अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के प्रबन्धकीय स्वरूप व संगठन को निम्न भागों में विभक्त किया जा सकता है:
- गवर्नर मण्डल गवर्नर मण्डल मुद्राकोष के अन्तर्गत निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है जिसके अन्तर्गत प्रत्येक राष्ट्र का एक गर्वनर और एक वैकल्पिक गर्वनर नियुक्त किया जाता है। मण्डल की वर्ष में एक बार सभा बुलानी आवश्यक होती है जिसमें सभी निर्णय बहुमत के आधार पर लिये जाते हैं।
- कार्यकारी संचालक मण्डल कार्यकारी संचालक मण्डल कोष की सामान्य क्रियाओं के लिए उत्तरदायी होते हैं । मुद्राकोष में कम से कम 12 संचालक होने आवश्यक है । पांच संचालक उन पांच राष्ट्रों द्वारा नियुक्त किये जाते हैं जिनका मुद्राकोष में सर्वाधिक अभ्यंश हैं । अन्य संचालकों का चुनाव किया जाता है। कार्यकारी संचालक एक प्रबन्धकीय संचालक का चुनाव करते हैं। जो कि कार्यकारी संचालकों का चेयरमैन होता है।
- प्रबन्ध संचालक मुद्राकोष का दैनिक कार्य संचालन करने के लिए एक प्रबन्ध संचालक नियुक्ति किया जाता है। प्रबन्ध संचालक की नियुक्ति प्रबन्धक मण्डल के द्वारा होती है । एक, सहायक प्रबन्ध संचालक की भी नियुक्ति की जाती है। प्रबंध संचालक, प्रबंधक मण्डल की सभाओं की अध्यक्षता करता है।
- मताधिकार – मुद्राकोष के अधिकतर सामान्य निर्णय बहुमत के आधार पर होते हैं। बहुमत सदस्य संख्या द्वारा न होकर कुल मताधिकार द्वारा होता है। प्रत्येक सदस्य को 250+1 मत प्रति लाख एस. डी. आर. (अभ्यंश) का मताधिकार होता है।
- कार्यालय कोष का केन्द्रीय कार्यालय ‘वाशिंगटन में यानी सबसे अधिक ‘कोटे वाले देश अमेरिका’ में है। सदस्य देशों से प्राप्त कोटे का स्वर्ण भाग इसी कार्यालय में जमा है। अन्य सदस्य देशों में कोष की शाखायें अथवा एजेन्सी कार्यालय हैं।
मुद्राकोष के आर्थिक साधन
अभ्यंश – अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के आर्थिक साधनों में सबसे महत्वपूर्ण सदस्य देशों के लिए निर्धारित अभ्यंश है। जब कोई देश मुद्राकोष का सदस्य बनता है तो उसका अभ्यंश निर्धारित कर दिया जाता है। ये अभ्यंश सदस्य देश की राष्ट्रीय आय, मुद्रारक्षित निधि, व्यापार शेष तथा अन्य आर्थिक निर्देशकों के आधार पर तय किये जाते हैं। यदि कोई देश अपने अभ्यंश में परिवर्तन करना चाहे तो मुद्राकोष उस पर विचार कर सकता है, परन्तु जब तक कुल मत शक्ति 80 प्रतिशत पक्ष में न हो, अभ्यंश में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। किसी भी देश की अभ्यंश राशि उसकी सहमति के बिना बदलने की व्यवस्था नहीं है। प्रारम्भ में मुद्राकोष के साधन 1000 करोड़ डालर निश्चित किये गये थे, परन्तु उस समय रूस ने सदस्यता स्वीकार नहीं की, इससे कोष की आरम्भ में कुल पूंजी 880 करोड़ डालर ही रह गई। प्रारम्भ में यह व्यवस्था की गई कि प्रत्येक देश अपने अभ्यंश का कम से कम 25 प्रतिशत अथवा अपने देश की कुल स्वर्ण एवं डालर निधि दोनों का 10 प्रतिशत (दोनों में से जो कम हो) स्वर्ण में देगा, किन्तु 1976 से मुद्राकोष में स्वर्ण जमा कराने की व्यवस्था समाप्त कर दी गई और यह प्रावधान रखा गया कि सदस्य देश अपने अभ्यंश का 75 प्रतिशत भाग अपनी मुद्रा में तथा शेष 25 प्रतिशत किसी भी कोष मुद्रा में जमा करवा सकता है।
जब भी कोष सदस्य देश के करेंसी मूल्य का पुनर्निर्धारण करता है तो भुगतान किए जाने या भुगतान प्राप्त किए जाने का लेखा तैयार किया जाता है। अप्रैल, 1992 को कोष की प्राप्त राशि 11.01 मिलियन SDR तथा भुगतान योग्य राशि 494.5 मिलियन SDR थी। वर्तमान में कोष की राशि 212.02 बिलियन SDR हो गई है।
कोष की मुद्रा
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की स्थापना के समय उसके हिसाब की मुद्रा अमरीकन डालर निश्चित की गई। डालर की एक इकाई का मूल्य 0.888671 ग्राम स्वर्ण के बराबर था। मार्च, 1972 से कोष की मुद्रा एस. डी. आर. के रूप में निश्चित की गई है। जनवरी, 1981 से एस. डी. आर. का मूल्य 5 मुख्य मुद्राओं के आधार पर निश्चित किया गया। 1 जनवरी, 1991 को एस. डी. आर. का मूल्य निम्न मुद्राओं का योग है यू एस. डालर (40:), ड्यूश मार्क (21:), जापानी येन (17:), फ्रेंच फ्रैंक (11:) और पॉड स्टर्लिग (11:), 1992 में एस. डी. आर. व अमरीकन डालर का अनुपात 1. एस. डी. आर. द 140 डालर था। 12वीं सामान्य अभ्यंश समिति के निर्धारण के पश्चात् 4158.2 मिलियन एस. डी. आर की अभ्यंश राशि के साथ भारत 13 वें स्थान पर है। सर्वाधिक अभ्यंश राशि वाले देश
- अमेरिका
- जापान
- जर्मनी
- फ्रांस
- यूनाइटेड किंगडम
- इटली
- सऊदी अरब
- कनाडा
- रशिया
- नीदरलैंड
- चीन
- बेल्जियम
- भारत