भारत विश्व व्यापार संगठन के संस्थापक सदस्यों में से है। भारत का 90 प्रतिशत व्यापार उन देशों से होता है जो विश्व व्यापार संगठन के सदस्य है। भारत में इस विषय पर काफी वाद-विवाद रहा है कि भारत को विश्व व्यापार संगठन का सदस्य रहने से या डंकेल ड्राफ्ट पर हस्ताक्षर करने से लाभ होगा या हानि उठानी पड़ेगी । भारत के विश्व व्यापार संगठन के सदस्य बने रहने के पक्ष तथा विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं:
- विश्व व्यापार संगठन से भारत को हानि या विश्व व्यापार संगठन के विपक्ष में तर्क (Disadvantages to India or Arguments against WTO) – आलोचकों के अनुसार विश्व व्यापार संगठन या गैट समझौतों के प्रावधानों पर होने वाले समझौते से केवल विकसित देशी को लाभ होगा तथा भारत जैसे अल्पविकसित देशों को इराके फलस्वरूप हानि उठानी पड़ेगी। देश में विदेशी कम्पनियों के प्रवेश से हमारी संस्कृति और परम्पराएं लुट जाएंगी और ईस्ट इण्डिया कम्पनी की भाति देश को लूटा जाएगा । साम्यवादी नेता श्री सोमनाथ चटर्जी के अनुसार, ‘गैट या विश्व व्यापार संगठन का अन्तिम रूप भारत को फिर से विकसित देशों का उपनिवेश बनाने वाले दस्तावेज हैं। देश की भावी पीढ़ियां शासक दल को इस पर कभी माफ नहीं करेंगी ।” गैट या विश्व व्यापार संगठन के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं.
- कृषि क्षेत्र को हानि (Disadvantage to Agriculture Sector) – कृषि को गैट समझौते या विश्व व्यापार संगठन में शामिल करने से यह आश्का व्यक्त की जा रहीं है कि इससे किसानों को कृषि सम्बन्धी तकनीक एवम् उन्नत बीजों के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का मोहताज हो जाना पड़ेगा। खेती से सम्बन्धित उन्नत तकनीक का लाभबड़े कृषक ही उठा पायेंगे। इन सब का सम्मिलित प्रभाव यह होगा कि छोटे किसान जो संख्या में अधिक है, अपनी भूमि बेचने को विवश हो जायेंगे और ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या और भी अधिक बढ़ जायेगी। पेड़ पौधों और जानवरों के जीवन रक्षक उत्पाद, पेटेंट के अन्तर्गत आ जाने से उन पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का अधिपत्य हो जायेगा जिससे भारतीय कृषि को काफी हानि होगी। इस प्रस्ताव से कृषि पदार्थों के समर्थन मूल्यों की घोषणा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली भी प्रभावित होगी।
- सब्सिडी में कमी (Reduction of Subsidy) – आलोचकों के अनुसार, विश्व व्यापार संगठन या गैट समझौतों के बाद कृषि क्षेत्र को मिलने वाली सरकारी सहायता कम कर दी जायेगी। इसका निर्धन किसानों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा ।
- खाद्यानों का आयात (Import of Foodgrains) – यह आशंका व्यक्त की गई है। विश्व व्यापार संगठन या गैट समझौते के बाद देश में बड़ी मात्रा में विकसित देशों के आधिक्य खाद्यान्नों का आयात किया जायेगा। इसका देश के भुगतान सन्तुलन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा ।
- पौधों की किस्म का संरक्षण (Plant Breeding Production) – विश्व व्यापार संगठन स्वे-जेनेरिस कानून द्वारा निर्धारित किया गया है। भारत के किसानों को नये तथा उत्तम किस्म के पौधों को प्राप्त करने के लिए काफी धन खर्च करना पड़ेगा तथा उनकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर निर्भरता बढ़ जायेगी ।
