(1) निपुणता अंकेक्षण (Efficiency of Cost Audit):
निपुणता अंकेक्षण कार्य निष्पादन की ऐसी जाँच है जो यह विश्वास दिलाये कि संस्था के साधनों को अधिकतम लाभप्रद स्त्रोतों में लगाया गया है। इसे लाभदायकता अंकेक्षण कह सकते है। निपुणता अंकेक्षण में अंकेक्षक को यह जाँच करनी होती है किः
- (a) पूँजी या अन्य क्षेत्र में लगाए धन के प्रत्येक रूपये से अनुकूलतम आय प्राप्त हो रही हैं, तथा
- (b) कम्पनी के विभिन्न विनियोगों में पूँजी का इस प्रकार विनियोजन किया है कि सर्वोत्तम लाभ प्राप्त हो सके।
निपुणता अंकेक्षण में जाँच कार्य पूँजी के विनियोजन के स्तर पर किया जाता है। इसमें विनियोगों का विश्लेषण किया जाता है तथा पूँजी पर प्रत्याय की गणना की जाती है। इसमे वापिसी भुगतान अवधि (Pay-back period) भी देखी जाती है। लागत अंकेक्षण का यह रूप प्रशासन की कार्यकुशलता का मापक है। भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति में उत्पादकता एवं पूँजी की प्रत्येक इकाई से होने वाली आय अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होती है तथा लागत अंकेक्षण का यह रूप इस सन्दर्भ में अत्यन्त प्रभावशाली भूमिका निभा सकता है।
(2) औचित्य अंकेक्षण (Propriety of Audit):
औचित्य अंकेक्षण को कोहलर ने इस प्रकार परिभाषित किया है, ‘औचित्य वह तथ्य है जो सार्वजनिक हित, सर्वमान्य तौर तरीकों तथा मानदण्डों के परीक्षणों पर खरा उतरे तथा जिसे विशेष तौर से सरकारी नियमों की अनिवार्यताओं, पेशेवर निष्पादन तथा पेशे के मानक सिद्धान्तों पर लागू किया जा सके।” औचित्य अंकेक्षण कम्पनी के प्रबन्धकों की योजनाओं तथा क्रियाओं की ऐसी जाँच है जो संस्था के वित्त एवं व्ययों को प्रभावित करते हैं। इसके अन्तर्गत लागत अंकेक्षक को निम्नांलेखित जाँच करना होती है:
- (a) धन को इस प्रकार विनियोजित किया गया है अथवा नहीं कि उससे अनुकूलतम परिणाम प्राप्त हो सकें।
- (b) खर्चों को इस प्रकार नियोजित किया गया है कि सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त हुए हैं अथवा नहीं।
- (c) खर्चों से सर्वोत्तम लाभ प्राप्त हो रहा है अथवा वैकल्पिक योजना से इनमें वृद्धि की जा सकती है।
लागत अंकेक्षक की भूमिका अंशधारियों के लिए सर्वाधिक उपयोगी होती है। लागत अंकेक्षक की रिपोर्ट संचालक मण्डल के लिए अत्यन्त महत्व रखती है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय हित के दृष्टिकोण से लागत अंकेक्षण की रिपोर्ट बहुत महत्व की होती है।
औचित्य अंकेक्षण में लेनदेनों अथवा निष्कर्षों पर ध्यान देने के साथ-साथ वित्तीय सुदृढ़ता, सार्वजनिक हित तथा अपव्ययों आदि बिन्दुओं को प्राथमिकता दी जाती है। इस प्रकार यह संगठन की वित्तीय तथा लाभ-हानि की स्थिति पर प्रभाव डालने वाले प्रशासनिक क्रियाओं तथा निर्णयों से सम्बन्धित है।