निगम केवल ऐसे ही प्रस्तावों पर विचार करता है जिनका उद्देश्य निजी उद्यम की स्थापना एवं उनका विस्तार करना हो। इसके मुख्य कार्य निम्न हैं –
वित्त निगम (Financial Corporation) का मुख्य कार्य उद्योगों, व्यापारिक संस्थानों और विकास परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करना होता है। यह दीर्घकालिक और मध्यम अवधि के ऋण, इक्विटी पूंजी, और कार्यशील पूंजी की व्यवस्था करता है। वित्त निगम नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना में सहायता करता है तथा छोटे और मध्यम उद्योगों को प्राथमिकता देता है। यह आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है और बेरोजगारी कम करने में सहायक होता है। इसके अतिरिक्त, वित्त निगम तकनीकी परामर्श, परियोजना मूल्यांकन, और प्रबंधन सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है। इन कार्यों से आर्थिक प्रगति को गति मिलती है।
निगम की स्थापना के समय इसका प्रमुख कार्य ऋण देना ही था, किन्तु सन् 1961 के संशोधन द्वारा निगम पर विनियोजन सम्बन्धी पाबन्दी हटा लिए जाने के बाद से अब यह निगम उपक्रमों की अंश पूंजी को क्रय करने लगा है।
- ऋण देना एवं अंश पूंजी क्रय करना – वित्त निगम के समझौता पत्र के अनुसार इसका प्रमुख कार्य ऋण देना था, परन्तु 1 सितम्बर 1961 से इसे उद्द्योगों में पूंजी विनियोग का अधिकार भी दे दिया गया है। इस प्रकार अब निगम ऋण देने तथा विनियोग दोनों ही कार्य करता है। वित्त निगम सदस्य देशों के सरकारी या अर्द्धसरकारी उपक्रमों में पूंजी का विनियोजन नहीं कर सकता। यह तो केवल उन्हीं उपक्रमों में विनियोजन करता है जो निजी साहसियों के द्वारा चलाए जाते हैं। पूंजी विनियोजित करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि निगम, द्वारा दी गयी, पूंजी किसी निजी उपक्रम के लिए आवश्यक पूंजी के आधे भाग से अधिक नहीं होनी चाहिए, निगम साधारणतः 5 वर्ष से 15 वर्ष तक की अवधि के लिए ऋण देता है जिन्हें ऋण लेने वाले उपक्रम किस्तों किश्तों में चुकाना पड़ता है।
- अल्पविकसित देशों में विनियोग को प्रोत्साहन – निगम ऋण देते समय अथवा विनियोजन करते समय अल्पविकसित देशों को प्राथमिकता देता है। विनियोग करते समय देश इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि उद्यम का बाजार विस्तृत है एवं उसका प्रबंध कुशलता से जा सकता है। निगम द्वारा विनियोग की जाने वाली पूंजी उपक्रम में लगी कुल पूंजी के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
- ऋण क्षेत्र सीमा – निगम लघु, मध्यम एवं बड़े पैमाने के अर्थात् सभी आकार के उपक्रमों को ऋण देता है लेकिन यह 1 लाख डालर से कम तथा 30 लाख डालर से अधिक ऋण नहीं देता। यदि निजी पूंजी अधिक विनियोजित होने को तत्पर हो, तो निगम 30 लाख डालर से अधिक विनियोजित कर सकता है। ऋण केवल वे ही उपक्रम ले सकते हैं जिनकी कुल पूंजी निगम के अंश मिलाकर, 5 लाख डालर से कम न हो । निगम केवल निर्माणी उद्योगों में ही पूंजी लगाता है,। सेवाओं जैसे विद्युत, सिंचाई, गह निर्माण या विदेशी व्यापार के लिए ऋण नहीं देता । ऋणों के परिपक्व होने की अवधि साधारणतः 7 वर्ष से 12 वर्ष की होती है। ऋण मुख्यतः उद्योग की जमानत ही दिया जाता है न तो कोई गारंटी ली जाती है और न ही सम्पति बंधक रखी जाती है।
- उद्यम की जांच – निगम जिस उद्योग को ऋण देता है उसकी प्रगति जानने के लिए उससे निरन्तर सम्पर्क रखता है और उसके लेखों के ‘अंकेक्षण पर जोर देता है तथा उसकी सूचना अपने पास भी मंगवाता है।
- अंश पूंजी का अभिगोपन – निगम अंशपूंजी का अभिगोपन करता है तथा ऋण वचन देकर पूंजी को सरलता से उपलब्ध कराता है किन्तु निगम सामान्य लोगों को प्रत्यक्ष रूप से प्रतिभूतियों का विक्रय नहीं करता ।
- निगम द्वारा सलाहकारी सेवाओं का विस्तार – निगम ने एक वित्तीय सेवा ग्रुप की स्थापना की है जिसके द्वारा यह निगम ढांचे का पुननिर्माण तथा निजी क्षेत्र निर्माण में सलाह देने का कार्य करता है।