संगठन संरचना के प्रकार :-
(अ) रेखा संगठन – रेखा संगठन फर्म के विभिन्न स्तरों के मध्य प्रत्यक्ष एवं शीर्ष सम्बन्धों को दर्शाता है। इसमें अधिकार सत्ता का प्रवाह सीधा उच्च स्तर से निम्न स्तरों की ओर तथा दायित्वों का प्रवाह नीचे से ऊपर की ओर रहता है।
मैकफारलैंड “रेखा संगठन का आशय उन प्रत्यक्ष लम्बवत् सम्बन्धों से है जो प्रत्येक स्तर के पदों एवं कार्यों को उनके ऊपर और नीचे के पदों एवं कार्यों से जोड़ते हैं।
“रेखा संगठन दो प्रकार का होता है –
(i) शुद्ध रेखा संगठन:- रेखा संगठन के प्रारूप में एक ही स्तर पर कार्य करने वाले सभी कर्मचारियों की क्रियाएं लगभग समान प्रकार की ही होती हैं तथा इन क्रियाओं को प्रायः नियंत्रण की सुविधा की दृष्टि से ही वर्गीकृत किया जाता है।
(ii) विभागीय रेखा संगठन:- विभागीय रेखा संगठन के अन्तर्गत एक संस्था की विभिन्न क्रियाओं को विभिन्न विभागों के रूप में वर्गीकृत कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, संस्था की क्रियाओं को उत्पादन, वित्त, विक्रय, कार्यालय, सेवावर्गीय आदि भागों में विभक्त किया जाता है।
रेखा एवं कर्मचारी (विशेषज्ञ) संगठन :– रेखा अधिकारियों को परामर्श देने केलिए कुछ विशिष्ट कर्मचारियों अर्थात विशेषज्ञों को रखा जाता है। इस संगठन में अधिकार एवं उत्तरदायित्व सीधी रेखा या लम्बवत रूप में ही चलते हैं। किन्तु अधिकारियों को उनके कार्यों में विशिष्ट परामर्श देने हेतु कुछ विशिष्ट व्यक्तियों (विशेषज्ञों) की नियुक्ति की जाती है जिन्हें कर्मचारी कहा जाता है। विशेषज्ञ के परामर्श को मानना था या न मानना पूर्णतः अधिकारी की इच्छा पर निर्भर करता है। कर्मचारी अधिशासी वह व्यक्ति है जो रेखा संचालकीय प्रबन्धकों तथा उनकी इकाइयों को संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहयोग देने के ने के लिए परामर्श, सलाह एवं विशिष्ट ज्ञान उपलब्ध कराने की भूमिका निभाता है।”। — विलियम ग्लूकरेखा
रेखा एवं कर्मचारी संगठन की निम्न विशेषताएँ होती है-
1. इसमें अधिकार एवं दायित्व तथा आदेश एवं निर्देश लम्बवत् रूप में चलते हैं।
2. रेखा अधिकारियों की सहायता के लिए विशिष्ट कर्मचारियों अर्थात् विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है।
3. विशेषज्ञों की नियुक्ति से अधिकारियों के कार्य का बोझ हल्का हो जाता है।
4. ये विशेषज्ञ परामर्शात्मक स्थिति में होते हैं। ये अधिकारियों को केवल परामर्श ही देते हैं। परामर्श मानने और उसके अनुरूप निर्णय लेने के लिए अधिकारियों को बाध्य नहीं किया जा सकता है।
(ब) क्रियात्मक संगठन :- जब उपक्रम के कार्यों का बहुत विस्तार हो जाता है तो समस्त कार्यों को एक प्रबन्धक द्वारा किया जाना असंभव होता है। प्रत्येक प्रबन्धक का प्रबन्ध क्षेत्र सीमित ही हो सकता है। अतः कार्य की अधिकता के कारण कार्य को विभिन्न व्यक्तियों एवं प्रबन्धकों में बाँटना आवश्यक हो जाता है।
