भारत सहित दक्षिण एशिया के सात देशों में अंततः साप्टा (South Asian SAPTA Preferential Trade Arrangement) अर्थात् दक्षिण एशियाई वरीयता प्राप्त व्यापार व्यवस्था को लागू कर दिया गया है। इस व्यवस्था की बदौलत 4 दिसम्बर, 1995 से दक्षिण एशिया का पहला क्षेत्रीय व्यापारिक गुट अस्तित्व में आ गया है।
यह भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव को परस्पर विशेष रियायतें उपलब्ध करायेगा । इसके लागू होने की घोषणा दक्षेस की दसवीं वर्षगांठ पर की गयी है। उल्लेखनीय है कि दक्षेस का गठन 1985 में किया गया था।
- साप्टा का प्रस्ताव सर्वप्रथम श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति रणसिंह प्रेमदास ने 1991 में हुए छठे शिखर सम्मेलन (कोलम्बो) के दौरान किया था तथा अप्रैल 1993 में ढाका में सम्पन्न सातवे दक्षेस शिखर सम्मेलन के दौरान उस पर हस्ताक्षर किये गये थे। साप्टा के अंतर्गत आने वाले उत्पादों पर तटकर में कम से कम 10 प्रतिशत की कमी लायी जायेगी, लेकिन यह व्यवस्था न तो बाध्यकारी होगी और न ही इसकी कोई तयशुदा सीमा होगी। दो देश परस्पर विचार-विमर्श से तटकर में कटौती का प्रतिशत तय कर सकते हैं। साप्टा ने आरंभिक रूप में तटकर में कटौती के लिए प्राथमिक उत्पाद, कृषि उत्पाद, कच्चा माल, पशुधन, समुद्री उत्पाद, स्क्रैप और तैयार माल जैसे क्षेत्र सुझाये हैं। बांग्लादेश, नेपाल और भूटान को न्यूनतम विकसित देश घोषित करते हुए व्यवस्था की गयी है कि ये देश दक्षेस देशों से आयात पर अस्थायी रोक लगा सकते हैं।
- साप्टा के तहत सदस्य देशों ने अभी केवल 226 वस्तुओं को ही शुल्क रियायत देने की सहमति प्रकट की है। इनमें से भारत सर्वाधिक 106 वस्तुओं पर शुल्क। रियायत देकर इस व्यापारिक गुट में अग्रणी भूमिका अदा कर रहा है। जबकि इस सन्दर्भ में पाकिस्तान ने 35 वस्तुओं, श्रीलंका ने 31, मालदीव ने 17, बांग्लादेश ने 12 तथा भूटान ने 7 वस्तुओं की सूची जारी की है। लगभग 12 अरब आबादी वाले इन देशों के बीच आपसी व्यापार कुल विश्व व्यापार का मात्र 3 प्रतिशत (9,300 करोड डॉलर) है, ऐसा इन देशों के बीच आने वाली विभिन्न बाधाओं की वजह से है, लेकिन साप्टा के कारण ये बाधाएं अब टूटती नजर आ रही है जो कि एक शुभ संकेत है। ये देश वैसे औद्यौगिक उत्पादों को विकसित देशों से आयात करते है, जो क्षेत्र के अन्य पड़ोसी देशों से काफी सस्ते में आयात किये जा सकते हैं।साप्टा के तहत् वार्ताओं का अंतिम उद्देश्य दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र अथवा साप्टा का लक्ष्य प्राप्त करना है।
- जुलाई, 1998 में कोलम्बो में दसवें सार्क सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि सभी 7 सार्क देशों से एक विशेषज्ञ समिति (सी.ओ.ई) की स्थापना की जाए ताकि दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र के लिए करार अथवा संधि वार्ताए शुरू की जा सकें। इस करार में व्यापार को मुक्त करने के लिए बाइंडिंग अनुसूचियों का खुलासा होगा और इसके 2001 तक अंतिम रूप दिए जाने तथा लागू किए जाने की उम्मीद थी। जुलाई, 1999 में सार्क सचिवालय, काठमाण्डू में आयोजित अपनी पहली बैठक में विशेषज्ञ समिति ने साप्टा संधि का मसौदा तैयार करने के लिए विचारार्थ विषयों को अंतिम रूप दिया ।
21-22 अक्टूबर, 2001 को सार्क सचिवालय में आर्थिक सहयोग पर सार्क के मुख्य बिन्दुओं के बारे में आयोजित बैठक में यह नोट किया गया था कि वर्ष 2001 तक संधि के पाठ को अंतिम रूप देना सम्भव नहीं होगा। तथापि बैठक में साप्टा संधि को शीघ्र ही अंतिम रूप दिए जाने के बारे में प्रबल प्रतिबद्धता को दोहराया गया था ।