- दिम्स के विपक्ष में तर्क (Arguments against TRIMS) – विश्व व्यापार के अनुसार भारत विदेशी निवेश पर कोई नियन्त्रण नहीं लगा सकेगा। इसके फलस्वरूप कम्पनियां भारत में अपने उधोग स्थापित करने के लिये पूर्ण रूप से स्वतंत्र होगी । इसका घरेलू उद्योगों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा इससे स्वेदशी निवेशकर्ताओं को हानि होगी क्योंकि आर्थिक दृष्टि से स्वदेशी निवेशकर्ता बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से प्रतियोगिता करने में समर्थ होंगे। इसके फलस्वरूप एक ओर तो देश का उत्पादन हतोत्साहित होगा और बेरोजगारी फैलेगी वहीं दूसरी ओर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का आधिपत्य अर्थत्सवस्था पर बढ़ता जायेगा और उनके मुनाफे में भी निरन्तर वृद्धि होती रहेगी जिससे हमारी अर्थव्यवस्था को हानि उठानी पड़ेगी।
- भारतीय जड़ी-बूटी सम्पति का विदेशी कम्पनियों द्वारा पेटेन्ट (Patent of Indian Herbsby Foreign Companies) – कुछ विदेशी कम्पनियों ने भारतीय जड़ी-ट्वी सम्पति, भारतीय खाधानो जैसे हल्दी, नीम, तुलसी, बासमती चावल आदि के पेटेन्ट प्राप्त कर लिये है। एक अमरीकी कम्पनी ने 1995 में हल्दी का पेटेंट ले लिया । भारत ने इसके विरुद्ध विश्व व्यापार संगठन में शिकायत की और फिर विश्व व्यापार संगठन ने, अमरीकी कम्पनी का हल्दी का पेटेंट रद्द कर दिया। एक अन्य अमरीकी कम्पनी ने नीम का पेटेन्ट प्राप्त किया, इसी तरह बासमती चावल का पेटेंट भी एक विदेशी कम्पनी ने कासमती (Kasmati) और टेक्समती (Taxmati) के नाम से प्राप्त किया है। इस तरह भारतीय जड़ी-बूटी सम्पति एवं खाधानों का विदेशी कम्पनिर्यो द्वारा पेटेंट लिये जाने का खतरा है। भारत को इन जड़ी-बूटियों तथा खाधार्ना के प्रयोग पर पेटेंट प्राप्त करने वाली कम्पनी को बड़ी रायल्टी देनी पड़ सकती है।
- कीमतों पर प्रभाव (Effect on Price) – यदि सामान्य दिनचर्या की वस्तुओं जैसे खाधानों, दवाइयों आदि का पेटेंट हो जाता है, तब भारत जैसे विकासशील देशों को इन वस्तुओं के प्रयोग पर पेटेन्ट धारक को रायल्टी का भुगतान करना होगा। इससे कीमतों में वृद्धि होगी। पेटेन्ट सम्बी समझौते का भारत के दवाई उधोग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा । बहुराष्ट्रीय कम्पनियां इन दवाइयों की अधिक कीमत लेंगी ।
- विवादों की समस्या (Problems of Disputes) – बहु राष्ट्रीय कम्पनियां किसी भी पेटेन्ट के बारे में भारतीय कम्पनियों के विरुद्ध विश्व व्यापार के सम्मुख नकल करने का दावा पेश कर सकती है। नकल न करने को साबित करने में भारतीय अनुसंधानकर्ताओं को अनावश्यक उलझन में पड़ना होगा। उनका समय तथा धन नष्ट होगा। इस सन्दर्भ में यह भी विचारणीय है कि कोई भी विवाद, प्रस्तावित पक्षकार अपने देश में दर्ज करेगा। भारत में विवाद का न्यायीकरण तथा क्षतिपूर्ति की राशि भी कम रहेगी, जबकि अमेरिका आदि विकसित देशों में चलाये हुए विवादों में भारतीयों को अपने बचाव करने में काफी व्यय करना पड़ेगा। इस प्रकार पेटेन्ट संबंधी विवाद बढ़ेगी और इनकी. न्यायिक प्रक्रिया भारतीयों को महंगी पड़ेगी ।(101)
- सामाजिक लागत. वातावरण-सागत व मजदूरी लागत का मुद्दा (IssueofSocial Cost Environment-Cost, Labour-Cost) – विकसित देशों का यह कहना है. कि विकसित देशों में सामाजिक लागत, वातावरण लागत व श्रम लागत विकासशील देशों की तुलना में अधिक है। अतः विकसित देशों को अपने आयार्तों पर इन लागती के अन्तर के बराबर टैरिफ लगाने की अनुमति दी जाने चाहिये, ताकि इन लागतों के अन्तर के प्रभाव को खत्म किया जा सके। परन्तु ऐसा होने से भारत जैसे विकासशील देश को नुकसान होगा ।
