संगठन की विचारधारा से आपका क्या आशय है
संगठन की आधुनिक एवं परंपरागत विचारधारा :- संगठन के सिद्धान्त’ पर एक लेख लिखिए
संगठन की विचारधारा का विकास पिछले सात-आठ दशकों में ही हुआ है। प्रबन्धकीय ज्ञान के विकास के साथ-साथ इन विचारधाराओं की संरचना, प्रक्रिया मूल्यों व सिद्धान्तों में भी बदलाव आए हैं। संगठनों की प्रकृति, सामाजिक मूल्यों व बदलते हुए वातावरण के आधार पर इन्हें प्रमुख रूप से निम्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है
(1) संगठन की परम्परावादी विचारधारा – इस विचारधारा के प्रमुखप्रतिपादक मैक्स वेबर एवं हेनरी फेयोल माने जाते हैं। परम्परागत विचारधारा संगठन को किसी उपक्रम के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति का एक साधन मानती है। संगठन को कार्य निर्धारण, साधनों के एकत्रीकरण तथा अधिकारों व दायित्वों के विभाजन की एक प्रक्रिया तथा संयोजन जो संगठन प्रक्रिया का ही परिणाम होता है, के रूप में स्वीकार करती है। यह विचारधारा संगठन को एक ‘औपचारिक व्यवस्था एक मशीन, एक उपकरण मानती है।
संगठन की परम्परावादी विचारधारा औपचारिक संगठन की संरचना का अध्ययन करती है। इस विचारधारा के मुख्य तत्व निम्न है –
श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण :– संगठन के समस्त कार्यों का विशिष्टीकरण के सिद्धान्त के आधार पर विभाजन कर दिया जाता है। प्रत्येक कर्मचारी का कार्य एक विशिष्ट क्रिया होती है।
औपचारिक संरचना :- संगठन में पदों, कार्यस्थितियों, भूमिकाओं, प्रकार्यों कृत्यों आदि की एक प्रमापित संरचना होती है जिसमें उपक्रम के उद्देश्यों को कुशलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है।
उद्देश्य :- परम्परागत संगठन के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाता. है। प्रत्येक पद एवं कार्य के लक्ष्यों की भी व्याख्या की जाती है।सौपानिक व्यवस्था संगठन का ढाँचा, पदों, दायित्वों, अधिकारों के विभिन्नस्तरों में बँटा होता है। आदेश, सत्ता एवं उत्तरदायित्वों का प्रवाह ऊपर से नीचे तक रेखाबद्ध होता है।
नियंत्रण का क्षेत्र : – प्रत्येक प्रबन्धक के नियंत्रण का एक निश्चित क्षेत्र होता है।
यह संकल्पना बताती है कि एक प्रबन्धक कितने अधीनस्थों के कार्यों का प्रभावशाली ढंग से निरीक्षण कर सकता है।
परम्परावादी विचारधारा का मूल्यांकन:- यह विचारधारा आधुनिक युग में भीअत्यंत महत्व रखती है। बड़े-बड़े उपक्रमों की संगठन संरचना इसी विचारधारा के सिद्धान्तों पर आधारित है। इस विचारधारा के प्रमुख गुण निम्नांकित है –
1. यह कर्मचारियों को मौद्रिक लाभों के आधार पर उत्प्रेरित करती है।
2. यह संगठन में कर्मचारियों की भूमिकाओं, कार्यों, अधिकारों व दायित्वों के मध्य भ्रम एवं संघर्ष दूर करके इनको स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है।
3. यह उत्पादन, प्रकार्य एवं कार्यकुशलता का महत्वपूर्ण आधार प्रस्तुत करती है।
4. यह उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होती है।।
5. यह संगठन में निष्पक्षता, निश्चितता, विवेकशीलता, स्थायित्व, विशिष्टीकरण, पूर्वानुमान, क्षमता, प्रजातंत्र आदि को प्रोत्साहित करती है।
6. यह व्यवस्था एवं कार्यों पर नियंत्रण रखती है।
संगठन की परम्परावादी विचारधारा आलोचना निम्न दोषों पर आधारित है-
1. इस विचारधारा को अपनाने वाले संगठनों में कार्यकुशलता की लागत बहुत अधिक होती है।
2. इसमें प्रबन्धकों के व्यवहार का ढंग पूर्णतः अवैयक्तिक, तानाशाह एवं साम्राज्यिक होता है। उनका व्यवहार यांत्रिक एवं रूखा होता है।
