सामाजिक अंकेक्षण की विधियों को निम्नलिखित दो वर्गों में रखा जा सकता है-
- संख्यात्मक विधियों – इन विधियों के अनुसार एक उपक्रम के समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का। मापन संख्या में किया जाता है। इस प्रकार की कई विधियाँ प्रचलित हैं, जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं,
- लागत विधि – इस विधि का सम्बन्ध केवल लागत से होता है। इसमे लाभ का ध्यान नहीं रखा जाता है। इस विधि के प्रणेता एम.एच. टिपगोस हैं। यह विधि वहीं ठीक समझी जाती है जहाँ स्वतन्त्र सामाजिक क्रिया की जा रही हो. जैसे पानी या हवा प्रदूषण रोकने के लिए कोई संयंत्र लगाया गया हो। इसमें उस क्रिया की लागत जात कर ली जाती है।
- ली सीडलर विधि – ली सीडलर ने दो सामाजिक आय विवरण-पत्रों, का सुझाव दिया है, एक उत्न संस्थाओं के लिए जो लाभ कमाने के उद्देश्य से चलाई जा रही है तथा दूसरा उन संस्थाओं के लिए जिनका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है। लाभ के उद्देश्य से चल्लाई जा रही संस्थाओं द्वारा तैयार किये गये आय विवरण-पत्र में कुछ मदों को जोड़कर व कुछ के सामाजिक प्रभाव को संख्या में बदल कर घटाने पर सामाजिक लाभ या सामाजिक हानि जात हो जाती है। जोड़ी जाने वाली मदों के उदाहरण हैं मजदूरों का प्रशिक्षण, मजदूरों के स्वास्थ्य में वृद्धि के उपाय, समाज के कमजोर वर्ग को नौकरी आदि। घटाई जाने वाली मदों के उदाहरण है हवा, पानी, ध्वनि प्रदूषण, उत्पाद तथा रही के कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ आदि।)
- डेविड सोलोमन विधि – डेविड सोलोमन के अनुसार प्रत्येक उत्पाद में समारात्मक तथा नकारात्मक उपयोग होते हैं। इनके आधार पर व्यवसाय की समाज को देन का मूल्यांकन किया जाता है। सोलोमन द्वारा बताई गई विधि से जो विवरण पत्र तैयार किया जाता है उसमें दो खण्ड होते हैं, एक में सकारात्मक प्रभाव को दिखाया जाता है और दूसरे में नकारात्मक प्रभाव को दिखाया जाता है। इन प्रभावों का मूल्यांकन बाजार मूल्य के आधार पर किया जाता है।
- लागत-लाभ विधि – इस विधि के अन्तर्गत एक सस्था के समाज पर पड़ने वाले सम्पूर्णप्रभाव का मूल्यांकन किया जाता है। संस्था की जितनी भी गतिविधियाँ हैं, उन सब के सामाजिक लाभ व सामाजिक हानियों का मूल्यांकन किया जाता है। इस कार्य के लिए एक ही विवरण-पत्र तैयार किया जाता है। लागत और लाभ का शुद्ध प्रभाव मुद्रा में ज्ञात किया जाता है। कम्पनी, कर्मचारी, ग्राहक, जनसाधारण आदि को मिलने वाले लाभों का योग सामाजिक लाभ माने जाते हैं, तथा इन्हीं वर्गों को होने वाली हानि को सामाजिक लागत माना जाता है। चिड़े में मानव सम्पत्तियों, संगठनात्मक सम्पत्तियाँ, वित्तीय सम्पत्तियों तथा भौतिक सम्पत्तियों को चिट्टे के सम्पत्ति पक्ष पर दिखाया जाता है तथा मानव दायित्वों, अंशधारियों की ईक्विटी तथा समाज की ईक्विटी को दायित्व पक्ष पर दिखाया जाता है।
- चिट्ठा विधि – चिट्ठा विधि की सिफारिश डेविड एफ. लिनोज ने की है। लिनोज ने कहा है कि संस्था के वित्तीय विवरणपत्र के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक परिचालन विवरणपत्र भी तैयार किया जाना चाहिए। इस विवरणपत्र में उन खर्चा को सम्मिलित किया जाता है जो व्यवसाय द्वारा कर्मचारियों के कल्याण के लिए, जनता के अले के लिए, उत्पाद की सुरक्षा के लिए तथा पर्यावरण की सुरक्षा एवं अन्य ऐसे ही कार्यों के लिए स्वेच्छापूर्वक किये जावै। जो खर्चे कानून अथवा समझौते के अन्तर्गत किये जाते हैं. उन्हें इन खचर्चा में सम्मिलित नहीं किया जाता है