- क्षेत्रिय समूहों को नुकसान (Loss of Regional Grouping) – गैट द्वारा बहुपक्षीय व्यापार (Multilateral Trade) को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे क्षेत्रीय व्यापारिक समूह जैसे- सार्क, नापटा आदि के व्यापार को हानि हुई है। अर्थात विश्व व्यापार संगठन में व्यापार बढ़ने से इन क्षेत्रीय समूहों के व्यापार की प्रगति में कमी आई है।
- सेवाक्षेत्र को हानि (Disadvantage to Service Sector) – विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत यह आशंका व्यक्त की गई है कि इससे हमारे सेवाक्षेत्र के व्यापार को हानि । हमारी बैंकिंग, बीमा यातायात, शिक्षा तथा होटल आदि व्यवस्थार्य बहु राष्ट्रीय कम्पनियों की सेवाओं से प्रतियोगिता नहीं करे सकेगी। परिणामस्वरूप धीरे-धीरे इन सेवाओं के क्षेत्र में कार्यरत स्वेदशी संस्थायें बन्द हो जायेंगी और हमारी आर्थिक स्वतन्त्रता छिन जायेगी ।
- विश्व व्यापार संगठन से भारत को लाभ या विश्व व्यापार संगठन के पक्ष में तर्क (Advantage of WTO for India or Arguments in favour of WTO) – विश्व व्यापार संगठन के विरुद्ध उपरोक्त तर्क दिये गये हैं जबकि वास्तविकता कुछ और है। यदि ध्यान दें तो यह प्रतीत होता है कि विपक्ष के ये तर्क एक पक्षीय मूल्यांकन प्रस्तुत करते है। कुछ तर्क तो बिल्कुल निराधार है। इस प्रस्ताव से भारत को प्राप्त होने वाले कुछ मुख्य लाभ निम्नलिखित होने की सम्भावना है:
- भारत शुरू से ही बहु पक्षीय व्यापार वार्ताओं (Multilateral Trade Negotiations) – के पक्ष में हैं क्योंकि इसके फलस्वरूप सभी सदस्य देर्शा का सर्वाधिक अनुग्रह प्राप्त राष्ट्र (Maximum Favoured Nation-MFN) के लाभ प्राप्त होते है। विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बने रहने से भारत के 146 देशों के साथ बहुपक्षीय समझौते संभव हो जायेंगे। इन देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते नहीं करने पड़ेगे। इसके अलावा सीमा शुल्क की दरों में कमी और नई मंडियां खुलने से व्यापार में वृद्धि होती है। अनुमान है कि विश्व व्यापार संगठन समझौते के फलस्वरूप विश्व व्यापार में बहुत वृद्धि होगी। इसके फलस्वरूप भारत के निर्यात 200 बिलियन से 300 बिलियन डॉलर तक बढ़ने की सम्भावना है।
- सब्सिडी में कमी नहीं होगी (No Reduction in Subsidies) – विश्व व्यापार संगठन के विपक्ष में यह तर्क गलत है कि इसके फलस्वरूप कुरषि क्षेत्र को दी जाने वाली सब्सिडी में कमी होगी। यह प्रस्ताव सब्मिाड़ी में कमी की बात तभी करता है जब उक्त सब्सिडी उत्पाद के बाजार मूल्य के 10 प्रतिशत से अधिक है। भारत में इस प्रकार की सब्सिडी 10 प्रतिशत से काफी कम है। वर्तमान समय में भारत सरकार द्वारा कृषि को दी जा रही सब्सिडी 35 प्रतिशत है। अतः यह मानना कि विश्व व्यापार संगठन के कारण कृषि को मिलने वाली सब्सिडी में कटौती की जायेगी निराधार है। वास्तविकता यह है कि इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से सब्सिडी की मारा में वृद्धि की सम्भावना बढ़ जाती है। विश्व व्यापार संगठन के कारण भारत में गरीबी को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिये चलाई जा रही सार्वजनिक वितरण प्रणाली अथवा उचित दर की दुकानों पर बेचे जा रहे खाधान्नों को मिलने वाली सहायता में भी कोई कमी नहीं की जायेगी ।
