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Home»Banking»निगम की आलोचनाएँ
Banking

निगम की आलोचनाएँ

adminBy adminJuly 2, 2025No Comments6 Mins Read
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निगम की आलोचनाएँ
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निगम के कार्यों की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की गयी है –

  1. निगम के वित्तीय साधन सीमित हैं, जिसके कारण वह अल्पविकसित देशों की ऋण सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ है।
  2. निगम द्वारा प्रदत्त ऋण पर कोई निश्चित ब्याज नहीं दिया जाता अपितु ब्याज की दर व्यवसाय की जोखिम पर निर्भर करती है, अतः जोखिम वाले व्यवसाय के लिए ब्याज की दर बहुत अधिक होती है।
  3. निगम के विधान में निजी उ‌द्योगपतियो को ऋण देने सम्बन्धी नियम कठोर हैं जिससे सामान्य उ‌द्योगपति इसका लाभ नहीं उठा पाता ।
  4. निगम द्वारा ऋण स्वीकृत करते समय भेदभाव किया जाता है। उदाहरण के लिए, निगम ने अपने विनियोजन का 30 प्रतिशत भाग लैटिन अमेरिका जैसे देशों में लगा रखा है, जबकि अफ्रीकी देशों का प्रतिशत केवल 10 है । उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद निगम ने विकासशील देशों में निजी साख सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इराकी मुख्य सफलता ऋण सहायता न होकर इस बात में निहित है कि इसने विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर पूंजी प्रवाह को प्रोत्साहित किया है। निगम के भूतपूर्व अध्यक्ष के शब्दों में, “यदि अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम का विचार कभी अच्छा था तो वह आज और भी अधिक अच्छा है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ – यह विश्व बैंक की पूरक संस्था है। विश्व बैंक द्वारा अल्पविकसित देशों को विकास हेतु दी गई ऋण सुविधाओं से कालान्तर में यह अनुभव किया गया है कि उसके द्वारा ऋण प्रदान करते समय लगाई जाने वाली शर्ते अत्यन्त कठोर होती है जिससे अल्पविकसित देश विश्व बैंक से ऋण लेने में हतोत्साहित होते है। अतः अल्पविकसित देशों को आसान शर्तों पर ऋण देने के लिए 26 सितम्बर 1960 को अन्तर्राष्ट्रीय विकास बैंक की स्थापना की गई ।
  • संघ के उद्देश्य – इसका मुख्य उद्देश्य अविकसित सदस्य देशों के आर्थिक विकास के लिए सुलभ ऋण देना है। सुलभ ऋण की तीन मुख्य विशेषताएं हैं –
    • सस्ती ब्याज दर – इन ऋणों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ऋण बहुत कम ब्याज पर दिये जाते है। बहुधा प्रतिशत संचालन शुल्क लेकर ऋण दिये जाते हैं।
    • लम्बी अवधि – विश्व की कोई वित्तीय संस्था इतनी लम्बी अवधि के लिए ऋण नहीं देती जितनी अवधि के लिए यह संघ देता है। अधिकांश ऋण 50 वर्ष की अवधि के लिए दिये जाते है। संघ ने गत वर्षों में ऐसे भी ऋण दिये हैं जो 75 वर्ष की अवधि के लिए हैं।
    • ऋण भुगतान – ऋण भुगतान सरल किश्तों में चुकता करने की की गयी है। प्रथम दस वर्ष कोई किश्त नहीं मांगी जाती है। दस वर्ष तक ऋण का प्रयोग योजना विशेष को लाभकारी बनाया जा सकता है और उसी की आय से ग्यारहवें वर्ष से ऋण की किर्ता का भुगतान प्रारम्भ किया जा सकता है।
  • विकासशील देशों के जीवन स्तर में वृद्धि संघ सदस्य देशों के आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है।
    • सदस्यता – विश्व बैंक का कोई भी सदस्य अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ का सदस्य हो सकता है। सुलभ ऋणों के आकर्षण से वे सभी देश जो बैंक के सदस्य होते हैं, इस संघ के भी सदस्य हो जाते हैं। 1978 में संघ के सदस्यों की संख्या 120 थी जो 1989 में 137 हो गई तथा मार्च 2005 इसके सदस्यों की संख्या 159 हो गई ।
