विश्व व्यापार संगठन की स्थापना अपने आप में एक चमत्कारी एवं अद्भुत घटना है क्योंकि इससे सम्पूर्ण विश्व को लाभ होगा और विशेषकर विकासशील देशों के निर्यात वृद्धि के मार्ग में जो बाधाएँ हैं, वे कम अथवा समाप्त हो सकेंगी, लेकिन विकासशील राष्ट्रों को विश्व व्यापार संगठन से प्राप्त होने वाले लाभ गैट की भाँति मृग- मरीचिका साबित हो सकते हैं। उनके निर्यार्ता और विकास में वृद्धि के सुन्दर सपने धराशाही हो सकते हैं,
इस संगठन पर भी गैट की तरह से विकसित राष्ट्रों का वर्चस्व बना रहेगा। विश्व व्यापार संगठन से सबसे अधिक खतरे विकासशील राष्ट्रों को है इसलिए अनेक राष्ट्र अभी तक भी इसके सदस्य नहीं बन पाये हैं। विकासशील राष्ट्रों को इस संगठन से निम्नांकित खतरों से आशंका बनी हुई है:
- बहुपक्षीय समझौते के उल्लंघन पर दण्डात्मक कार्यवाही का भय (Fear of Punitive Action on the Violation of Multilateral Agrrements) – विश्व व्यापार संगठन को अपने किसी भी सदस्य राष्ट्र द्वारा बहुपक्षीय समझौते का मनमाने ढंग से उल्लंघन करने पर उसके विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही करने का अधिकार प्राप्त है। संगठन के इस अधिकार के कारण विकासशील देशों को यह आंशका है कि विश्व व्यापार संगठन उनके द्वारा राष्ट्रहित में अपनायी जाने वाली नीतियों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही कर सकता है।
- राष्ट्रहित में नीति निर्धारण के अधिकार का प्रतिबन्धित होना (Restriction on the Right to Determine Policies in National Interest) – विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के फलस्वरूप सदस्य राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए उपयुक्त नीतियों का निर्धारण स्वतंत्र रूप से नहीं कर सकते, फलस्वरूप तृतीय विश्व के राष्ट्रों को इससे लाभ की तुलना में हानि होने की सम्भावना अधिक है। विकासशील राष्ट्रों को अपनी आन्तरिक घरेलू आर्थिक नीतियों को विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों व व्यवस्थाओं के अनुरूप समायोजित करने की बाध्यता उत्पन्न हो गयी है जिससे उनके स्वतंत्र नीति निर्धारण का अधिकार प्रतिबन्धित हो जाने की स्थिति बन गयी है।
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का बढ़ते हस्तक्षेप एवं वर्चस्व का अभय (Fear of Increaseing Interference and Dominance of MNCs) – जैसा कि पहले स्पष्ट किया जा चुका है कि विश्व व्यापार संगठन के पास गैट की तुलना में अधिक प्रभावी एवं व्यापक वैधनिक अधिकार हैं इसलिए इसकी नौकरशाही अधिक शक्तिशाली है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों अपने विशाल संशाधनों तथा सम्पर्क सूत्र के द्वारा संगठन की नौकरशाही को अपने पक्ष में करने के लिए येन-केन प्रकारेण भरसक प्रयत्न करेंगी जिससे संगठन के निर्णयों में इन कम्पनियों का अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप का भय बढ़ गया है। बहुराष्ट्रीय निगमों के बढ़ते हस्तक्षेप एवं वर्चस्व का प्रभाव यह है कि विकासशील राष्ट्रों के बाजार इनके द्वारा निर्मित माल व सेवाओं के लिए खोल दिये जायेंगे। इसके अलावा इनके द्वारा विकारनशील में पूँजी निवेश के माध्यम से उनके प्राकृतिक संसाधनों और सस्ते श्रम का स्वहित में मनमाना दोहन, किया जायेगा, परिणामस्वरूप विकासशील राष्ट्रों का आर्थिक शोषण और बढ़ जायेगा ।
- पर्यावरण के नाम पर विकासशील राष्ट्रों की स्वायत्तता पर हमला (Attack on Developing Countries in the Name of Environment) – सुस्थिर विकास और पर्यावरण सरंक्षण के नाम के नये मुद्दों पर विकसित देशों द्वारा विश्व व्यापार संगठन की आड़ में विकासशील देशों से आने वाली वस्तुओं के आयातों पर रोक लगा सकते हैं । (जैसा कि अमेरिका ने भारत से आयात की जाने वाली स्कर्ट्स पर प्रज्वलनशीलता अधिक होने के कारण प्रतिबन्ध लगाया और जर्मनी ने भारतीय वस्त्रों पर एजोरंगों के प्रयोग के आरोप के आधार पर आयात पर प्रतिबन्ध लगाया) और उन्हें प्रदूषण नियंत्रण की नवीनतम प्रविधियों को अपनाने के लिए बाध्य कर सकते हैं। इस प्रकार विकसित राष्ट्र पर्यावरण प्रदूषण के नाम प्रदूषण नियंत्रण की प्रविधियों को ऊचे दाम पर बेचकर विकासशील देशों का आर्थिक शोषण करते रह सकेंगे ।