- खाद्यान्न के आयात में वृद्धि आवश्यक नहीं है (No Need of Increase in Imports of Foodgrains) – विश्व व्यापार संगठन समझौते के कारण भारत के खाद्यान्न के आयात में वृद्धि करना आवश्यक नहीं है। इसका कारण यह है कि खाद्यान्न का आयात उन देशों के लिये आवश्यक नहीं होता जो भुगतान सन्तुलन की कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। भारत भुगतान सन्तुलन की कठिनाइयों का सामना कर रहा है। इसलिये भारत के लिए खाद्यान्न का आयात आवश्यक नहीं है। इसके अतिरिक्त भुगतान सन्तुलन की समस्या के कारण भारत आयात पर रोक लगाने या उसे नियत्रित करने के लिए परिमाणात्मक अथवा अन्य प्रतिबन्ध लागू कर सकता है।
- खाद्यान्न के निर्यात में वृद्धि (Increase in Exports of Foodgrains) – विकसित देशों द्वारा कृषि पर दी जा रही सरकारी सहायता में कमी से विश्व की मंडियों में कुछ विशेष किस्म के भारतीय खाद्यान्नों की मांग बढ़ेगी। इससे भारत को कृषि पदार्थों का निर्यात बढ़ाने का अवसर प्राप्त होगा। विश्व व्यापार संगठन ने सीमा शुल्क और आयात संबंधी प्रतिबन्धों में कमी करने की सिफारिश की है। इसके फलस्वरूप भी भारत का कृषि निर्यात काफी प्रोत्साहित होगा ।\
- बीजों के प्रयोग की स्वतन्त्रता (Freedom to use Seeds) – भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसान अपनी उपज में से बचाये गये बीजों से अगली फसल लेने को पूरी तरह स्वतन्त्र होंगे। वे अन्य किसानों के साथ उन बीजों की अदला-बदली भी कर सकेंगे। अतः कृषक वर्ग का यह भय कि वे अपने बीजों का अगली फसल उगाने में प्रयोग नहीं कर पाएंगे, निराधार है। \
- बीजों का पेटेन्ट तथा स्पे जेनेरिस व्यवस्था (Patent and Sui Generis System) – सरकार ने स्पष्ट किया है कि भारत में बीजों को पेटेन्ट नहीं किये जाने की व्यवस्था है और न ही भविष्य में इस व्यवस्था को बदलने का कोई इरादा है। सरकार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि पौध किस्मों के संरक्षण (स्वेजेनेरिस) के मामले में वह अपनी व्यवस्था अपनाएगी जिसके अन्तर्गत, पौध प्रजनकों (Plant Breeders) के अधिकार के लिये प्रमाण पत्र दिये जायेंगे। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस प्रकार के संरक्षण व्यवस्था में किसानों के अधिकारों और अनुसंधानकर्ताओं के अधिकप्ों की व्यवस्था के माध्यम से किसानों को ज्यादा सुधरे हुए बीज बाजार में मिल सके और इससे भारत के कृषि अनुसंधान संस्थाओं को ही ज्यादा लाभ मिलेंगे। स्वेजेनेरि व्यवस्था से कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और विकास निवेश बढ़ेगा और अधिक उपज देने वाली बेहतर किस्मों का विकास होगा । \
- अंकल ड्राफ्ट तथा कृषि (Dunkel Draftand Agriculture) – विश्व व्यापार संगठन मे पहले बने हंकल ड्राफ्ट का हमारे किसानों के हितों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा बल्कि इससे कृषि वस्तुओं के निर्यात, देश में कृषि अनुसंधान और अधिक उपज देने वाली फसलों के विकास को बढ़ावा मिलेगा। हमारे कृषि विकास की सभी प्रमुख योजनायें समझौते की व्यवस्थाओं से बाहर है। विश्व व्यापार संगठन समझौते के लागू हो जाने के बाद हमें किसानों