3. यह संगठन के भागों, अंगों तथा पृथक क्रियाओ पर बल देती है तथा उनके अन्तर्सम्बन्ध को भुला देती है।
4. यह मानवीय पहलुओं की उपेक्षा करती है।
5. यह बंद प्रणाली मान्यताओं पर आधारित है।
(2) संगठन की नवीन परम्परावादी विचारधारा :- 1930 के लगभग प्रबन्ध जगत में मानवीय सम्बन्धों की विचारधारा का सूत्रपात हुआ। एल्टन मेयो तथा उनके सहयोगियों ने वैस्टर्न इलैक्ट्रिक कम्पनी के हॉथर्न संयन्त्र में किये गये परीक्षणों के निष्कर्ष प्रस्तुत किये।
संगठन में मानवीय तत्व, मानवीय सम्बन्धों तथा मानवीय व्यवहार के आविर्भाव के साथ ही संगठन की नवीन परम्परावादी विचारधारा का जन्म होता है। यह विचारधारा संगठन के मानवीय पक्ष को उजागर करती है। यह विचारधारा संगठन में कर्मचारियों की सामाजिक व मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की संतुष्टि पर बल देती है।
नवीन परम्परावादी विचारधारा की मान्यताए:- संगठन की नवीन परम्परावादी विचारधारा निम्नलिखित तत्वों पर आधारित है –
(1) परम्परावादी विचारधारा के आधार स्तम्भों में सुधार :- नवीन विचारधारा ने परम्परावादी विचारधारा के कई सिद्धान्तों की कमियों को उजागर किया तथा उनमें सुधार का मार्ग प्रशस्त किया। उदाहरण के लिए नवीन विचारकों ने विशिष्टीकरण के कारण संगठन में कर्मचारियों में उत्पन्न होने वाले पृथक्करण, एकांगी विकास तथा एकरसता की ओर ध्यान आकृष्ट किया जाता था।
(2) अनौपचारिक संगठन :- परम्परावादियों का दृष्टिकोण औपचारिक संगठन तक ही सीमित था। नवीन परम्परावादियों ने स्पष्ट किया कि कार्य स्थितियों में अनौपचारिक समूहों की भूमिका को मान्यता प्रदान की जानी चाहिए।
(3) सामाजिक मनुष्य की अवधारणा :- संगठन में कार्यरत कर्मचारी केवल आर्थिक मनुष्य ही नहीं, वरन् सामाजिक मनुष्य भी है। वे मुद्रा के अतिरिक्त सामाजिक सम्बन्धों, सहयोग, सामाजिक, समूह सदस्यता आदि से भी उत्प्रेशित होते हैं।
(4) उत्पादकता एक सामाजिक घटना भी:- संगठन की उत्पादन क्षमता परभौतिक वातावरण के साथ-साथ सामाजिक तत्वों, जैसे मनोबल, संतुष्टि आदि का भी गहन प्रभाव पड़ता है।
गुण :-
(1) यह विचारधारा अधिक यथार्थवादी है।
(2) यह कार्य सन्तुष्टि, मनोबल एवं उत्पादकता में वृद्धि करती है।
(3) यह संगठन को व्यवहारवादी आयाम प्रदान करती है।(
4) यह अन्तर्विषयक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करती है।
(5) यह संगठन विचारधारा मेकग्रेगर की वाई मान्यताओं के अनुकूल है।
दोष:-
(1) यह विचारधारा अक्षमता, अल्पकालीन परिप्रेक्ष्य तथा मानवीय व्यवहार के विभिन्न पहलुओं में एकीकरण के अभाव जैसे दोषों से ग्रसित है।
(2) कुछ आलोचकों के अनुसार इस विचारधारा में मानवीय सम्बन्धों का उपयोग व्यक्तियों को कठपुतलियों की भाँति नचाने के लिए किया जाता है।
(3) संगठन की आधुनिक विचारधारा :- संगठन संरचना किसी चार्ट पर बनायेगये खानों से कुछ अधिक है। यह अन्र्तक्रियाओं तथा समन्वय का प्रारूप है जो प्रौद्योगिकी, प्रकार्यों तथा संगठन के मानवीय संघटकों को जोड़ता है ताकि संगठन अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल हो सके ।
“संगठन दो या दो से अधिक व्यक्तियों की सचेत रूप से समन्वित क्रियाओं की एक प्रणाली के रूप में पहचाना जाता हैं इस प्रकार संगठन में प्रणाली एवं व्यक्तियों पर बल देकर संगठन विचारधारा को एक नए आयाम प्रदान किये जाते हैं। संगठन चार्ट पर बने खाने नहीं, वरन् व्यक्ति संगठन का निर्माण करते हैं। 1960 से ही संगठन की आधुनिक विचारधारा का प्रारम्भ माना जाता है। आधुनिक विचारधारा निम्न चार दिशाओं में विकसित हुई है –
