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Home»Business»बहु राष्ट्रीय निगमों के दोष
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बहु राष्ट्रीय निगमों के दोष

adminBy adminJune 27, 2025No Comments4 Mins Read
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बहु राष्ट्रीय निगमों के दोष
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बहुराष्ट्रीय निगम को अल्प विकसित देशों में उनके ईर्ष्यालु व्यवहार, जो कि उनकी कार्य प्रणाली में बताया गया है, के कारण शोषण का एजेन्ट माना जाता है। इनके प्रमुख दोष निम्नलिखित है :-

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  1. अमेरिका आधारित अल्प विकसित बहुराष्ट्रीय निगम अल्प विकसित देशों में शत-प्रतिशत स्वामित्व पर बल देते हैं तथा वे सिंगापुर, मैक्सिको, हांगकांग, ब्राजील तथा ताईवान में सफल भी हो चुके हैं। इन देर्शा की नीची कराधान दरों से वे अमेरिका को अधिक लाभों के द्वारा स्वार्थ सिद्ध करा रहे हैं।
  2. भारत जैसे देशों में जहां 1960 तक बहु राष्ट्रीय निगम को एक संयुक्त उ‌द्यमों के रुप में कार्य करने दिया गया, जिसमें 25 से 40 प्रतिशत तक की हिस्सेदारी थी, उन्होंने अनेक विशेष सुविधाएँ प्राप्त की जिनमें उनको कई गुना लाभ मिले। इस प्रकार की छूटे या विशेष सुविधाएं लाभांश स्थापना शुल्क का भुगतान, पेटेंट के प्रयोग के लिए रीयल्टी, जान शुल्क का भुगतान, उन आयातित साधनी जिनकी कीमत प्रतियोगी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में 30 से 40 प्रतिशत अधिक है तथा कर छूट के रूप में प्राथमिकता सैक्टर उद्‌योगों की अनेक वर्ष तक दी जाती रही, शामिल है।
  3. इसके अतिरिक्त, जो स्टाफ बहुराष्ट्रीय निगम में नियुक्त किया गया उसे बहुत उच्च वेतन दिया जाता है। उनके कुछ उस राज्य में नियुक्त उच्चतम अधिकारियों का उस राज्य में नियुक्त उच्च वेतनभोगी अधिशासी अध्यक्ष को दिए जाने वाले वेतन से भी कहीं अधिक वेतन मिलता है। यही नहीं बहुराष्ट्रीय निगम स्थानीय नियुक्त श्रमिक को दुगुना या तिगुना अधिक वेतन देते हैं जो कि उन्हें स्थानीय फर्मों से प्राप्त होता है। इससे केवल सामाजिक असमानता ही नहीं बढ़ती अपितु देशी उ‌द्योग में कार्यरत श्रमिकों में असन्तोष तथा असुविधा भी पैदा होती है।
  4. बहुराष्ट्रीय निगम अल्प-विकसित देशों में आयातों की अधिक कीमत करके तथा निर्यातों की नीची कीमत करके सबसे पहले स्थानीय बचतों को समाप्त करते हैं। यदि स्थानीय उ‌द्योगों में भारी प्रतियोगिता होती है, तो बहुराष्ट्रीय निगम अपनी वस्तुओं की कम कीमत लेकर उनको हटा देते हैं। परिणामस्वरूप, स्थानीय फर्मे व्यापार में से हटा दी जाती है, किन्तु बहुत कम स्थानीय फर्म इस प्रकार की होती हैं जो होड़ कर सके क्योंकि बहुराष्ट्रीय निगम उनके सभी हिस्से खरीद लेते हैं या उनको नियन्त्रित करने के लिए मिला लेते हैं।
  5. बहुराष्ट्रीय निगम अल्प विकसित देशों को ‌द्वितीय श्रेणी तथा अधिक कीमती तकनीक स्थानान्तरित करते है प्रायः वे इस प्रकार के देशों को तकनीक स्थानान्तरण को कम करने का निम्नलिखित प्रयास करते हैं.
    • मुख्यालयों पर स्थिर पैतृक कम्पनियों में शोध एवं विकास को ले जाना,
    • शोध एवं विकास मदों के लिए स्थानीय सेवावर्ग के प्रशिक्षण के प्रति उपेक्षा बरतना,
    • अपने आप ही तकनीक को करीब से रोके रखना। इसके अतिरिक्त, वह तकनीक जिसे बहुराष्ट्रीय निगम अल्प विकसित देशों को स्थानान्तरित करते हैं वहाँ पूंजी गहन आवश्यक है तथा उनकी पूंजी दुर्लभ तथा श्रम-अतिरेक अर्थव्यवस्थाओं के लिए उपयुक्त नहीं हैं। \
  6. बहुराष्ट्रीय निगम उन अल्पविकसित देशों के बड़े शहरों तथा नगरों में अपने प्लान्ट को विकसित करते हैं जहां ऊपरी सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध हैं। इस प्रकार वे इन देर्शा में क्षेत्रीय असमानताओं और ‌वैषभाव को बढ़ावा देते हैं।
  7. इसके अतिरिक्त, बहुराष्ट्रीय निगम द्वारा किए गए प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष निवेश का दीर्घकालीन प्रभाव प्रायः भुगतान शेष पर ऋणात्मक पड़ता है, क्योंकि वे रॉयल्टियों, लाम, ब्याज, लाभांश, पूंजी आदि के रूप में विशाल राशियां अपने देश में पुनः भेज देते है।
  8. बहुराष्ट्रीय निगम विधायकों को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करके या घूस देकर अल्पविकसित देशों के अहित में उनकी आन्तरिक राजनीति में हस्तक्षेप करते हैं। वे अपनी कम्पनियों के उच्च पदों पर समाज के विशेषाधिकार वर्ग को स्थान देते हैं,

बहु राष्ट्रीय निगमों के दोष :

विशेषकर स्थानीय राजनीतिज्ञों के मित्री तथा सम्बन्धियी को शासकवर्ग को तथा आर्थिक एकाधिकार वाले तत्वों को। वे अल्पविकसित होगे में घरेलू राजकोषीय एवं मौद्रिक नीतियों को भी विध्वंस करते हैं।

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