वैश्वीकरण का तात्पर्य है – दुनिया को एक वैश्विक गाँव में बदलना, जहाँ हर देश अन्य देशों के साथ व्यापार, निवेश, तकनीक और संसाधनों का आदान-प्रदान कर सके। इसका उद्देश्य सीमाओं को लांघकर एक वैश्विक साझेदारी विकसित करना है।
वैश्वीकरण के दोषों को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
- वैश्वीकरण के प्रभाव से बड़े संगठनों द्वारा छोटी संस्थाओं की अधिग्रहण करने तथा उनका संविलियन करने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप छोटी संस्थाओं एवं लघु उद्योगों के अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो जाता है।
- वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप देश के निर्यातों में वृद्धि नहीं हो पाती अपितु आयात बहुत महँगे पड़ते हैं।
- वैश्वीकरण से देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ेगा। इससे स्थानीय उपक्रमों पर बाह्य संस्थाओं का नियंत्रण होगा। इस प्रकार धीरे-धीरे बाहरी संस्थाओं का देश के व्यवसायों पर आधिपत्य हो जायेगा ।
- वैश्वीकरण प्रजातन्त्र के लिए विपरीत परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है। प्राचीन समय में दूसरे देश में हस्तक्षेप करने के लिए सेना भेजने की आवश्यकता होती थी परन्तु आज. वैश्वीकरण के कारण दूसरे राष्ट्र में हस्तक्षेप करने के लिए इतना ही पर्याप्त होता है कि वित्तीय प्रवाह को रोक दिया जाये, व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये, अथवा अनेक प्रकार से दूसरे देश में जीविका उपार्जन को प्रभावित किया जा सकता है। वैश्विक उदारीकरण के आलोचक प्री, नीआम धोमस्की का कहना है कि वैश्वीकरण की वर्तमान प्रणानी समुदायों में असमानता की समस्या से लड़ने में विफल रही है। इसके विपरीत इसने आम आदमी के ऊपर धनवानी तथा शक्तिशालियों का आधिपत्य स्थापित करने में ही सहायता की है।
- विकासशील राष्ट्री की औद्योगिक प्रक्रिया पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है। विदेशी कम्पनियों द्वारा निर्मित वस्तुओं की गुणवत्ता के समक्ष ये विकासशील देश उनसे प्रतिस्पर्धा करने में पीछे रह जायेंगे जिससे उनके उद्द्योग बन्द होने की स्थिति में आ सकते हैं। विख्यात स्तम्भ लेखक प्रदीप एस. मेहता का मानना है कि “वैश्वीकरण ने विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को बाह्य धक्कों के प्रति कमजोर एवं निरीह बना दिया है, क्योंकि वे देश बाह्य असन्तुलनों का मुकाबला करने लायक यान्त्रिकी से लैस नहीं है।
- विकासशील देशों की आर्थिक बदहाली के लिए सरकार की जवाबदेही घटती जाती है।
- विदेशी कम्पनियाँ क्षेत्रीय असन्तुलन को तीज कर देती है। भारत में विदेशी कम्पनियों को जो अधिकांश नवीन स्वीकृतियों प्रदान की गयी है, उनका 51 प्रतिशत निवेश महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल व दिल्ली राज्यों में उद्योग स्थापित करने के लिए है। इससे क्षेत्रीय असन्तुलन को बढ़ावा मिलता है जो राष्ट्र के हित में नहीं है।
- विकासशील राष्ट्रों का यह विचार है कि आधुनिक स्वचालित मशीनों के प्रयोग करने से कम श्रमिकों की आवश्यकता होती है। अतः रोजगार के अवसर कम हो जायेंगे तथा श्रमिकों में बेरोजगारी फैल जायेगी ।
- गरीबी, बेकारी और सामाजिक असन्तुलन जैसी समस्याएँ अर्थव्यवस्था के निधर्धारण में प्राथमिकता से हट जाती हैं और एक लक्ष्यीय कार्यक्रम के रूप में निर्यात स्वीकार कर लिया जाता है।
- विदेशी पूँजी विकासशील देशी के नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं को छोड़कर उन उत्पादों में लगती है जो व्यवसायियों के लिए अधिक लाभप्रद है।
- वैश्वीकरण की प्रक्रिया देश की आत्म निर्भरता की स्थिति को भी प्रभावित करती है।
- विदेशी अर्थव्यवस्था विश्व बाजार के लिए चलायी जाती है जिससे लघु उद्योग नष्ट होते है।
- विदेशी कम्पनियाँ विकासशील राष्ट्रों की प्राकृतिक सम्पदा का दोहन करती है जिसके परिणामस्वरूप वहाँ के नागरिकों का सामाजिक तथा आर्थिक शोषण किया जाता है।
- वैश्वीकरण की नीति अपनाने से सभी राष्ट्र व्यवसायिक बाजार बन जायेंगे। इससे राष्ट्रों की सार्वभौमिकता पर ऑच आ सकती है।