- विकसित देशों की दोहरी नीति और मनमानापन (Arbitraryness Dual Policy and of Developed Countries) – विश्व व्यापार संगठन की आड़ में विकसित राष्ट्र दोगली नीति का अनुसरण कर रहे हैं। वे एक तरफ विकासशील राष्ट्रों के विशाल बाजारों पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहते हैं, तो दूसरी तरफ अपने बाजारों को विकासशील देशों की वस्तुओं के लिए खोलना नहीं चाहते हैं। अमेरिका, जर्मनी, बिटेन आदि विकसित राष्ट्र अपनी वित्तीय एवं बीमा कंपनियों के लिए विकासशील देशों पर बाजार खोलने के लिए दबाव बनाये हुए है, वही दूसरी ओर वे विकासशील राष्ट्रों के कुशल श्रमिको के रोजगार पर लगी पाबन्दियों को हटाने के लिए तैयार नहीं है। सगठन की आडू में विकसित देशों की दोहरी नीति और मनमानापन विकासशील राष्ट्री की आर्थिक खुशहाली और मुका व्यापार के मार्ग में बड़ी बाधा है।
- गैर-व्यापार सम्बन्धी सामाजिक मुद्दे (Non & Trade Related Social Issues) – मानवाधिकार, श्रममानक बालश्रम, श्रमसंघ तथा मजदूरी भुगतान आदि गैर- व्यापार सामाजिक मुद्दों को विश्व व्यापार संगठन के मंच पर उठाकर विकसित राष्ट्र विकासशील राष्ट्रों को उनके लाभी से वंचित करने का षड्यंत्र रचते रहते हैं। विकासशील राष्ट्रों में नीची मजझी दरों तथा आयात शुल्कों में कटौती के कारण अब विकसित राष्ट्रों को विकासशील राष्ट्रों पर गैर-व्यापार सम्बन्धी सामाजिक मुद्दों के नाम पर मजदूरी दरें बढ़ाने के लिए दबाव बनाये हुए हैं। विश्व व्यापार संगठन की सिंगापुर मंत्री स्तरीय सम्मेलन ने व्यापार तथा श्रम मानकों के बीच सम्बन्धी को विश्व व्यापार संगठन के अधिकार क्षेत्र के बाहर माना है।
- विकासशील देशों पर वैधानिक प्राक्धाों में परिवर्तन का दबाव (Pressure of Changes in Legal Provisions)- विश्व व्यापार संगठन की शर्ती की अनुपालना हेतु विकासशील देशों पर अपने वैधानिक प्रावधानों में परिवर्तन करने की बाध्यता उत्पन्न हो गयी है। इन्हें अपने पेटेन्ट कानूनों तथा सीमा शुल्क प्रावधानों में परिवर्तन करना आवश्यक हो गया है। इस बाध्यता के चलते विकासशील राष्ट्रों पर आर्थिक सहायता को कम करने तथा स्वदेशी की भावना पर अंकुश रखने का दवाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इन दबावों के चलते ये राष्ट्र अपने आर्थिक समाजिक हितों की रक्षा करने में असमर्थ हैं।
- विश्व व्यापार संगठन के अनुसार चलने की बाध्यता (Compulsion to go with WTO) – विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता ग्रहण करने वाले राष्ट्र अब इसकी व्यवस्थाओं के अनुरूप चलने के लिए विवश हैं। इसलिए वे अपनी स्वेच्छा से न तो नागरिकों के विशेष समूहों को आर्थिक रियायतें दे सकते हैं और न ही विभिन्न क्षेत्रों को प्रदान की जाने वाली आर्थिक सहायता का निर्धारण कर सकते हैं। वास्तव में यह उनकी सम्प्रभुता पर कुठाराघात है ।
- पक्षपातपूर्ण रूख (Biased Attitude) – विकासशील राष्ट्रों को आशंका है कि विश्व व्यापार संगठन विकसित देर्शा तथा बहुराष्ट्रीय निगमों के दबाव में उनके साथ पक्षपातपूर्ण रवैया अपना सकता है जिसके कारण उन्हें इस संगठन का सदस्य बनने के कारण प्राप्त लाभों की तुलना में हानि अधिक हो सकती है।
- बढ़ते विवाद (Increasing Disputes) – विश्व व्यापार संगठन के समक्ष बढ़ते विवादों के कारण 2 वर्ष से कुछ अधिक कार्यकाल में ही इसे 100 से अधिक विवाद प्राना हा चुके है जो अपने आप में एक रिकार्ड है।
विश्व व्यापार संगठन को अब तक एक वर्ष में औसत रूप से 40 विवाद प्राप्त हो चुके है, जबकि इससे पूर्व गैट को एक वर्ष में औसत रूप से केवल 6 विवाद प्राप्त हो चुके थे।
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