। संयंत्रों के उपयोग की समीक्षा करते समय प्रबन्ध अंकेक्षक को निम्नलिखित प्रश्न पूछने चाहिए :
- प्रबन्धकों के पास मशीन के प्रयोग व कार्यक्षमता को दर्शाने वाले कौन-कौन से तथ्य उपलब्ध हैं?
- क्या प्रबन्ध इन तथ्यों को अन्तिम रूप से विश्वसनीय मानता है?
- क्या विभिन्न निर्माण प्रक्रियाओं हेतु उद्योग में कोई मानक समय निर्धारित किया गया है?
- क्या संस्थान में इन प्रमापों का पालन किया जा रहा है?
- मूल रूप से संयत्र को क्रय करने का उद्देश्य क्या था? क्या प्रबन्ध द्वारा मशीन क्रय के पक्ष में कोई समुचित तर्क दिया गया था?
- क्या मशीनों का उतनी ही पाली में प्रयोग हो रहा है, जितनी पाली में इसके प्रयोग को न्याय संगत ठहराया गया है?
- श्रमशक्ति उपवीग की समीक्षा (Review of Manpower Utilization) – प्रवन्तःअंडा, निर्माण प्रक्रिया के प्रमुख तत्व मानव शक्ति के उपयोग की भी समीक्षा करेगा। न्यून उत्पादकता का प्रमुख कारण मशीन व श्रम शक्ति का सही उपयोग न होना भी है। अतः प्रकाशक को श्रम उत्पादकता की भी समीक्षा करनी चाहिए। प्रबन्ध अंकेक्षक भी देखना चाहिए कि उच्च उत्पादकता प्राप्त करने हेतु श्रमिकों को निम्नलिखित दशाएँ उपलब्ध करायी गयी है या नहीं.
- श्रमिकों की सभी आवश्यक औजार, सामग्री व शक्ति उपलब्ध कराये गये है;
- प्रत्येक श्रमिक व कर्मचारी को यह मालूम है कि उसे क्या करना है व उपक्रम उससे क्या अपेक्षाएँ रखता है;
- निर्धारित कार्य करने हेतु आवश्यक जान व चातुर्य प्रत्येक श्रमिक के पास विद्यमान है।
- प्रत्येक श्रमिक अच्छे मानवीय सम्बन्धी के प्रति अच्छी प्रतिक्रिया दर्शाता है;
- श्रमिकों में कार्य का वितरण कर दिया गया है व प्रत्येक श्रमिक अपना निर्धारित कार्य ही करता है।
- कार्य का प्रमापीकरण कर दिया गया है व प्रत्येक कार्य हेतु पृथक-पृथक प्रमाप श्रम दरी का निर्धारण कर दिया गया है। प्रबन्ध अंकेक्षक को अल्पकालीन श्रमिकों की नियुक्ति की प्रवृत्ति की भी समीक्षा करनी चाहिए। सामान्यतः ऐसा समझा जाता है कि इस प्रकार श्रमिकों की नियुक्ति से बचत होती है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। अल्पकालीन श्रमिकों की उत्पादकता कम होती है तथा उनके द्वारा उत्पादित वस्तु की किस्म भी घटिया होती है, अतः उपक्रम की ख्याति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार प्रबन्ध अंकेक्षक को ऐसी प्रवृत्ति पर रोक लगाने हेतु क्रियात्मक सुझाव देने चाहिए।
