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Home»Collage Study»अवबोध की प्रकृति एवं लक्षण
Collage Study

अवबोध की प्रकृति एवं लक्षण

adminBy adminJune 13, 2025Updated:June 13, 2025No Comments3 Mins Read
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अवबोध की प्रकृति एवं लक्षण
#collagestudy
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अवबोध की प्रकृति को निम्न बिन्दुओं के द्वारा समझा जा सकता है-

  1. बौद्धिक प्रक्रिया अवबोधन विधार चिन्तर तर्क एवं कल्पना से जुडी प्रक्रिया है। इसमे व्यक्ति विचारपूर्वक वातावरण से सूचनाओं को प्राप्त करके उन्हें संयोजित करता है तथा विचारों के आधार पर उनके अर्थ प्रतिपादित करता है।
  2. संज्ञानात्मक एवं मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अवबोध की प्रक्रिया में व्यक्ति के विचार, मनोवेग, भाव, आवेग, उ‌द्वेग परिकल्पना, अभिप्रेरण, अवलोकन, तर्क बुद्धि, दर दृष्टि आदि मानसिक क्रियायें सक्रिय हो जाती है। इनके द्वारा ही वह स्थिति व वातावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करते हुए अपने वैकक्तिक ‘अर्थ’ की संरचना करता है।
  3. व्यक्तिनिष्ठ प्रक्रिया ‘अवबोधन’ वातावरण या स्थिति को अपने व्यक्तिगत नजरिये से देखने व समझने की प्रक्रिया है। यह व्यक्ति के अपने लक्ष्यों स्वार्थी, दृष्टिकोण, जान, उसकी अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं एवं जरूरतों से प्रभावित होती है यही कारण है कि भिन्न-भिन्न व्यक्ति एक ही चीज को अलग-अलग नजरिये से देखते, समझते एवं अर्थ लगाते हैं। अवबोध की प्रक्रिया व्यक्ति के पास संग्रहित सूचनाओं, स्थिति की विशिष्ट पहलुओं, उनकी व्याख्या के ढंग तथा उन पर व्यक्ति की समझ व पकड़ से भी प्रभावित होती है। व्यक्तिनिष्ठता के कारण ही एक सत्य अथवा एक यर्थाथ भिन्न-भिन्न लोगो को अलग-अलग रुपों में नजर आता है।
  4. स्थिति का विवेचन, अभिलेखन नहीं अवबोध के अन्र्तगत व्यक्ति वास्तविक स्थिति को अपना अर्थ एवं व्याख्या प्रदान करता है, स्थिति को ज्यों का त्यो प्रस्तुत नहीं करता। यह छायाचित्र लेना नहीं वरन् वास्तविक जगत को अपनी समझ से चित्रित करना है। यह चित्र सबका भिन्न-भिन्न, अपूर्ण-आंशिक एवं गलत हो सकता है।
  5. संवेदना या उत्तेजना से अधिक जटिल एवं व्यापक संवेदना एवं अवबोधन को कई बार समान मान लिया जाता है, जबकि ऐसा नहीं है। संवेदना से आशय शारीरिक उत्तेजना अंगो के प्रतयुत्तर से है। मनुष्य की पाँच शारीरिक इन्द्रियों-दृष्टि, श्रवण, स्वाद, गंध एवं स्पर्श हैं जिन पर बाहर एवं भीतर से उत्पन्न होने वाले अनेक उदीपकों का निरन्तर प्रभाव पड़ता है। इससे संवेदन उत्पन्न होता है। संवेदन का मुख्य सम्बन्ध प्राथमिक व्यवहार से है जो अधिकांशतः शारीरिक क्रिया से निर्धारित होता है। संक्षेप में, वातावरण से सूचनायें प्राप्त करने की शारीरिक प्रक्रिया से निर्धारित होता है। संक्षेप में, वातावरण से सूचनायें प्राप्त करने की शारीरिक प्रक्रिया को ही संवेदना कहा जाता है। किन्तु अवबोधन संवेदना से अधिक जटिल एवं व्यापक प्रक्रिया है। बोधात्मक प्रक्रिया में सूचनाओं के चयन, संयोजन एवं विवेचन के अन्र्तव्यवहार की जटिल प्रक्रिया शामिल हैं। यद्यपि अवबोधन प्राथमिक सूचनाओं, संकेतों व प्रभार्वा के लिए अधिकांशतः भौतिक इन्द्रियों एवं उनके उत्तेजन पर ही निर्भर होता है किन्तु मस्तिष्क में चलने वालीसंज्ञानात्मक प्रक्रिया इन प्राथमिकताओं को शुद्ध परिष्कृत संशोधित पूर्णतः परिवर्तित कर सक‌ती हैं दूसरे शब्दों में बोधामक प्रक्रिया की दुनिया में कुछ जोडती है एवं कुछ पटाती है उदाहरण के लिए एक अधीनस्थ कर्मचारी कर उत्तर, वह जो अपने अधिकारी को सुनता है, उस पर निर्भर है, न कि अपने अधिकारी ‌द्वारा वास्तव में कही गई बात पर। इसी प्रकार एक ही श्रमिकका एक पर्यवेक्षक अच्छा मानता है, किन्तु दसरा पर्यवेक्षक उसे निकृष्ट मानता है, यह अन्तर अवबोध के कारण है।
  6. अवबोध के ‌द्वारा व्यक्ति अपने जीवन एवं अनुभवों को अर्थ प्रदान करते हैं।
  7. अवबोध पाँच मानवीय इन्द्रियाँ देखना सुनना, अनुभव करना, गंध सेना एवं स्वाद तथा चैतमा के साथ शुरू होता है।
  8. अवबोध की प्रक्रिया अनेक निहित अवरोधी के कारण सदैव प्रभावी नहीं होती है।
  9. असन्तुष्ट आवश्यकताओं का व्यक्ति के अवबोध पर अत्यन्त गहरा प्रभाव पड़ता है।

अवबोध की प्रकृति एवं लक्षण. एक बहुत ही प्रभाvशील क्रिया है Collagestudy

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