एल. के. जॉनसन :– ‘क्रियात्मक संगठन वह संगठनात्मक व्यवस्था है जिसमें अधिकार की रेखाएँ कई क्रियात्मक विशेषज्ञों के मध्य से होती हुई प्रत्येक श्रमिक तक पहुँचती है। अधिकार का प्रत्येक स्तर योजना एवं अपने अधीनस्थों के सम्पूर्ण नहीं बल्कि कुछ कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है।
“क्रियात्मक संगठन की प्रमुख विशेषताएँ निम्न है-
1. इस प्रकार के संगठन में प्रत्येक कार्य को कई भागों में बाँटा जाता है।
2. इसमें प्रत्येक विशिष्ट कार्य के लिए एक विशेषज्ञ होता है।
3. इसमें विशेषज्ञ रेखा प्रबन्धकों की स्थिति में होते है अर्थात् विशेषज्ञ स्वयं ही आदेश एवं निर्देश देने का अधिकार रखते हैं।
4. प्रत्येक निर्णय लेने के पूर्व विशेषज्ञों से परामर्श लेना आवश्यक होता है।
5. इसमें प्रत्येक विशेषज्ञ केवल अपने विशिष्ट क्षेत्र के संबंध में ही आदेश एवं निर्देश दे सकता है।
(स) संभागीय संगठन अथवा संगठन का विभागीकरण: एक विभाग एकविशिष्ट संगठनात्मक इकाई है जिसके प्रबन्धक के पास विशिष्ट क्रियाओं के निष्पादन की सत्ता होती है। यह एक कार्य समूह है जिसमें समान प्रकृति की क्रियाओं का निष्पादन किया जाता है। विभागीकरण कुशल प्रबन्ध के उद्देश्य से सजातीय क्रियाओं का इकाइयों तथा उप-इकाइयों के रूप में समूहीकरण करने की प्रक्रिया है। उन्हें कई नामों जैसे विभाग, संभाग, अनुभाग, ब्रॉन्च आदि से पुकारा जाता है। विभागीकरण की प्रक्रिया संगठन के समस्त स्तरों पर अपनायी जाती है।
मैकफारलैण्ड “विशिष्टीकरण से तात्पर्य इकाइयों की स्थापना करने से है जिन्हें संबंधित कार्यों, क्रियाओं अथवा कर्तव्यों के समूह सौंपे जाते हैं।
“विभागीकरण की आवश्यकता –
1. निर्णयन में विकेन्द्रीकरण को प्रोत्साहित करना।
2. विशिष्टीकरण एवं क्रियात्मक संगठन के लाभों को प्राप्त करना।
3. मुख्य अधिशासी के कार्यभार में कमी लाना तथा विकास की गति को तेज करना।
4. संगठन के असीमित विस्तार को संभव बनाना।
5. प्रबन्धकीय कार्यकुशलता में वृद्धि करना।
(द) सेवाओं का विभागीकरण :– संगठन में व्यवसाय के संचालन के लिए विभिन्न प्रकार की सेवाएँ भी आवश्यक होती हैं। अतः एक वृहत् संस्था में विभिन्न प्रकार के सेवा विभागों जैसे सेविवर्गीय (भर्ती, प्रशिक्षण, कर्मचारी अभिलेख आदि). लेखांकन, क्रय, संयंत्र अनुरक्षण, सांख्यिकीय प्रतिवेदन, इलैक्ट्रॉनिक डेटा प्रोसेसिंग, टाइपिंग टूल्स आदि की स्थापना करना आवश्यक होता है। सेवा विभागों की स्थापना का उद्देश्य संगठन के कार्य संचालन में कार्यकुशलता तथा नियंत्रण को प्रोत्साहित करना है। यद्यपि कुछ सेवाएं जैसे लेखांकन, मशीनों का अनुरक्षण आदि मुख्य विभागों द्वारा स्वयं की जा सकती है। किन्तु विभागीयकरण (विशिष्ट विभागों) के द्वारा ये अधिक कुशलता से तथा त्रुटियों पर नियंत्रण रखते हुए प्रदान की जा सकती हैं।