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Home»Collage Study»संगठनात्मक व्यवहार की प्रकृति, क्षेत्र तथा महत्व
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संगठनात्मक व्यवहार की प्रकृति, क्षेत्र तथा महत्व

adminBy adminMarch 27, 2025No Comments6 Mins Read
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संगठनात्मक की प्रकृति :-

(1) अध्ययन क्षेत्र :- संगठनात्मक व्यवहार अध्ययन का एक क्षेत्र है। यह अपेक्षाकृत नया क्षेत्र है किन्तु यह अध्ययन का एक पृथक विषय है। अभी यह पूर्ण एवं मान्य विज्ञान नहीं है। ज्ञान का अभी व्यवस्थीकरण नहीं हुआ है तथा इसके सिद्धान्त एवं अवधारणाएं दूसरे विषयों से ग्रहण की जा रही है।

(2) अध्ययन की विषय वस्तु संगठनात्मक व्यवहार में कुछ विशेष पहलुओं का अध्ययन किया जाता है जिनमें निम्नांकित पमुख है –

(1) एकाकी व्यक्ति

(2) व्यक्तियों का समूह

(3) संरचना

(4) तकनीक

(5) वातावरण आदि।

(3) आशावादी :- संगठनात्मक व्यवहार की मूल धारणा आशावाद पर केन्द्रित है। प्रत्येक व्यक्ति में असीम क्षमताएँ हैं, वह सृजनशील है, आत्मनिर्भर है, उत्पादक है तथा वह संगठन में सहयोग की भावना रखता है।

(4) सेवायोजन सम्बन्धी व्यवहार का अध्ययन :– संगठनात्मक व्यवहार सेवायोजन सम्बन्धी व्यवहार एवं वातावरण का अध्ययन करता है। यह कर्मचारियों के कार्यों, उपस्थिति, आवर्तन, उत्पादकता, नेतृत्व, संचार व्यवस्था, समूह में आपसी सम्बन्ध, कार्यतनाव आदि से सम्बन्धित पहलुओं का अध्ययन करता है।

(5) व्यावहारिक विज्ञान :– संगठनात्मक व्यवहार एक प्रयुक्त एवं प्रायोगिकविज्ञान है। इसके क्षेत्र में किये जाने वाले अनुसंधान, अध्ययनों तथा अवधारणात्मक विकासों से इसका वैज्ञानिक आधार मजबूत होता जा रहा है। कर्मचारी व्यक्तित्व, अभिवृत्तियाँ, मूल्य, प्रेरणा, सन्तुष्टि, अवबोध तथा मानवीय व्यवहार के अन्य पहलुओं के सम्बन्ध में निरन्तर शोध किये जा रहे हैं।

(6) वातावरण से सम्बद्ध :– संगठनात्मक व्यवहार संगठन के आन्तरिक एवं बाह्य वातावरण का अध्ययन करते हुए मानवीय व्यवहार को समझने पर बल देता है। व्यक्ति के निजी एवं समूह व्यवहार पर संगठन के परिवेश, नीतियाँ पारस्परिक विचारों के साथ-साथ बाह्य दशाओं एवं मूल्यों का भी प्रभाव पड़ता है।

(7) उद्देश्य :- संगठनात्मक व्यवहार व्यक्तियों एवं समूहों के अध्ययन पर केन्द्रित है किन्तु इसका प्रमुख उद्देश्य संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति में सहयोग करना है। यह समन्वयवादी दृष्टिकोण रखते हुए “व्यक्ति” एवं “संगठन” के हितों को एकीकृत करने का प्रयास करता है।.