को दी जा रही सब्सिडी में कोई कमी नहीं करनी होगी। हमें किसी भी देश की कृषि उपज के लिये अपनी मंडियों के द्वार नहीं खोलेने होंगे। किसानों को अपनी उपज का बीजों के रूप में स्वयं प्रयोग या उनकी अदला-बदली करने का पूरा अधिकार होगा। सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को मिलने वाली सरकारी सहायता में कोई कमी नहीं आयेगी। डॉ. मनमोहन सिंह के अनुसार, “विश्व व्यापार संगठन से खेती में विविधता आयेगी, भारत दूसरे देशों के साथ उन्नत कृषि और वैज्ञानिक जानकारी का जो आदान-प्रदान करेगा, उससे भारतीय क्तिार्नी का उत्पादन बेहतर होगा और गई गुणा बढ़ जायेगा, सरकार खेती के लिये सब्सिडी और संरक्षम बढ़ाएगी । \
- व्यापार सम्बन्धित बौद्धिक संपदा अधिकार या ट्रिप्स (Trade Related Intellectual Property) – विश्व व्यापार संगठन के बनने से पहले डंकेल प्रस्ताव में कापीराइट, ट्रेड मार्क, ट्रेड सीक्रेटस, औधोगिक डिजाइन, भौगेलिक संकेतांक और पेटेन्टस को बौद्धिक संपदा अधिकार के अन्तर्गत रखा गया है। इस प्रस्ताव से भारत को कोई विशेष हानि होने वाली नहीं है क्योंकि केवल दवाइयों को छोड़ अन्य सभी क्षेत्रों में भारत की व्यवस्था अंतराष्ट्रीय स्तर की है। पेटेन्टस विशेषकर दवाओं से संबंधित पेटेन्टस के संदर्भ में भारतीय कानून और डंकेल प्रस्ताव के पेटेन्टस प्रावधानों में अन्तर है। इसलिये यह संभव है कि दवाइयों की कीमत में थोड़ी वृद्धि हो जाये। लेकिन यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि भारत में कुल उपलब्ध दवाइयों में से केवल 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत दवाइयां ही पेटेन्ट सूची के अन्तर्गत है अतएव अत्यधिक परेशान होने की बात नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनिवार्य और जीवन रक्षक दवाइयों को डंकल प्रस्ताव या विश्व व्यापार संगठन से बाहर रखा है। फिर हमारे देश में गैर पेटेन्टस दवाइयां सामान्य रूप से उपलब्ध है जो निश्चित ही पेटेन्ट सूची की दवाइयों की बढ़ती हुई कीमतों को नियंत्रित करने में सहायक होंगी। पेटेन्ट सम्बन्धी प्रावधान 10 वर्षों की अवधि के बाद से लागू होगें। इस अवधि में यदि भारतीय वैज्ञानिकों को पर्याप्त सुविधा दी जाये तो वे नई और अच्छी दवाइयों का निर्माण इस अवधि में कर सकते है।
- व्यापार संबंधी निवेश की कार्यवाही (Trade Related Investment Measures-TRIMS) – व्यापार से संबंधित पूंजी निर्माण के अन्तर्गत विश्व व्यापार संगठन प्रस्ताव के जो प्रावधान है, उनसे भारत को लाभ होगा। ट्रिम्स जो विदेशी निवेशकर्ताओं को भी स्वदेशी निवेशकों के रुझान अधिकार दिलाता है, के संबंध में सरकार को यह पूर्ण अधिकार है कि व्यापार में पूंजी निवेश के लिए किस सीमा तक अर्थव्यवस्था द्वार खोले और यह भी निर्णय लेने की उसे स्वतन्त्रता है कि न्मिङ प्रकार की विदेशी पूंजी का निवेश देश में होने दें। भुगतान सन्तुलन की दृष्टि से निर्यात की बाशता के लिये कौने-सी शर्त पूरी की जाये, इसका निर्धारण भी स्वयं सरकार को ही करना है। इसलिये विश्व व्यापार संगठन के प्रस्तावों का देश की आर्थिक प्रभुसम्पन्नता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा ।\
