राष्ट्रीयकृत बैंकों का नियमन बैंकिंग कम्पनी (उपक्रमों की अवाप्ति व हस्तांतरण) अधिनियम 1970 [The Banking Companies (Acquisition and transfer of undertaking) Act, 1970] द्वारा होता है। इस अधिनियम की धारा 10 (1) के अनुसार अंकेक्षण के सम्बन्ध में निम्न प्रावधान है –
- अंकेक्षक की नियुक्ति हेतु बैंक को रिजर्व बैंक की पूर्व अनुमति लेनी होगी।
- बैंक के अंकेक्षक में वे सभी योग्यताएँ होनी चाहिए जो कम्पनी अधिनियम की धारा 226 में वर्णित है।
- अंकेक्षण का पारिश्रमिक रिजर्व बैंक द्वारा केन्द्रीय सरकार की सलाह से किया जायेगा।
- अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट केन्द्रीय सरकार को प्रस्तुत करेगा और उसकी एक-एक प्रति सम्बन्धित बैंक तथा रिजर्व बैंक को प्रस्तुत करेगा।
- धारा 10 (3) के अनुसार –
- बैंक की पुस्तकों, लेखो तथा अन्य प्रपत्रों तक अंकेक्षक की पहुंच होगी, अर्थात अंकेक्षक अपने कार्य हेतु किसी भी पुस्तक, प्रपत्र आदि की कार्य समय में मॉग कर सकता है।
- वह अपने कार्य में सहायता के लिए बैंक के खर्चे पर लेखापाल की नियुक्ति कर सकता है।
- बैंक के कस्टोडियन, अधिकारी तथा कर्मचारी की जाँच कार्य के दौरान आवश्यकता पड़ने पर जाँच कर सकता है।
- राष्ट्रीयकृत बैंक के अंकेक्षण द्वारा अपनी अमर्यादित रिपोर्ट में निम्नलिखित का उल्लेख किया जायेगा –
- उसकी राय में चिट्ठा सभी आवश्यक मर्दा को सम्मिलित करते हुए उचित तरीके से बनाया गया है एवं उस दिन व्यापार की सही व उचित (True & Fair) तस्वीर प्रस्तुत करता है।
- उसके द्वारा मांगी गयी सभी सूचनाएँ व स्पष्टीकरण उसे प्राप्त हो गये है एवं वे संतोषप्रद है।
- बैंक द्वारा किये गये वे व्यवहार जो उसकी जानकारी में आये है, बैंक के अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं एवं बैंक ने लेखा पुस्तकों को उसी प्रकार रखा है जैसा विधान के अनुसार आवश्यक है।
- बैंक द्वारा शाखाओं व कार्यालय से प्राप्त विवरण (Returns) अंकेक्षण कार्य के लिए पर्याप्त एवं उपयुक्त है।
- लाभ-हानि खाता, जिस अवधि के लिए बनाया गया है, उस अवधि के लिए लाभअथवा हानि का सही शेष प्रकट करता है।
- अन्य कोई तथ्य जो वह केन्द्रीय सरकार की जानकारी में लाना चाहता है।
- उक्त अंकेक्षण रिपोर्ट को केन्द्रीय सरकार संसद के प्रत्येक सदन में कम से कम 30 दिन के लिए रखेगी।