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Home»Collage Study»सीखने के विभिन्न सिद्धान्त
Collage Study

सीखने के विभिन्न सिद्धान्त

adminBy adminMay 12, 2025Updated:May 13, 2025No Comments4 Mins Read
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सीखना मानव व्यवहार का एक महत्वपूर्ण पहलू है। सीखने की संज्ञानात्मक एवं सामाजिक विचारधाराएं अत्यन्त महत्वपूर्ण होती जा रही है किन्तु फिर भी सीखने की प्रक्रिया के अधिकतर सिद्धान्त सुगम व सक्रिय अनुबन्धन विचारधाराओं से विकसित हुए हैं।

सीखने के कुछ प्रमुख सिद्धान्त –

  • (1) सीखना – अर्जन वक्र सिद्धान्त :- सीखने की प्रक्रिया में यह सिद्धान्तबतलाता है कि ‘प्रत्येक पुनरावृत्ति प्रयास के लिए प्रत्युत्तर की शक्ति धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। यह सिद्धान्त मुख्य रूप से सुगम व्यवस्थित अनुबन्धन दृष्टिकोण में लागू होता है किन्तु सक्रिय अनुबन्धन में भी इसका प्रयोग होता है। अर्जन वक्र एक सीखना वक्र है जिसमें शीर्ष पर मापित निष्पादन तथा क्षैतिज धुरी पर अभ्यास या अनुभव की मात्रा को दर्शाया जाता है।
  • (2) विलोप का सिद्धान्त- विलोप का सिद्धान्त गहन रूप से पुनर्बलन से जुड़ा हुआ है। सरल अनुबन्धन में यदि अनुकूलित उद्दीपन को गैर-अनुकूलित उद्दीपन द्वारा पुर्नबलित नहीं किया जाता है, तो अनुकूलित प्रत्युत्तर कमजोर पड़ जाता है और अन्ततः लुप्त हो जाता है उदाहरण पॉवलॉव के प्रयोग में, यदि जब घंटी बजाई जाती है तब यदि मीट का टुकड़ा कुत्ते को नहीं दिखाया जाये तो कुत्ते की लार टपकनी धीरे-धीरे कम होती जायेगी और अन्ततः यह विलुप्त हो जायेगी। फिर घण्टी के साथ लार नहीं टपकेगी।
  • (3) सहज या स्वतः समुत्थान – सीखने का यह सिद्धान्त बतलाता है कि जबव्यक्ति असमर्थित व असंबलित अनुकूलित प्रत्युत्तरों के एक अनुक्रम का अनुभव करते हैं तथा विश्राम ले लेते हैं तो उसके तुरन्त बाद वे अनुकूलित प्रत्युत्तर के अत्यधिक तीव्र स्तर पर लौट आते हैं। कोई पुनर्बलन नहीं हुआ हो, विश्राम के बाद प्रत्युत्तर शक्ति में यह उछाल ही स्वतः प्रवर्तित समुत्थान का सिद्धान्त कहलाता है।
  • (4) सामान्यीकरण सिद्धान्त – सीखने की प्रक्रिया में सामान्यीकरण सिद्धान्त यह बतलाता है कि एक नया, किन्तु एक जैसा, उद्दीपन या उद्दीपन स्थिति एक ऐसे प्रत्युत्तर को जन्म देती है ठीक वैसा ही होगा जैसा कि मूल उद्दीपन द्वारा उत्पन्न किया जाता है। नया उद्दीपन, जितना अनुकूलित उद्दीपन जैसा होगा, उतना ही अधिक यह सम्भावना होगी कि नया उद्दीपन वही अनुकूलित प्रत्युत्तर उत्पन्न करे। इस सिद्धान्त का मानव शिक्षण में अत्यन्त महत्व है। व्यक्तियों को प्रत्येक नई स्थितियों व कार्यों में, जिनका उन्हें सामना करना पड़ता है, पुनः सीखना नहीं पड़ता है। व्यक्ति नई सीखने वाली स्थितियों में, अपने पुराने अनुभवों का सहारा लेकर सुगमतापूर्वक समायोजन कर सकते हैं।
  • (5) विभेदीकरण का सिद्धान्त – सीखने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में विभेदीकरणका सिद्धान्त सामान्यीकरण से बिल्कुल विपरीत है। सामान्यीकरण उद्दीपनों या प्रत्युत्तरों की समानता के सम्बन्ध में प्रतिक्रिया है, जबकि विभेदीकरण अन्तरों के प्रति प्रतिक्रिया है। इस सिद्धान्त को पॉवलॉव के प्रयोग के उदाहरण से समझा जा सकता है। यदि यह प्रयोग किया जाए कि कुत्ते को तभी भोजन मिलेगा जबकि घन्टी बजे और साथ ही लाइट भी जले और उसे तब भोजन नहीं दिया जाए जब घन्टी तो बजे किन्तु लाइट बन्द हो तो कुत्ता शीघ्र ही दोनों उद्दीपकों में भेद करना सीख लेगा। कुत्ता तभी प्रत्युत्तर देगा जबकि दोनों उद्दीपकों में भेद करना सीख लेगा तथा दोनों उद्दीपक (घन्टी व लाइट) प्रस्तुत किये जाये। एक उद्दीपक पस्तुत करने पर कुता प्रत्युत्तर (लार टपकाना) नहीं देगा।
  • (6) तत्परता का नियम – सीखने के इस नियम का सम्बन्ध प्रभाव तथा अभ्यास से है जो इस बात पर बल देता है कि जब व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक रूप से तैयार होता है तभी वह किसी कार्य को सफलतापूर्वक सीख सकता है।
  • (7) अभ्यास का नियम – अभ्यास का नियम कार्य की बारम्बारता पर बल देता है। प्रायः जिस कार्य को हम बार-बार करते है उसके चिन्ह हमारे मस्तिष्क में दृढ़ हो जाते हैं।
  • थॉर्नडाइक के अनुसार –
  • (1) जब एक परिवर्तनीय संयोग एक स्थिति और अनुक्रिया के बीच बनता है तो अन्य बातें समान होने पर संयोग की शक्ति बढ़ जाती है।
  • (2) जब कुछ समय तक स्थिति और अनुक्रिया के बीच एक परिवर्तनीय संयोग नहीं बनता है तो उस संयोग की शक्ति घट जाती है।
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