गैट की स्थापना 30 अक्टूबर, 1947 को हुई थी और इसे विश्व व्यापार को बाधारहित बनाकर उसे प्रोत्साहित करने के मूल मकसद से स्थापित किया गया था, किन्तु फिर भी इनमें काफी अन्तर है। इन दोनों के बीच महत्वपूर्ण अन्तर को निम्नांकित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया गया है –
- स्थापना का उद्देश्य – गैट की स्थापना का उद्देश्य सीमित एवं कम प्रभावी थे, क्योंकि इसके उद्देश्य के अन्तर्गत केवल वस्तुओं के उत्पादन एवं व्यापार का विस्तार करना, जीवन स्तर में सुधार करना तथा विश्व संसाधनों का अनुकूलतम दोहन करना ही सम्मिलित था, जबकि विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य अधिक व्यापक एवं प्रभावी है, क्योंकि इनके अन्तर्गत गैट के उद्देश्यों के अतिरिक्त सेवाओं के उत्पादन एवं व्यापार का विस्तार करना, विश्व संसाधनों के अनुकूलतम दोहन को सुस्थिर विकास तथा पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण से जोडना आदि सम्मिलित हैं ।
- कार्य क्षेत्र – गैट का कार्यक्षेत्र सीमित और संकुचित था, जबकि विश्व व्यापार संगठन का कार्यक्षेत्र कहीं अधिक विस्तृत एवं बहुआयामी है। गैट का कार्यक्षेत्र केवल तटकरौ को कम करना तथा विदेशी व्यापार के मार्ग की अन्य बाधाओं को दूर करने तक सीमित था। इसके विपरीत विश्व व्यापार संगठन के कार्य क्षेत्र में उक्त बार्ता के अलावा सेवाओं का व्यापार, बौद्धिक सम्पदा अधिकार, विदेशी पूँजी निवेश आदि विषर्यो का भी समावेश है।
- वैधानिक अधिकार एवं हैसिय (Legal Rights & Status) – गैट की तुलना में विश्व व्यापार संगठन के पास कहीं अधिक वैधानिक अधिकार हैं इसलिए इसकी हैसियत गैट से अधिक अच्छी और सशक्त है। गैट के पास सदस्य राष्ट्रों की आन्तरिक नीतियों तथा मामलों में हस्तक्षेप एवं परिवर्तन कराने का वैधानिक अधिकार नहीं था, जबकि विश्व व्यापार संगठन को सदस्य राष्ट्रों की घरेलू नीतियों एवं नियमों में परिवर्तन कराने के लिए बाध्य करने का वैधानिक अधिकार प्राप्त है ।
- समझौतों के उल्लंघन करने पर दण्डित करने का अधिकार (Right To Penalise on Violation) – गैट को अपने सदस्यों को समझौतों के उल्लंघन करने का दोषी पाये जाने पर दण्डित करने का कोई वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं था, जबकि विश्व व्यापार संगठन को सदस्य राष्ट्रों दद्वारा समझौतों का उल्लंघन करने का दोषी पाये जाने पर उन्हें दण्डित करने का वैधानिक अधिकार प्राप्त है।
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियों तथा नौकरशाहों का प्रभुत्व (Dominance of MNC & Bureaucrafts)- गैट के कार्यरत नौकरशाहों के पास सीमित अधिकार थे इसलिए वे शक्तिहीन और कम प्रभावशाली थे, जबकि विश्व व्यापार संगठन में कार्यरत नौकरशाहों के पास अधिक वैधानिक अधिकार है इसलिए वे अधिक शक्तिशाली एवं प्रभावी है और उन्हें बहू राष्ट्रीय निगम अपने पक्ष में निर्णय करवाने के लिए चैन-वेन प्रकारेण प्रभावित करने की चेष्टा करेंगे। इससे स्पष्ट है कि गैट की तुलना में विश्व व्यापार संगठन पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों तथा नौकरशाहों का अधिक वर्चस्व रहेगा।
- नफा-नुकसान (Gain & Loss) – मैट पर चूंकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का दबाव लगभग नहीं के बराबर था इसलिए यह विकासशील देशी के हितों का संरक्षण एवं संवर्द्धन करने में काफी हद तक सफल रहा है, लेकिन विश्व व्यापार संगठन पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का भारी दबाव व वर्चस्व बने रहने की संभावना के कारण पैसा प्रतीत होता है कि यह विकासशील राष्ट्रों के हितों का पौषण एवं संवर्द्धन करने में अधिक सफल नहीं हो पायेगा। लेकिन यदि इसकी वैधानिक व्यवस्थाओं को खुले दिल-दिमाग से लागू किया जाये (जिसकी सम्भावना कम दिखाई देती है), ती यह विकासशील राष्ट्रों का सही मायनों में हित साधक संगठन बन सकता है।
- विकसित देशों का प्रभुत्व (Dominance of Developed Countries)- मैट के अधिकार एवं कार्यक्षेत्र सीमित होने के कारण विकसित राष्ट्र विकासशील राष्ट्रों पर अपनी मनमानी नहीं कर सके, जबकि विश्व व्यापार संगठन के पास अधिकार अधिक है तथा कार्यक्षेत्र काफी विस्तृत है इसलिए वे विकासशील राष्ट्रों पर अपनी मनमानी अधिक कर सकेंगे ।
सारांश रूप में कहा जाये तो विश्व व्यापार संगठन गैट की तुलना में अधिक विस्तृत एवं व्यापक वैधानिक अधिकार वाला संगठन है जिसके कारण वह अपनी नीतियों एवं समझौतों को सदस्य राष्ट्रों पर थोप सकता है और उल्लंघन करने पर उन्हें दण्डित भी कर सकता है।
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