ओहलिन के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अन्तक्षेत्रीय व्यापार की एक विशेष स्थिति है। इस प्रकार ‘अन्तक्षेत्रीय’ तथा ‘अन्तर्राष्ट्रीय’ शब्द एक दूसरे के स्थानापन्न हैं।
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का तात्कालिक कारण दो क्षेत्रों में सापेक्षिक वस्तु कीमतों में अंतर का होना है।
- सापेक्षिक वस्तु-कीमों में अंतर साधन कीमतों में अंतरों तथा विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए आवश्यक अनेक साधनों के विभिन्न अनुपाों के कारण उत्पन्न होते है।
- साधन-कीमतों में अंतर दो क्षेत्रों में साधन मात्राओं और उनकी सापेक्षिक दुर्लभताओं में अंतरों के कारण होते है।
- किसी एक विनिमय दर के स्थापित हो जाने पर सापेक्ष मुल्य अंतर निरपेक्ष मूल्य-अंतरों में परिवर्तित हो जाते है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक क्षेत्र द्वारा कौन-सी वस्तुओं के उत्पादन में विशिष्टीकरण प्राप्त किया जायेगा ।
- चूंकि उत्पादन के साधन दो देशों के मध्य अगतिशील है, ओहलिन के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वस्तुओं की स्वतंत्र गतिशीलता साधन गतिशीलता के लिए आशिक स्थानापन्न के रूप में कार्य कर सकती है।
- व्यवहार में परिवहन लागतों और अन्य रुकावटों के कारण पूर्ण साधन कीमत समानता असम्भाव्य है ।
हेक्शर-ओहलिन सिद्धान्त का मूल्यांकन
तुलानात्मक लागतों के प्रतिष्ठित सिद्धान्त से तुलना करके हेक्शर-ओहलिन सिद्धान्त का मूल्यांकन भलीभांति किया जा सकता है।
- ओहलिन का आधुनिक सिद्धान्त सामान्य मूल्य सिद्धान्त के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की व्याख्या करता है जबकि प्रतिष्ठित सिद्धान्त मूल्य के श्रम सिद्धान्त पर आधारित है।
- प्रतिष्ठित सिद्धान्त के विपरीत इस सिद्धान्त के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए एक पृथक सिद्धान्त की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अन्तक्षेत्रीय व्यापार से भिन्न नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय तथा आंतरिक व्यापार में भिन्नता केवल अंश की है, प्रकार की नहीं।
- रिकार्डो के सिद्धान्त में साधन- पूर्ति व्यापार के स्वरूप को निर्धारित करने के लिए असंगत माना गया है क्योंकि यह सिद्धान्त एक ही साधन (श्रम) तथा समता लागतों की दशाओं की मान्यताओं पर आधारित है। ओहलिन के सिद्धान्त में साधनों की पूर्तियों में भिन्नता लाभ को निर्धारित करने का एक महत्वपूर्ण घटक है क्योंकि इसके अन्तर्गत दो या अधिक साधनों ध्यान में रखा गया है।
- रिकार्डो का सिद्धान्त तुलनात्मक लाभ को निर्धारित करने में अकेले साधन (श्रम) के गुण पर बल देता है जबकि ओहलिन के सिद्धान्त के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए विभिन्न क्षेत्रों में समस्त साधनों की मात्रा में भिन्नताओं का होना (न कि उनके गुण) अधिक महत्वपूर्ण है ।
- प्रतिष्ठित सिद्धान्त के अनुसार दो देशों में तुलनात्मक लागतों में भिन्नताएँ ज्ञान या श्रम कुशलता में भिन्नताओं के कारण होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि दो देश एक-दूसरे की तकनीक और जान पर विशिष्टता प्राप्त कर लें और इस प्रकार दोनों ही देशों में श्रम समान रूप से कुशल हो जाये तो भविष्य में इन देशों में कोई व्यापार नहीं होगा। परन्तु ओहलिन कहते हैं कि ज्ञान, तकनीकी तथा श्रम का इस प्रकार स्थानान्तरण होने पर भी व्यापार समाप्त नहीं होगा ।
- ओहलिन का सिद्धान्त व्यापार के आधारों की व्याख्या करता है। जबकि प्रतिष्ठित सिद्धान्त मूल रूप से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभों को व्यक्त करता है।
- हेक्शर-ओहलिन सिद्धान्त ने सर्वप्रथम अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सिद्धान्त में साधन बाजारों को शामिल किया है।
- प्रतिष्ठित सिद्धान्त प्रधान रूप से वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों सम्बन्धी दवाओं से निर्मित है जबकि आधुनिक सिद्धान्त साधनों की सापेक्षिक कीमतों के सम्बन्ध में अनेक दशाएँ प्रस्तुत करता है।
- आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सिद्धान्त में स्थान तत्व को ध्यान में रखा गया है जिसकी कि प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रिों द्वारा उपेक्षा की गयी। ओहलिन के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का सिद्धान्त मूल्य का बहुल बाजार सिद्धान्त है।
- प्रतिष्ठित सिद्धान्त इस बात की व्याख्या करने में असफल रहा है कि तुलनात्मक लागों में अंतर क्यों होते हैं जबकि ओहलिन द्वारा प्रस्तुत सिद्धान्त इस बात की व्याख्या करता है।(