भारतीय कम्पनियों में व्यापारिक आत्मविश्वास बढ़ रहा है। इनमें से कई इतनी ताकतवर हो गयी हैं कि उन्होंने विकसित देशों में कई कम्पनियों का अवापन Acquisition) कर लिया है। यह घटना चक्र इतना प्रबल हो गया कि दिइकॉनामिस्ट ने इसे ‘भारतीय आक्रमण’ कहा। इस सम्बन्ध में कुछ ऐसे विलयनी और अवापनों का जिक्र करना रुचिकर होगा जिन्होंने विश्वव्यापी ध्यान अपनी ओर खींचा है।
संविलियन एवं एकीकरण का अर्थ है दो या दो से अधिक इकाइयों का आपसी समझौते से एक नई इकाई में परिवर्तित होना। इसका उद्देश्य कार्यक्षमता बढ़ाना, संसाधनों का बेहतर उपयोग करना और प्रतिस्पर्धा को कम करना होता है। यह व्यापारिक विस्तार और आर्थिक मजबूती का एक प्रमुख उपाय है।
लक्ष्मी मित्तल दुनिया का सबसे बड़ा स्टील उत्पादक बन गया है और इसके लिए उसने बहुत सी कम्पनियों का स्वामित्व ग्रहण किया और उसकी आख योरोपीय स्टील कम्पनी आस्र्लर पर है। टाटा स्टील कोरस को 12 अरब डालर में खरीद कर विश्व की पांचवी सबसे बड़ी कम्पनी बन गयी है, हिंडाल्को के आदित्य बिडला, नौवेसिल का 6 अरब डालर में स्वामित्वग्रहण कर वैश्विक अल्युमिनियम भीमकाय कम्पनी बन गयी है। वेदान्त के अनिल अग्रवाल ने एंगलो-अमेरिकन से जाम्बिया की सबसे बड़ी तांबे की खान का स्वामित्वग्रहण कर लिया है, जिन्दल स्टील एण्ड पावर लि. ने बोलिविया के भारी लोह-अयस्क को स्टील में परिवर्तन करने का ठेका जीत लिया है।
- डा. रेड्डी लेब्ज और सुजलौन कुछ अन्य महत्वपूर्ण कम्पनियां हैं जिन्होंने विदेशी कम्पनियों के स्वामित्वहरण (Takeover) के लिए 1 अरब डालर से अधिक खर्च किया है। भारत फोर्ज विदेशों से 6 प्लांट खरीदने के बाद विश्व का सबसे बड़ा लौह गढ़ने का उत्पादन बन गया है। केवल यह ही नहीं, भारतीय कम्पनियों के कुछ मुख्य लक्ष्य भी है:
- हिंदूंजा टेलीकाम इटैलिया 12 अरब डालर में, रिलायंस इंडस्ट्रीज जी. ई. प्लाक्टिक्स को 10 अरब डालर एवं स्काटिश वुड्स को 4 अरब डालर में खरीदना चाहते हैं। अपोलो का लक्ष्य यू. के. हास्पिटल को 2. 34 अरब डालर में अधिग्रहीत करना है। ओ. वी. एल. ने सरवालिन (रूस) 8 अरब डालर में अपने स्वामित्वाधीन करने की ठानी है।मई 2005 में युनाटिड ग्रुप के विजय माल्या ने वाइट और मैके में 4,783 करोड़ रुपये से 100 प्रतिशत स्वामित्व अधिग्रहण कर लिया है। अतः भारतीय बहुराष्ट्रीय निगमों की शक्ति बढ़ रही है। वे विश्व भर में मुख्य कम्पनियों की बोली लगाने में आत्मविश्वास का उच्च स्तर प्राप्त कर गयी हैं। वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय बहुराष्ट्रीय निगम विश्व भर में फैल रहे हैं और आर्थिक शक्ति में विश्व में अशीवारी कर रही है। इसका अभिप्राय यह है कि भारतीय पूँजी का विश्व के विभिन्न भागों में उत्प्रवाह हो रहा है।
- स्थानीय फर्मों का बहुराष्ट्रीय निगम के साथ अधिकतम 60-40 आधार पर सामुहिक समझौता होना चाहिए, विदेशी फर्मों के साथ सभी संयुक्त कार्य विशिष्ट समझौतों पर आधारित होने चाहिए । जिसमें देश में ही उत्पादित तथा उपलब्ध कच्चे माल (यदि वे उपलब्ध हैं तो) से देश के अन्दर ही वस्तु का निर्माण करना, नागरिकों को ऊँचे कार्यों में प्रशिक्षित करना और लगाना, मेजबान देश में R&D को प्रचलित रखना तथा इसी में निश्चित लाभ प्रतिशत को लगाना सम्मिलित है ।
हम मानते हैं कि बहुराष्ट्रीय निगम मात्र शोषण के एजेण्ट नहीं है अपितु वे विकास के भी एजेण्ट हैं। निर्माण के प्लांटों की स्थापना करके, उत्पादन उपलब्ध कराकर, प्रबन्धकीय तकनीकी, संगठनात्मक और बाजार सम्बन्धी कुशलताओं को प्राप्त कराकर उनके संसाधनों को प्रतिदिन के कार्यों में लगाकर बहुराष्ट्रीय निगम ने सिंगापुर, हांगकांग, ताईवान तथा कनाडा के सकल राष्ट्रीय उत्पाद की वृद्धि में सहायता की है, किन्तु इस प्रकार के लाभ केवल उन्हीं देशों को दिए जा रहे हैं जो बहुराष्ट्रीय निगम के अपने स्वयं की रुचि के है यानी वे यू एस. के घरेलू बाजार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए है।
जैसा कि स्ट्रीटन के द्वारा परामर्श दिया गया है कि अल्पविकसित देशों की सरकारी को बहुराष्ट्रीय निगम पर स्थानीय श्रमिकों को विशिष्ट उच्च मजदूरी देने के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए, अपितु बहुराष्ट्रीय निगम को उसी कार्य के लिए नियुक्त देशीय स्थानीय लोगों को प्रचलित दरों पर नियुक्त करने को कहा जाना चाहिए । इसके अलावा उन्हें बहु राष्ट्रीय निगम पर भारी कर लगाना चाहिए जिससे उनके लिए काम करने वाले गिने-चुने लोगों की बजाय देश के अधिक लोगों को लाभ हो । बढ़ाया गया कर-राजस्व लोगों को आधारिक बड़ी सुविधाएं प्राप्त करने पर खर्च किया जाना चाहिए ताकि समाज के सभी वर्गों तथा बहुराष्ट्रीय निगम को भी इससे लाभ मिले । जिन विदेशियों को स्थानीय सहकर्मियों की अपेक्षा अधिक वेतन तथा सुविधाएं प्राप्त हैं उन पर भी समान रूप से कर लगाया जाना चाहिए ।