मुद्राकोष की सफलताएँ : मुद्राकोष ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस योजना के तहत लाखों सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को ऋण प्रदान किया गया, जिससे स्वरोजगार और उद्यमिता को बढ़ावा मिला। बिना जमानत के ऋण उपलब्ध कराकर इसने व्यवसाय शुरू करने और विस्तार करने में सहूलियत दी। विशेष रूप से महिलाओं, युवाओं और ग्रामीण उद्यमियों को इससे बड़ी सहायता मिली। मुद्रा ऋण के तीन स्तर — शिशु, किशोर और तरुण — विभिन्न विकास चरणों के अनुसार बनाए गए हैं। यह योजना आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और रोजगार सृजन में सहायक सिद्ध हुई है।
अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग के क्षेत्र में कोष की निम्न सफलताएँ रही हैं –
- मुद्राकोष को प्रतिस्पर्द्धात्मक अवमूल्यनों पर रोक लगाने में सफलता मिली है जिससे सदस्य देशों में प्रतिशोधात्मक क्रियाएँ अपनाने के स्थान पर सहयोग की भावना बढ़ी है,
- मुद्राकोष की स्थापना के बाद विनिमय दरों में होने वाले उच्चावचन कम हुए हैं।
- मुद्राकोष ने संकटकाल में राष्ट्रों को विनिमय नियन्त्रण की अनुमति देकर उन्हें असन्तुलन के संकट का सामना करने का अवसर दिया है. इस आशा के साथ कि सन्तुलन स्थापित होते ही वे विनिमय नियन्त्रण को हटा लेंगे ।
- मुद्राकोष की स्थापना से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विस्तार हुआ है।
- मुद्राकोष द्वारा बहुमुखी भुगतान की व्यवस्था की गयी है जिससे देशी व्यापार तथा विनियोजन के लिए पूंजी के व्यापार को अत्यधिक प्रोत्साहन मिला है।
- कोष ने सदस्य राष्ट्रों के भुगतान शेष के अस्थायी एवं चक्राकार असन्तुलनों को सुधारने में पर्याप्त आर्थिक सहायता दी है।
- अन्तर्राष्ट्रीय तरलता की समस्या के समाधान के लिए कोष ने 1971 से विशेष आहरण अधिकार योजना आरम्भ की है।
- कोष द्वारा सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण दिया जाता है और वह अनेक मौद्रिक विषयों पर उचित परामर्श देता है।
मुद्राकोष के पुर्नगठन पर विचार
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के 50 वर्ष पूर्ण होने पर स्पेन (मेड्रिड) में 1994 में “ब्रेटनबुडस के 50 वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक का भविष्य” विषय पर दो दिवसीय सम्मेलन में विचार किया गया कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का पुर्नगठन किया जाना चाहिए । तत्कालीन वित्त मंत्री एवं वर्तमान प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह पर विश्व की बदलती हुई आर्थिक स्थिति के सन्दर्भ में मुद्रा कोष की भूमिका का निर्धारित करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया है।
भारत अब के IMF वित्त पोषक राष्ट्रों में शामिल
भारत, जो अभी तक अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से समय समय पर अपनी आवश्यकतानुसार ऋण लेता रहा है, अब इसके वित्त पोषक राष्ट्रों में शामिल हो गया है दूसरे शब्दों में, अब भारत इस बहुपक्षीय संस्था को ऋण उपलब्ध कराने लगा है, मई व जून 2003 में दो अलग अलग किश्तों में कुल मिलाकर 205 मिलियन SDR (291.7 मिलियन डॉलर) की राशि भारत ने मुद्रा कोष को फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन प्लान (FTP) के तहत उपलब्ध कराई थी ।
इस सम्बंध में रिजर्व बैंक द्वारा 28 जून 2003 को जारी एक विज्ञप्ति में बताया गया था कि सितम्बर नवम्बर 2002 की तिमाही से भारत को कोष के फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन प्लान (FTP) की सदस्यता हेतु चुन लिया गया था FTP में योगदान के लिए ऐसे राष्ट्रों को चुना जाता है जिनकी स्वयं की भुगतान संतुलन की स्थिति सुदृढ़ हो तथा जिनके पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा कोष उपलब्ध हों, ऐसे राष्ट्रों से FTP में वित्तिय योगदान की अपेक्षा की जाति है ताकि दुर्बल भुगतान संतुलन वाले राष्ट्रों को वित्तिय सहायता उपलब्ध कराई जा सके। रिजर्व बैंक की विज्ञप्ति में कहा गया है कि मुद्रा कोष के फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन प्लान के लिए भारत का चयन पहली बार ही किया गया है तथा यह अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए देश के मजबूत वैदेशिक क्षेत्र (External Sector) का संकेत है।
रिर्जब बैंक के अनुसार मुद्रा कोष के फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन प्लान के लिए 5 मिलियन एसडीआर (6.96 मिलियन डॉलर) की पहली किश्त भारत ने 7 मई 2003 को अदा की थी, जबकि 200 मिलियन एसडीआर (284.21 मिलियन डॉलर) की दूसरी किश्त 17 जून 2003 को अदा की गई इन अदायगियों के लिए इन तिथियों में इतनी ही विदेशी मुद्रा (क्रमश: 696 मिलियन डॉलर व 28421 मिलियन डॉलर) रिजर्व बैंक के आरक्षित कोष से सरकार ने खरीदी थी।