    • संघ की पूंजी – संघ की प्रारम्मिक पूंजी एक अरब डालर निश्चित की गई थी जो प्रारम्मिक 68 सदस्यों में बंटी । विकसित देशों को उनके पूँजी अंशों का शत-प्रतिशत भाग स्वर्ण या परिवर्तनशील मुद्रा में संघ को अदा करना पड़ता है जबकि विकासशील देशों को उनके पूंजी अंशों का 10 प्रतिशत स्वर्ण या परिवर्तनशील मुद्रा में चुकाना होता है। उनको अपने पूंजी अंशों का शेष 90 प्रतिशत भाग अपने देश की। मुद्रा में ही 5 किश्तों में चुकाना होता है ।
    • संघ का संगठन – अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ विश्व बैंक की सहयोगी संस्था है और उसका प्रबन्ध तथा प्रशासन विश्व बैंक ही करता है। विश्व बैंक का गवर्नर मण्डल कार्यकारी निदेशक मडल तथा अन्य आधिकारी ही विकास संघ की व्यवस्था करने के लिए उत्तरदायी हैं। विकास संघ के समझौता पत्र में यह व्यवस्था है कि भविष्य में यदि आवश्यकता हो तो इस संस्था के लिए अलग कर्मचारी नियुक्त किये जा सकते हैं। विकास संघ में प्रत्येक सदस्य देश को 500+ प्रति पांच हजार डालर एक मत देने काअधिकार है।
    • संघ के कार्य-
      • ऋण प्रदान करना – अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ ऐसे सदस्य राष्ट्रों को ऋण सहायता देता हैजो अविकसित तथा अर्द्धविकसित है। साधारणतया ऋण ऐसे ही कार्यों के लिए दिये जाते हैं जो उस क्षेत्र के विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है। ऋण देने से पूर्व विश्व बैंक की तरह विकास संघ भी एक विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति करता है जो परियोजना की विस्तृत जांच कर अपनी रिपोर्ट देती है। इस रिपोर्ट के आधार पर ही संघ ऋण के सम्बन्ध में निर्णय करता है। विकास संघ नो विश्व बैंक की रह ऐसे कार्यों के लिए ऋण नहीं देता जिनके लिए पूंजी अन्य साधनों से प्राप्त हो सकती है। ऋण देने के बाद विकास संप योजना की प्रगति की देखरेख रखता है।
      • तकनीकी सहायता प्रदान करना – विकास संघ ऋणी सदस्य राष्ट्रों को आवश्यकता पड़ने परतकनीकी तथा अन्य प्रकार की सहायता भी देता है। वह किसी भी देश के राजनीतिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। ऋण अवधि, ब्याज दर तथा भुगतान विधि के सम्बन्ध में विकास संघ अति उदार तथा, लोचदार नीति अपनाता है जिससे ऋणी देश को किसी प्रकार की असुविधा न हो ।
      • सामाजिक कार्यों की प्रगति – 1962 से संघ ने अपने “सामाजिक पूंजी’ के उद्देश्य सेशैक्षणिक उद्देश्यों में विनियोग करने पर काफी जोर दिया है। 30 जून, 1989 तक 52700 डालर के ऋण स्वीकृत किए। इसमें से 1989 के ऋणों में कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए सर्वाधिक ऋण 36 प्रतिशत एवं परिवहन तथा शक्ति के लिए भी 36 प्रतिशत ऋण दिए गए।
      • पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए भी संघ ऋण प्रदान करता है। विकास संघ की आलोचनाएं विकास संघ की आलोचनाएं निम्न आधार पर की जाती है –
        • सीमित साधन – विकासोन्मुखी राष्ट्रों की सामाजिक ऋर्णा की आवश्यकताओं को देखते हुए विकास संघ के साधन सीमित है। जिसके फलस्वरूप विकास संघ सीमित सहायता ही उपलब्ध करवा पाया है।
        • मुद्रा स्फीति का भय – उदार ऋर्णो के प्राप्त होने से ऋणी देश स्फीति के जाल में फंस जाते हैं जो उनकी आर्थिक स्थिरता को और नष्ट कर देते है।
        • समन्वय कठिन – विकास संघ विश्व बैंक की पूरक संस्था के रूप में कार्य करता है। एक तरफ बैंक ऋण देने में सतर्कता दिखाता है जबकि विकास संघ ऋण स्वीकृत करने में बड़ा उदार है। इस उदारता के कारण अल्पविकसित राष्ट्र विकास संघ की ओर आकर्षित होते हैं जिससे कि विश्व बैंक तथा विकास संघ की ऋण नीतियों में समन्वय स्थापित नहीं हो पाता है।
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