(i) संगठन की व्यवहारवादी विचारधाराएँ,
(ii) संगठन प्रणाली विचारधारा,
(iii) संगठन की सूचना संसाधन विचारधारा तथा
(iv) आकस्मिकता संगठन विचारधारा।
(4) अन्य संगठन विचारधाराएँ :- संगठन विचारधाराओं की तीन ही श्रेणियाँ है। किन्तु आधुनिक दृष्टिकोण को ही अपनाते हुए कुछ विद्वानों ने संगठन की कुछ और विचारधाराओं का प्रतिपादन किया है। इनमें कुछ प्रमुख निम्नांकित है –
(1) निर्णयन विचारधारा :- इस विचारधारा का विकास हर्बर्ट साइमन ने कियाहै। संगठन से तात्पर्य ‘व्यक्तियों के समूह में सम्प्रेषणों व अन्य सम्बन्धों की जटिल संरचना’ से है। यह संरचना समूह के प्रत्येक सदस्य को सूचना, मान्यताएं, लक्ष्य व अभिवृत्तियाँ उपलब्ध कराती है जो उसके निर्णयों के लिए आवश्यक होती है।
(2) जैविक विचारधारा :- संगठन प्रणाली के शरीर की भाँति है। जिस प्रकारप्राणियों के जैविक अवयवों का विकास होता है, उनमें परिवर्तन होते हैं और उनका क्षय होता है, ठीक उसी प्रकार संगठन विकसित होते हैं, पनपते हैं, परिवर्तित होते हैं और सम समाप्त हो जाते हैं। संगठन के बढ़ते रहने के साथ-साथ भीतरी एवं बाहरी सम्बन्धों की एक निश्चित प्रणाली विकसित होती है।
(3) सुगठित अनुकूली संगठन विचारधारा:- संगठन की ‘सुगठित अनुकूलीविचारधारा’ के प्रमुख लक्षण निम्न प्रकार है-
(i) यह संगठन प्रारूप बदलते हुए वातावरण के साथ समायोजन एवं अनुकूलन करने में समर्थ है।
(ii) यह संगठन संरचना तेजी से बदलती है, अतः अस्थायी है।
(iii) यह संरचना समस्याओं के समाधान के लिए संरचित की जाती है।
(iv) गलन प्रक्रिया विचारधारा :- परम्परागत संगठन में संगठन कीआवश्यकताओं तथा परिपक्व कर्मचारी की आवश्यकताओं के मध्य एक असंगति बनी रहती है। परम्परागत संगठन विचारधारा में व्यवहारवादी संवेदनशीलता का अभाव बना रहता है।
Bयह विचारधारा मानती है कि संगठन औपचारिक एवं अनौपचारिक व्यवहार से निर्मित एक खुली प्रणाली है। इस विचारधारा के अनुसार संगठन में तीन प्रक्रियायें महत्वपूर्ण है –
(अ) समाजीकरण
(ब) वैयक्तिकरण
(स) संयोजन
(v) तुलनात्मक विचारधारा :- यह विचारधारा विद्यमान संगठनों में पायी जानेवाली आधारभूत समानताओं के अध्ययन एवं विश्लेषण के द्वारा कुछ निष्कर्षों पर पहुँच कर भविष्य में उसको समान संगठनों में लागू करने का प्रयास करती है। यह विचारधारा संगठन के प्रभावों, विकेन्द्रीकरण के प्रभावों, भारी प्रबन्ध विकास आदि के बारे में सामान्यीकरण प्रस्तुत करती है।
(vi) व्यवहारवादी संगठन विचारधाराएं :- ये विचारधाराएं संगठनात्मक व्यवहार से सम्बन्धित हैं तथा संगठन में व्यक्ति के व्यवहार को विश्लेषण की एक प्रमुख इकाई मानती है। इनमें तीन विचारधाराएँ प्रमुख है –
(अ) संगठन की सन्तुलन विचारधारा
(ब) संगठन की भूमिका विचारधारा
(स) संगठन की समूह विचारधारा
(vii) संगठन में प्रयुक्त प्रणाली विचारधारा :– प्रणाली विचारधारा आधुनिकसंगठनात्मक आवश्यकताओं को स्वीकार करती है। यह विचारधारा संगठन की संकल्पनात्मक विश्लेषणत्मक आधार पर आश्रित है। इसकी प्रकृति समाकलनकारी है तथा यह आनुभाविक शोध पर आधारित है।
(viii) संगठन की सूचना प्राविधिक विचारधारा :- आधुनिक संगठन आन्तरिक एवं बाह्य अनिश्चितता का सामना करते हैं तथा वे सूचना प्राविधिक प्रणालियों है।
(ix) आकस्मिकता संगठन विचारधारा :– आकस्मिकता दृष्टिकोण संगठन की नवीनतम विचारधारा है। यद्यपि खुली प्रणाली विचारधारा तथा सूचना प्रविधियन में भी वातावरणीय निवेश को स्वीकार किया गया है। यह वातावरण को विशिष्ट संगठन संरचनाओं से जोड़ता है।