(8) कला एवं विज्ञान :- संगठनात्मक व्यवहार व्यक्तियों के व्यवहार के कारणोंएवं परिणामों के बीच निश्चित सम्बन्ध खोजने का प्रयास करता है। इसके लिए यह सिद्धान्तों, तकनीकों एवं तकों का प्रयोग करता है। इस प्रकार व्यवहार के सम्बन्ध में यह वैज्ञानिक दृष्टि अपनाता है।

संगठनात्मक व्यवहार का क्षेत्र :– संगठनात्मक व्यवहार का अध्ययन प्रबन्ध के व्यवहारवादी दृष्टिकोण का आधार है। संगठनात्मक व्यवहारों की अभिव्यक्ति संगठन गतिशीलता, संघर्ष, परिवर्तन एवं समायोजन आदि रूपों में होती है। प्रबन्ध की आकस्मिक विचारधारा यह बतलाती है कि वांछित व्यवहार की मात्रा एवं किस्म संगठनात्मक वातावरण तथा इसके सदस्यों की विशेषताओं पर निर्भर करती है। एक अन्य विचारधारा इस बात पर बल देती है कि सभी संगठनों को कुछ निश्चित आदर्शों जैसे सहभागिता, खुलापन आदि दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए।इसके क्षेत्र में निम्नलिखित विषयों को सम्मिलित किया जा सकता है –

  • • नेतृत्व एवं पर्यवेक्षण
  • • संदेशवाहन, मात्रा एवं गुणवत्ता
  • • अन्तरसमूह सम्बन्ध एवं एकीकरण
  • • समस्या समाधान
  • • नियोजन एवं लक्ष्य निर्धारण
  • • समूह एवं सभा प्रक्रियण
  • • संघर्ष प्रबन्ध
  • • अन्तरवैयक्तिक सम्बन्ध
  • • निर्णयन प्रक्रिया
  • • मूल्यांकन एवं नियंत्रण प्रक्रिया
  • • निर्णयन प्रक्रिया
  • • मूल्यांकन एवं नियंत्रण प्रक्रिया
  • • आलोच्य एवं नवीनीकरण प्रक्रिया

रोबिन्स तथा कीथ डेविस ने भी संगठनात्मक व्यवहार के क्षेत्र में इन विन्दुओं के साथ परिवर्तनों के प्रबन्ध टेक्नोलॉजी तथा व्यक्ति, कार्य जीवन की किस्म, समान, रोजगार अवसर, दबाव एवं परामर्श, आर्थिक प्रेरणात्मक पद्धति आदि को भी सम्मिलित किया है। संगठनात्मक व्यवहार का क्षेत्र दिनों-दिन व्यापक होता जा रहा है। अब इसमें व्यक्ति, समूह, संगठन संरचना के साथ मानवीय व्यहारों की सम्पूर्णता पर बल दिया जा रहा है। व्यवहारवादी वैज्ञानिक अपना ध्यान संगठनात्मक विचारधाराओं, विशेषतः संगठनात्मक समायोजनशीलता तथा मानवीय व्यवहारों पर ही केन्द्रीत करते हैं।

संगठनात्मक व्यवहार का महत्व –

(1) मानवीय व्यवहार को समझने के लिए मानवीय व्यवहार के विभिन्न स्तरों का विश्लेषण करने का यह प्रमुख उपकरण है। यह व्यक्तिगत, अन्तः वैयक्तिक समूह तथा अन्तर-समूह स्तर पर प्रबन्धकों के लिए व्यक्तियों के व्यवहार को समझने में सहायक होता है। संगठनात्मक व्यवहार के द्वारा प्रबन्धक संगठन में कार्यरत कर्मचारी को समग्र मानव के रूप में बेहतर अन्तः वैयक्तिक व्यवहारों की जटिलता को समझ सकता है तथा मनुष्यों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन या सुधार ला सकता है। इससे व्यक्ति की कार्य करने की मनःस्थिति, रूझान, कार्य-सन्तुष्टि, प्रतिक्रिया, तत्परता, कार्य निष्ठा, कार्य के प्रति दृष्टिकोण आदि को समझा जा संकता है। इसके ज्ञान से मानवीय सम्बन्धों में सुधार लाया जा सकता है।