- सेवाये (Services) – विश्व व्यापार संगठन प्रस्ताव के अन्तर्गत सेवा क्षेत्र के व्यापार को शामिल कर लेने से भारत जैसे विकासशील देशों को लाभ प्राप्त होगा। इस प्रस्ताव के अनुसार विकसित देश अल्पविकसित राष्ट्रों में अनेक व्यापारिक एवम् सेवा संस्थाएं जैसे बैंक, बीमा, यातायात, होटल आदि खोलेंगे। इसके बदले में विकसित राष्ट्र भारत को अपनी वस्तुएं बेचने के लिये व्यापक बाजार उपलब्ध करायेंगे । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को देश में व्यापारिक सेवा संस्थाए को खोलने की अनुमति देने से एक ओर तो सेवाओं का व्यापार व्यापक होगा। वहीं दूसरी ओर भारत के करोड़ों बेरोजगारों को रोजगार के व्यापक अवसर प्राप्त होंगे। उचित अवसर के अभाव में लोगों का विदेशी में पलायन भी घटेगा और ‘ब्रेन ड्रेन’ की समस्या समाप्त हो जायेगी ।\
- कपड़ा उद्योग (Cloth and Textile Industry) – विश्व व्यापार संगठन के प्रस्ताव से भारत के कपड़ा उद्योग को सबसे अधिक लाभ होगा विश्व व्यापार संगठन प्रस्ताव के अनुसार कपड़ा उद्योग पर लगे सभी प्रतिबन्ध अगले दस वर्षा में समाप्त कर दिये जायेगे । कोटा निर्धारण प्रक्रिया समाप्त हो जाने से भारतीय वस्त्रों का निर्यात अधिक होने लगेगा । इससे वस्त्र उद्योग प्रोत्साहित होगा और इस क्षेत्र में रोजगार के नये अवसर पैदा होंगे । \
- राशिपातन पर प्रतिबंध (Cloth and Textile Industry) – विश्व व्यापार संगठन समझौते अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में राशिपातन पर प्रतिबंध लगाते है।
- विदेशी पूंजी का आगमन (Inflow of Foreign-Capital) – विश्व व्यापार संगठन समझौते ने विदेशी पूंजी के आगमन को स्वतन्त्र बनाया है। इससे भारत जैसे विकासशील देशों में विदेशी पूंजी का अन्तरप्रवाह बढ़ा है व पूंजी निर्माण को बढ़ावा मिला हैं विदेशी पूंजी के आगमन से बड़ी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना हुई है। इससे रोजगार के अवसर पैदा हुए है। \
- बेहतर तकनीक व अच्छी किस्म के उत्पादों कां अन्तरप्रवाह (Inflow of Better Technology and Better Products) – विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश के बढ़ने रवे बेहतर तकनीक का अंतरप्रवाह होता है और देश में अच्छी किस्म के उत्पादों की उपलक्कता होती है। इससे जन सामान्य के जीवन स्तर में सुधार होता है. औद्योगिक विकास में प्रगति होती है तथा कृषि क्षेत्र में अच्छे किस्म के बीजों की उपलब्धता से इस क्षेत्र की उत्पादकता में सुधार आता है।1
- बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था के लाभ (Benefits of Multilateral Trade System)- विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत जब कोई व्यापारिक समझौता किया जाता है तब यहसमझौता एक सदस्य देश का उन सभी देशों के साथ होता है जिन्होंने इस व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर किये है विश्व व्यापार संगठन में किये गये व्यापारिक समझौते 146 देशों के बीच एक साथ लागू हो जाते है। बहुपक्षीय व्यापारिक समझौतों से विदेशी व्यापार में बहुत वृद्धि हुई है। \
- निर्यात अनुदान (Exports Subsidies) – विश्व व्यापार संगठन समझौते में वह देशअपने निर्यातों पर अनुदान दे सकता है जिसकी प्रति व्यक्ति आय 1000 डॉलर से कम है तथा उस उत्पाद का विश्व व्यापार में हिस्सा 325 प्रतिशत से कम है, जिस उत्पाद पर निर्यात अनुदान दिया जाना है। भारत इन दोनों ही शर्तों के अन्तर्गत अपने निर्यातों पर अनुदान दे सकता है। निर्यात अनुदान दिये जाने से भारतीय निर्यातों को और भी बढ़ाया जा सकता है।