बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने भारत में अपने पैर स्थापित कर लिये हैं । इन्होंने विश्वव्यापीकरण को तीव्रता प्रदान करने में काफी मदद की है। भारत में ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैण्ड, इटली, द. कोरिया, नीदरलैण्ड, जापान आदि की कई बहु राष्ट्रीय कम्पनियों विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में संलग्न है।
वैश्वीकरण के प्रभाव :
आज अधिकांश आधारभूत परियोजनाओं में विश्व की मशहूर कम्पनियों भारतीय भागीदारों के साथ सफलतापूर्णक काम कर रही हैं। हाल ही में संसद द्वारा बीमा क्षेत्र के निजीकरण से सम्बन्धित विधेयक को पास कर देने के बाद विश्व के कई देश भारत के बाजार में अपनी भूमिका की तलाश में जुटे हैं। आज एशिया में चीन के बाद विश्व के जितने भी पूँजी निवेशक हैं, भारत में उद्यम लगाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। बहु राष्ट्रीयकरण के अनुकूल प्रभावों का अध्ययन हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कर सकते हैं-
- अनुकूल प्रभावः-
- उच्च तकनीक का उपयोग – बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने यथासम्भव उच्च तकनीक का प्रयोग कर हमारे औद्योगिक उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की है। आजकल ये कम्पनियों न सिर्फ उपभोक्ता वस्तु बल्कि अन्य आधारभूत परियोजनाओं में भी अपनी पूँजी लगा रही हैं। इनके आगमन से देश के औद्योगिक वातावरण में एक स्वस्थ प्रतियोगी माहौल का निर्माण हुआ है जिससे वस्तुओं की गुणवत्ता में भी सुधार आगा है। भारत ने अपने विकास को तीव्र गति प्रदान करने के लिए विदेश पूँजी की आवश्यक्ता अनुभव की। इस तरह जहाँ अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक द्वारा प्रदत्त पूँजी से हमे विभिन्न विकास कार्यक्रमों को चलाने में मदद मिली है, वही प्रौद्योगिकीय सहयोग एवं उन्नत तकनीक ने भी हमारी अर्थव्यवस्था को काफी मदद पहुंचा दी है।
- विदेशी मुद्रा कोष में वृद्धि – जून, 1992 में जहाँ भारत के विदेशी विनिमय भण्डार मात्र 1, 100 मिलियन डॉलर थे, वे दिसम्बर, 1999 को बढ़कर 34935 मिलियन डॉलर हो गये ।
- निर्यात में वृद्धि – आयात उदारीकरण की प्रक्रिया के दौरान बहुत से लोगों ने यह डर व्यक्त किया था कि इससे आयात व्यय में तेज वृद्धि होगी जिससे अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ जायेगी परन्तु उदारीकरण से वास्तव में हमारी आत्म निर्भरता में वृद्धि हुई। जहाँ 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध में निर्यात आय आयात व्यय के 60 प्रतिशत की भरपाई कर पाती थी। वहीं अब निर्यात आय, आयात व्यय के 90 प्रतिशत की भरपाई करती है।
- प्रत्यक्ष विदेशी विनियोग में वृद्धि – भारत में अपनाये गये उदारीकरण के दौर में विदेशी विनियोग प्रवाह में तेजी से प्रगति हुई। भारत में कुल विदेशी विनियोग प्रवाह (प्रत्यक्ष एवं पोर्टफोलियो) वर्ष 1996-97 में तेजी से बढ़कर 60.1 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया जो वर्ष 1998-99 में घटकर 2.401 व बिलियन डॉलर हो गया है।
- स्थिर व मजबूत विनिमय दर – रुपये की विनिमय दर मजबूत व स्थिर बनी रही है जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर विदेशी निवेशकों का विश्वास बढ़ा है। फलतः सरकारी व कानूनी माध्यमों से विदेशी विनिमय का आवागमन बढ़ा है, जबकि पहले गैर-कानूनी व हवाला माध्यमों से काफी लेन-देन होता था ।
- प्रतिकूल प्रभाव – वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव निम्नलिखित है-
- भारतीय उद्यमों पर प्रभाव- विश्वव्यापीकरण ने समान प्रतियोगिता को जन्तु दिया है। यह प्रतियोगिता शक्तिशाली बहुराष्ट्रीय निगमों और कमजोर भारतीय उद्यमों के बीच होने के कारण भारतीय उद्यम समाप्त होते जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल के एक संसद सदस्य ने कहा है, भारत में विश्वव्यापीकरण का अर्थ है- “हाथियों के झुण्ड में एक चुहे का घुसना”
- लाभ का निर्यात – बहुराष्ट्रीय कम्पनियों सुपर-प्राफिट को अपने मूल देश को निर्यात करती हैं लेकिन एक बात जिसकी अक्सर अवहेलना कर दी जाती है वह यह है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों अपने मूल देशों से पूँजी लाकर हमारे यहाँ उद्योग लगाती है लेकिन भारत में हम इस सन्दर्भ में पाते हैं कि इन कम्पनियों ने अपने मूल देश से पैसे न उगाकर यहीं के बाजारों से अपने पैसे वसूल किये हैं।
- कार्य संस्कृति पर कुठारापात – ये बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों को अधिकवेतन तथा सुविधाएँ देकर न केवल आर्थिक असमानता को बढ़ा रही है बल्कि कार्य संस्कृति पर भी कुठाराघात कर रही हैं। आज इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की वजह से कर्मचारियों का ऐसा वर्ग पैदा हो गया है जो बेहतर वेतन एवं सुविधाओं के लालच में इनकी तरफ मुड़ता चला जा रहा है एवं सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी भी इस तरफ से वेतन एवं सुविधाओं के मुद्दे को लेकर आये दिन हड़ताल, प्रदर्शन, काम रोको आन्दोलन आदि में लगे रहते हैं। इससे जहाँ हमारे अरबों रुपये का कोई मूल्य नहीं रहता, वहीं कार्य दिवसों में हानि की वजह से औद्योगिक उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है
- अन्य प्रतिकूल प्रभाव- बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की कार्य प्रणाली के अन्य प्रतिकूल प्रभाव निम्नलिखित है –
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियों उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में ज्यादा लगी हैं क्योंकि इनका मुख्य उद्देश्य कम से कम समय में अधिक से अधिक लाभ कमाना है।
- पुरानी तकनीकों के बदले नई तकनीकें लाकर अपने भागीदारों से अधिक रॉयल्टी प्राप्त करती
- विदेशी मुद्रा की हेरा-फेरा करती हैं।
- वैश्वीकरण के कारण हमारे यहाँ विदेशी पूँजी निवेश सभी क्षेत्रों एवं सभी उद्योगों में न होकर कुछ चुनिन्दा उद्योगों में ही हुआ है। इससे क्षेत्रीय असन्तुलन पैदा हो गया है एवं लघु तथा कुटीर उद्योगों के अस्तित्व पर संकट के बादल मण्डरा रहे हैं।