(2) समूह गति का ज्ञान :- संगठनात्मक व्यवहार में व्यक्तियों के व्यवहार कासमूह स्तर पर अध्ययन किया जाता है। एक संगठन में अनेक समूह कार्यरत रहते हैं, जिनमें तनाव, संघर्ष, प्रतिस्पर्धा तथा मतभेद चलते रहते है तथा जिनका संगठन की कार्य पणाली एवं आपसी सम्बन्धों पर गहरा प्रभाव होता है। छोटे समूहों के सम्बन्धों की गातेशी जतः को बेहतर रूप में समझा जा सकता है तथा समूह के कार्य करने की पद्धति, सम्प्रेषण, नेतृत्च प्रभाव आदि के बारे में यथार्थ ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

(3) व्यवहार को नियन्त्रित एवं निर्देशित करना :– संगठनात्मक व्यवहारमानवीय व्यवहार को निर्देशित एवं नियंत्रित करने में भी अहम भूमिका निभाता है। इसके द्वारा उन तरीकों का अध्ययन किया जाता है जिनसे सत्ता का दुरूपयोग रोकते हुए संगठनात्मक एवं व्यक्तिगत उद्देश्यों में प्रभावी सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है तथा संगठनात्मक वातावरण में वांछित सुधार किया जा सकता है।

(4) मानव संसाधन प्रबन्ध का आधार :– मानव संसाधन प्रबन्ध का आधार संगठनात्मक व्यवहार ही है। इसके द्वारा अधिकांश मानवीय सम्बन्धों का मानवीय ढंग से समाधान किया जा सकता है| न्यूट्रॉम तथा कीथ डेविस के अनुसार ’ संगठनात्मक व्यवहार मानवीय लाभ के लिए मानवीय उपकरण है|

(5) संगठनों को परिवर्तन के अनुकूल बनाना :- संगठनात्मक व्यवहार के द्वारासंगठन को परिवर्तनों के अनुकूल बनाया जा सकता है तथा परिवर्तन को प्रभावी तौर से लागू करने हेतु उपयुक्त वातावरण का निर्माण किया जा सकता है।

(6) उपभोक्ता व्यवहार की कुंजी :- संगठनात्मक व्यवहार का अध्ययन विपणके क्षेत्र में भी उपयोगी हैं। सम्पूर्ण विपणन क्रियाओं का केन्द्र-बिन्दु उपभोक्ता भण्डार है।

(7) व्यैक्तिक कौशल के विकास में सहायक :- प्रबन्ध के क्षेत्र में तकनीकीयोग्यता से भी अधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति के योग्यता हो गई है। व्यक्तियों के व्यक्तित्व को ठीक से समझ लेना प्रबन्धकों के लिए सुगम नहीं है। इसके लिए संगठनात्मक व्यवहार का ज्ञान होना अति आवश्यक है।

(8) उच्च उत्पादकता एवं श्रेष्ठ परिणाम :- संगठनात्मक व्यवहार उत्पादकतादृष्टिकोण पर भी आधारित है। यह वैयक्तिक एवं समूह व्यवहार पर नियंत्रण करके संगठन की उत्पादकता में वृद्धि करने तथा श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करने पर बल देता है। यह श्रेष्ठ परिणामों के आधार पर संगठन को प्रभावी बनाता है।

(9) संस्था की सफलता :- संगठनात्मक व्यवहार के द्वारा व्यक्तियों एवं समूहों केव्यवहार को समझने एवं पूर्वानुमान करने में सुविधा रहती है। इससे कर्मचारियों को उचित निर्देश देकर उनकी क्षमताओं एवं योग्यताओं का संस्था के हित में उपयोग किया जा सकता है।

(10) प्रबन्धकीय जीवनवृत्ति में सुविधा :- संगठनात्मक व्यवहार के कारण युवा पीढ़ी को प्रबन्धकीय जीवनवृत्ति में प्रवेश के नये-नये अवसर प्राप्त होते हैं। संगठनात्मक व्यवहार का अध्ययन कर लेने के फलस्वरूप वे प्रबन्ध क्षेत्र में अधिक सफल हो सकते हैं।

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