- गैर संख्यात्मक विधियाँ – गैर-सख्यात्मक विधियों ऐसी विधियाँ हैं जो कम्पनी की गतिविधियों के सम्बन्ध में केवल विवरणात्मक सूचना प्रदान करती हैं। उन सूचनाओं को संख्यात्मक रूप नहीं देतीहैं। इनमें कुछ विधियों निम्नलिखित है-
- सूची विधि – इस विधि के अनुसार ऐसे क्षेत्रों की पहचान की जाती है जिनमें कम्पनी सामाजिक कार्यक्रम लागू करना चाहती है। इन कार्यक्रमों के सम्बन्ध में कम्पनी जो उपलब्धियां प्राप्त करना चाहती है. उनकी सूची बनाई जाती है। इस सूची में इन कार्यक्रमों का संक्षिप्त विवरण दिया जाता है। इन विवरणों का बखान शब्दों में किया जाता है, न कि संख्या के रूप में। इस सूची को कभी-कभी कम्पनी के वार्षिक प्रतिवेदन में दे दिया जाता है और कभी-कभी एक पृथक् पुस्तिका तैयार करके उसमें इनको लिख दिया जाता है और उस पुस्तिका का प्रसारण कर दिया जाता है।
- पर्यावरण विनिमय विवरणपत्र – विधि पर्यावरण विनिमय विवरण पत्र विधि के अन्तर्गत एक विवरण-पत्र तैयार किया जाता है। इस विवरण-पत्र में मानव, भौतिक और वित्तीय संसाधनों के निवेश (Input) तथा निर्गत (Output) को सम्मिलित किया जाता है। इस विवरण-पत्र में केवल तथ्यों को प्रस्तुत किया जाता है, संख्या के रूप में उनका मूल्य सम्मिलित नहीं किया जाता है। मानव संसाधनों के निवेश के सम्बन्ध में निम्नलिखित सूचनाएँ दी जाती हैं कर्मचारियों द्वारा फर्म को कितना समय (मानव घण्टे) दिया जा रहा है; समय के हिसाब से कर्मचारियों का प्रतिशत, कर्मचारियों की उम्र, कर्मचारियों का शिक्षा-स्तर, शिक्षा स्तर के हिसाब से प्रतिशत, आदि।मानव संसाधनों के निर्गत के सम्बन्ध में निम्नलिखित सूचनाएँ दी जाती हैं- कम्पनी द्वारा जिन मजदूरों की सेवाएँ समाप्त की गई, उनकी संख्या, जिन कर्मचारियों ने अवकाश प्राप्त किया, उनकी संख्या वार्षिक कई वृद्धिः आय वर्ग के हिसाब से कर्मचारियों का प्रतिशत काम करने की औसत अधि आदि। विवरण-पत्र में भौतिक एवं वित्तीय संसाधनों के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार सूचनाओं का संकलन होता है
- सामाजिक सूचक विधि – सामाजिक सूचक विधि के अन्तर्गत सर्वप्रथम जिस कम्पनी की सामाजिक निष्पत्ति जात करने के लिए सामाजिक सूचक निधर्धारित किये जाते हैं जिनके आधार पर उस कम्पनी की सामाजिक निष्पत्ति का मूल्यांकन किया जा सके। इस कार्य के लिए बाह्य अंकेक्षण को अपनाया जाता है। इस अकेक्षण के दवारा यह जानकारी प्राप्त होती है कि समाज की आवश्यकताएँ क्या है और इनमें कौन-सी अधिक आवश्यक हैं। बाहय अकेक्षण में कम्पनी का स्थानीय समाज के प्रति सम्बन्ध सरकारी खजाने को इसका योगदान आदि को सम्मिलित किया जाता है।
उक्त के अतिरिक्त कम्पनी की आन्तरिक क्रियाओं का भी मापन किया जाता है। आन्तरिक क्रियाओं में उत्पाद की गुणवत्ता, मानव पर्यावरण, उत्पादकता तथा क्षमता का रख-रखाव आदि को सम्मिलित किया जाता है। इस विधि द्वारा प्रबन्धक यह जान सकते हैं कि सामाजिक आवश्यकताओं के सम्बन्ध में कम्पनी की गतिविधियों कितनी अनुकूल है तथा कम्पनी की योजनाजी में इस दृष्टिकोण से क्या परिवर्तन वाछनीय है।
5 Comments
Gümüşpala su kaçak tespiti Tuvaletteki gizli kaçağı termal kamerayla hemen buldular. İşlerini çok temiz yaptılar, hiç dağınıklık olmadı. Kemal A. https://naya.social/read-blog/11199
узнать интернет по адресу
inernetvkvartiru-krasnodar003.ru
провайдер по адресу краснодар
провайдеры по адресу
inernetvkvartiru-ufa003.ru
интернет провайдеры по адресу дома
интернет провайдер омск
inernetvkvartiru-volgograd001.ru
домашний интернет в волгограде
интернет провайдеры по адресу краснодар
inernetvkvartiru-krasnodar003.ru
провайдеры интернета по адресу