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Home»Accountancy»प्रबन्ध सूचना प्रणाली की विशेषताएँ
Accountancy

प्रबन्ध सूचना प्रणाली की विशेषताएँ

adminBy adminJune 11, 20252 Comments6 Mins Read
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प्रबन्ध सूचना प्रणाली की विशेषताएँ
प्रबन्ध सूचना प्रणाली की विशेषताएँ
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जेरान कान्टर ने प्रबन्ध सूचना प्रणाली की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं:

  1. प्रबन्धोन्मुखी (Management Oriented): प्रबन्ध सूचना प्रणाली की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह प्रबन्धोन्मुखी होती है। सूचना प्रणाली के द्वारा प्रबन्धक विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त करते है। सामान्यतः प्रबन्ध सूचना प्रणाली निम्न स्तर से उच्च स्तर को उपलब्ध करवाती है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रबन्ध सूचना प्रणाली निम्न प्रबन्ध को कोई सूचना ही नहीं देती है। इसका आशय तो यह है कि प्रबन्ध सूचना प्रणाली का निर्माण उच्च प्रबन्धकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है। निम्न प्रबन्धकों की आवश्यकताओं पर कम ध्यान दिया जाता है। वैसे प्रबन्ध सूचना प्रणाली मध्य (Middle) एवं क्रियात्मक (Operating) प्रबन्ध पर ही आधारित होती है तथा मध्य एवं क्रियात्मक प्रबन्ध ही MIS के लिए आधार स्तम्भ पर कार्य करता है। अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि प्रबन्ध सूचना प्रणाली प्रबन्धोमुखी होती है।
  2. प्रबन्ध निर्देशित (Management Directed): प्रबन्ध सूचना प्रणाली प्रबन्धोन्मुखी होती है व प्रबन्धकों को ही सूचना उपलब्ध करवाती है। अतः प्रबन्धकों को प्रवन्ध सूचना प्रणाली के क्रियान्वयन में सक्रिय भाग लेना चाहिए। प्रबन्धकों की भागीदारी के बिना ये प्रणालियों कभी भी सफल नहीं हो सकती है। प्रबन्धकों को चाहिए कि वे प्रबन्ध सूचना प्रणाली का ढाँचा तैयार करें, इसके मार्गों का निर्धारण करें, व समय-समय पर इस प्रणाली का मूल्यांकन कर इसमें सुधार करने का प्रयास करें।
  3. एकीकृत (Integrated): प्रवन्ध सूचना प्रणाली की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह एक एकीकृत विचारधारा है। इस विशेषता के अनुसार प्रबन्ध सूचना प्रणालियों का ढाँचा इस प्रकार बनाया जाना चाहिए कि भिन्न-भिन्न स्रोत से जो भी सूचनाएँ एकत्रित की जायें उन्हें इस प्रकार समन्वित रूप से प्रस्तुत किया जाय कि उनसे कोई निष्कर्ष निकाला जा सके। जेरोन कान्टर के शब्दों में “यदि प्रबन्ध एक प्रभावपूर्ण उत्पादन अनुसूचियन प्रणाली का विकास करना चाहता है तो उसे स्थापना लागतों, कार्य शक्ति (Power), ओवर टाईम दरों, उत्पादन क्षमता, इन्वेंन्ट्री स्तरों, ग्राहक सेवा, एवं पूँजी आवश्यकताओं आदि घटकों के मध्य संतुलन स्थापित करना होगा।” इन घटकों में से किसी भी घटक की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। स्पष्ट है कि प्रबन्ध सूचना प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो इन समस्त सूचनाओं को एक साथ रखकर प्रबन्धकों के समक्ष संस्था का सही चित्र प्रस्तुत कर सके।
  4. उभयनिष्ठ समंक प्रवाह (Common Data Flower): प्रबन्ध सूचना प्रणाली का ढाँचा इस प्रकार का होना चाहिए कि जो भी समंक व सूचनायें एकत्र की जायें उनका प्रवाह बना रहे व प्रबन्धकों को उनसे आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त हो सकें। सूचनाओं के एकत्रीकरण व भण्डारण आदि में दोहराव नहीं होना चाहिए। दोहराव होने से मितव्ययता भी नहीं मिलती है व समय का भी काफी अपव्यय होता है तथा प्रणालियों उलझनपूर्ण हो जाती हैं। व्यावहारिक रूप में समंकों के निर्वाध प्रवाह की व्यवस्था करना बहुत ही कठिन कार्य है। अतः कुछ ऐसे साधन तैयार किये जाने चाहिए जो सभी महत्त्वपूर्ण क्रियाओं के सम्बन्ध में सूचना दे सकें, यथा ग्राहक आदेश पत्र। यह प्रलेख आदेश प्राप्ति के लिए लेखा, बिलिंग, उत्पादन, विक्रय आदि के सम्बन्ध में सूचनाओं के लिए आधार का कार्य करता है।
