भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में बहुराष्ट्रीय निगमों एवं निजी पूँजी निवेशों की देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जहाँ एक ओर देश के प्राकृतिक साधनों के विदोहन का मार्ग प्रशस्त हुआ है वहाँ दूसरी ओर देश के औद्योगिकरण, विपणन, उन्नत प्रौद्योगिकी एवं उत्पादन तकनीक के साथ-साथ अनुसन्धान कार्यों को बढ़ावा मिला है। \
भारत में विदेशी पूँजी निवेशों में वृद्धि हुई है तथा रोजगार बढ़ा है। प्रबन्धकीय क्षमताओं में वृद्धि हुई है। यह निम्न तथ्यों से उजागर होता है-
- बहुराष्ट्रीय निगमों तथा निजी क्षेत्र के कारण भारत में विदेशी पूँजी निवेशों में निरन्तर वृद्धि हुई है। जहाँ 1973-74 में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की परिसम्पत्तियाँ 3155 करोड़ रुपये थी वह बढ़कर 1985 में 6355 करोड़ रूपये तक पहुँच गई। अनिवासी भारतीयों के निवेश भी 1960 के 100 करोड़ रुपये से बढ़कर 1986-87 में 500 करोड़ रुपये तक पहुंच गये । भारत सरकार की आर्थिक उदारीकरण की नीति से विदेशी पूँजी निवेशों को प्रोत्साहन मिला जिससे 1991 से 2001 के ग्यारह वर्षों में लगभग 2,70,064 करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment) के प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह लगभग 1,05,413 करोड़ रुपये था। जिसमें भी लगभग 9116 करोड़ रुपये (22) अरब डालर से अधिक) अकेले 1998 के दौरान हुआ ।
- बहु राष्ट्रीय निगमों ने भारत के लिए तकनीकी जान एवं प्रशिक्षण के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। परिणामस्वरूप पैट्रोलियम, रसायन, औषधि, इन्जीनियरिंग एवं इलेक्ट्रोनिक उद्योगों में उच्च तकनीक प्राप्त हुई है। इसी प्रकार उनमें कार्य करने वाले भारतीय कर्मचारियों एवं अधिकारियों को भी उनके संचालन एवं प्रबन्ध का प्रशिक्षण स्वतः प्राप्त हो जाता है।
- भारत के स्थानीय उद्योगपतियों में जोखिम उठाने का साहस बहुत कम होने के कारण वे जोखिम पूर्ण उद्योगों को स्थापित नहीं कर पाते हैं। ऐसी दशा में बहुराष्ट्रीय निगम नये उद्योगों की स्थापना में जोखिम उठाने की महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। उदाहरण के तौर पर भारत में उर्जा, सड़क निर्माण, सौर उर्जा का विकास तथा टेलीकम्यूनिकेशन आदि में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों आगे आ रही हैं।
- जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान हैं। यहाँ श्रम की पूर्ति पर्याप्त है लेकिन कुशल श्रमिकों की अपेक्षा अकुशल श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक है। देश में बेरोजगारी की समस्या हैं। ऐसी स्थिति में यदि बहुराष्ट्रीय निगम भारत के सस्ते श्रम का उपयोग करते हैं तो इसके दो लाभ होंगे-
- श्रमिकों की आय में वृद्धि होगी एवं
- रोजगार के अवसर बढ़ जायेंगे । उपर्युक्तलाभ श्रम-प्रधान तकनीक अपनाने पर ही प्राप्त होंगे। यही नहीं, बहुराष्ट्रीय निगमों के यहाँ उच्च स्तर की प्रशिक्षण व्यवस्था होने के परिणामस्वरूप भी रोजगार एवं आय में वृद्धि होती है।
- भारत के औद्योगिक विकास में निजी क्षेत्र एवं बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका सराहनीय रही है। फलस्वरूप प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी सुविधाओं की प्राप्ति हुई है। बड़ी मात्रा में निवेश हुए हैं और जोखिम उठाने की क्षमता भी बढ़ी है।
- भारत में प्राकृतिक साधनों की प्रचुरता तो है किन्तु प्रौद्योगिकी साहस, पूँजीगत सामान एवं प्रशिक्षित श्रम शक्ति का अभाव होने के कारण उनका विदोहन नहीं हो पाता है। ऐसी दशा में बहुराष्ट्रीय निगम कम्पनियाँ अपना योगदान देकर उनके विदोहन को सम्भव बनाती हैं। जैसे: भारत में खनिज तेल की खोज एवं उसके विदोहन में बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
- विपणन क्रियाओं में मुख्यत. बाजार शोध, विज्ञापन, भण्डार एवं गोदाम, विपणन सूचनाओं का प्रचार, परिवहन, वस्तुओं को उपभोक्ताओं तक पहुँचाना और पैकिंग डिजाईन बनाना आदि को सम्मिलित किया जाता है। ये सभी कार्य बहुराष्ट्रीय निगम विकासशील राष्ट्रों के संस्थानों की अपेक्षा अधिक कुशलतापूर्वक सम्पन्न करते हैं, जैसे: ग्लेक्सो, स्मिथक्लाइन की दवाइयों, कोलगेट, पामोलिग्र पेप्सी, कोकाकोला, प्रोक्टर एण्ड गेम्बल और हिन्दुस्तान लीवर आदि । अतः विकासशील राष्ट्र विपणन कुशलता का लाभ उठाते हैं।
- विकासशील राष्ट्रों में पूँजी का अभाव होने के कारण तकनीकी जान का पर्याप्त विकास नहीं हो पाता है। इस समस्या का समाधान बहुराष्ट्रीय निगमों के माध्यम से किया जा सकता है। ये निगम तकनीकी व्यय का एक बड़ा हिस्सा अपने देश के बाहर भी व्यय करते हैं। अतः विकासशील राष्ट्र बहुराष्ट्रीय निगमों को आमन्त्रित करके देश में शोध एवं विकास द्वारा तकनीकी विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
- बहुराष्ट्रीय निगमों में उच्च प्रबन्ध कुशलता विद्यमान होती है। ऐसा होने पर ही अन्य निगमों से प्रतिस्पर्द्धा की जा सकती है और अच्छा लाभ कमाना सम्भव होता है इस प्रकार इन कुशलताओं का लाभ भारत के उद्योगों को भी मिला है। परिणामस्वरूप भारतीय प्रतिस्पर्दा कम्पनियों ने अपनी प्रबन्ध कुशलता तथा प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को बढ़ाया है।
- बहुराष्ट्रीय निगम अपने निर्मित माल को दूसरे देशों में अपने संगठनात्मक ढाँचे के माध्यम से बेचने में सक्षम होते हैं। इन निगमों के पास पर्याप्त साधन होते हैं और तकनीकी दृष्टि से विक्रय कला में प्रवीण भी होते है। इस कारण वे कुशलतापूर्वक अपने उत्पाद को दूसरे देशों में विक्रय करने में सफल हो जाते हैं। \
परिणामस्वरूप इन निर्यातों से विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है