  5. नियोजन (Planning): प्रबन्ध सूचना प्रणालियों का निर्माण बहुत ही सोच-समझकरनियोजित तरीके से करना चाहिए। प्रबन्ध सूचना प्रणालियों का निर्माण तात्कालिक व भावी दोनों आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए ताकि ये प्रणालियों पर्याप्त समय तके संस्था की आवश्यकताओं को पूरी करती रहें। प्रबन्ध सूचना प्रणालियों का विकास एक-दो दिनों में नहीं किया जा सकता। प्रबन्ध सूचना प्रणालियों के विकास में 5 वर्ष तक का समय लग जाता है जबकि इनकी स्थापना में तो और भी अधिक समय लग सकता है क्योंकि इनका निर्माण व विकास नियोजित तरीके से करना पड़ता है। यदि प्रबन्ध सूचना प्रणाली अल्प समय में ही संस्था के लिए अनुपयुक्त साबित हो तो इससे बहुत हानि हो सकती है। जिस प्रकार किसी सड़क का निर्माण करते समय सड़क पर से गुजरने वाले भावी यातायात को ध्यान में रखना पड़ता है ठीक उसी प्रकार प्रकार सूचना प्रणाली का निर्माण भी भावी उद्देश्यों व आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ही करना चाहिए।
  6. उप-प्रणालियाँ (Sub-Systems): प्रबन्ध सूचना प्रणाली अपने आप में एक पूर्ण इकाई होती है, वास्तव में ऐसा नहीं है। प्रबन्ध सूचना प्रणाली अनेक उप-प्रणालियों से मिलकर बनती है, यथा नियोजन उप-प्रणाली, वित्त उप-प्रणाली विक्रय उप-प्रणाली, सामग्री नियन्त्रण उप-प्रणाली, श्रम नियन्त्रण उप-प्रणाली, लेखाकर्म उप-प्रणाली आदि। इन उप-प्रणालियों का भी विभाजन हो सकता है। ये सभी उप-प्रणालियाँ मिलकर ही प्रबन्ध सूचना प्रणाली को जन्म देती हैं। इन उप-प्रणालियों की संख्या व आकार प्रबन्धकीय कुशलता व संस्था के आकार व स्वभाव के अनुसार निर्धारित होता है।
  7. केन्द्रीय समंक आधार : प्रबन्ध सूचना प्रणाली के अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने के लिए संस्था में समंक उपलब्ध करवाने के लिए किसी केन्द्रीय व्यवस्था का होना बहुत ही आवश्यक है। प्रबन्ध सूचना प्रणाली में सभी समंक एक केन्द्रीय स्थान पर समन्वित रूप से संग्रहित कर उनका विभिन्न क्रियात्मक क्षेत्रों में प्रयोग होना चाहिए। इस कार्य के लिए किसी एक केन्द्रीय स्थान पर विभिन्न क्रियात्मक क्षेत्रों से सम्बन्धित पृथक-पृथक फाइलें रखनी चाहिए तथा इन फाइलों से विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ प्रदान की जानी चाहिए।
  8. कम्प्यूटरों का प्रयोग (Use of Computers) : आधुनिक युग में प्रतिस्पर्धा व जटिलता में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। अतः इन जटिलताओं का मुकाबला करने के लिए कम्प्यूटर आदि का प्रयोग बढ़‌ता जा रहा है। आज प्रत्येक क्षेत्र में कम्प्यूटर का प्रयोग हो रहा है तो फिर प्रबन्ध सूचना प्रणाली ही इससे अछूती कैसे रह सकती है। प्रबन्ध सूचना प्रणाली में कम्प्यूटर का प्रयोग करने से सूचनाएँ अधिक शुद्ध व सत्यता के निकट होती हैं। सूचनाओं का एकत्रीकरण, संग्रहण, वर्गीकरण आदि सभी कम्प्यूटर की सहायता से करने पर कार्य तीव्र गति से एवं पूर्ण शुद्धता से किया जा सकता है। विकसित राष्ट्रों की प्रबन्ध सूचना प्रणालियों तो कम्प्यूटर को एक अनिवार्य आवश्यकता मान कर संचालित की जाती हैं।
  9. उपयोगिता (Utitlity): जो भी सूचना संग्रहित की जाये उसका कुछ न कुछ उपयोगअवश्य होना चाहिए। सूचना संग्रहण करने में समय, श्रम तथा धन व्यय करना पड़ता है। अतः सूचना न केवल उपयोगी ही होनी चाहिए वरन् यह उपयोगिता सूचना संग्रहण में किये गये व्यय से अधिक होनी चाहिए। जिन सूचनाओं से कोई उपयोगिता प्राप्त नहीं होती है उनका संग्रहण अविलम्ब बन्द कर देना चाहिए।

प्रबन्ध सूचना प्रणाली की विशेषताएँ : महत्वपूर्ण सूचनाएं

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