क्रियात्मक संगठन के लाभ और दोष :–

क्रियात्मक संगठन:- जब उपक्रम के कार्यों का बहुत विस्तार हो जाता है तो समस्त कार्यों को एक प्रबन्धक द्वारा किया जाना असंभव होता है। प्रत्येक प्रबन्धक का प्रबन्ध क्षेत्र सीमित ही हो सकता है। अतः कार्य की अधिकता के कारण कार्य को विभिन्न व्यक्तियों एवं प्रबन्धकों में बाँटना आवश्यक हो जाता है। क्रियात्मक संगठन में प्रत्येक कार्य छोटे-छोटे भागों में बाँट दिया जाता है। कार्य के प्रत्येक छोटे भाग के लिए विशिष्ट ज्ञान रखने वाले व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है। यह विशिष्ट ज्ञान रखने वाला व्यक्ति अपने संबंधित कार्य को करवाने के लिए अधीनस्थों को आदेश एवं निर्देश दे सकता है। वह अपने कार्य के निष्पादन सम्बन्धी पूरे अधिकार रखता है|

एल. के. जॉनसन “क्रियात्मक संगठन यह संगठनात्मक व्यवस्था है जिसमे अधिकार की रेखाएँ कई क्रियात्मक विशेषज्ञों के मध्य से होती हुई प्रत्येक श्रमिक तक पहुँचती है। अधिकार का प्रत्येक स्तर योजना एवं अपने अधीनस्थों के सम्पूर्ण नहीं बल्कि कुछ कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है।

“क्रियात्मक संगठन के विकास का श्रेय वैज्ञानिक प्रबन्ध के जन्मदाता एफ. डब्ल्यू टेलर को दिया जाता है। उन्होंने संगठन के इस प्रारूप को ‘क्रियात्मक फोरमैनशिप के नाम से पुकारा है।

क्रियात्मक फोरमैनशिप पद्धति में कुल आठ अधिकारियों की, चार कार्यालय स्तर पर तथा चार शॉप स्तर पर, नियुक्त किये जाते है।

Collagestudy ये अधिकारी निम्न होते हैं–

(1) कार्यालय लिपिक :- यह अधिकारी दैनिक कार्यक्रम की योजना बनाता है तथा क्रियाओं के क्रम का निर्धारण करता है।

(2) संकेत कार्ड लिपिक :- यह अधिकारी प्रत्येक कार्य के लिए संकेत कार्ड तैयार करता है जो विभिन्न टोली नायकों के पास पहुँचाए जाते हैं।

(3) समय एवं लागत लिपिक :- यह अधिकारी प्रत्येक क्रिया में लगने वाले समय तथा लागत के संबंध में पूर्ण विवरण रखने हेतु समय एवं लागत टिकट तैयार करके विभिन्न नायकों को भेजता है।

(4) अनुशासक :- यह अधिकारी कारखाने के प्रत्येक विभाग में उत्पन्न विवादों को निपटाने, अनुशासन बनाए रखने तथा शांति स्थापित करने हेतु आवश्यक कार्य करता है।

(5) टोली नायक :-यह अधिकारी श्रमिकों को आवश्यक सामग्री, सूचनाएँ एवं मार्गदर्शन प्रदान करता है तथा निर्धारित योजना के अनुसार कार्य लेता है।

(6) गति नायक :- यह अधिकारी श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि करने केउद्देश्य से कार्य की गति का निर्धारण करता है. कार्यविधि का प्रशिक्षण देता है तथा प्रमाणित समय में कार्य को पूरा किये जाने का ध्यान रखता है।

(7) जीर्णोद्धार नायक : यह अधिकारी मशीनों व उपकरणों की सफाई, तेल,मरम्मत आदि की व्यवस्था करता है तथा इनके रखरखाव का पूरा ध्यान रखता है।

(8) निरीक्षक :- यह कारखाने में तैयार माल अथवा वस्तु की किस्म, गुणवत्ता आदि की जाँच करता है तथा प्रमाणित किस्म को बनाए रखता है।

क्रियात्मक संगठन की प्रमुख विशेषताएँ निम्न है –

(1) इस प्रकार के संगठन में प्रत्येक कार्य को कई भागों में बाँटा जाता है।

(2) इसमें प्रत्येक विशिष्ट कार्य के लिए एक विशेषज्ञ होता है।

(3) इसमें विशेषज्ञ रेखा प्रबन्धकों की स्थिति में होते है अर्थात् विशेषज्ञ स्वयं हीआदेश एवं निर्देश देने का अधिकार रखते हैं।

(4) प्रत्येक निर्णय लेने के पूर्व विशेषज्ञों से परामर्श लेना आवश्यक होता है।

(5) इसमें प्रत्येक विशेषज्ञ केवल अपने विशिष्ट क्षेत्र के संबंध में ही आदेश एवं निर्देश दे सकता है।क्रियात्मक संगठन के लाभ:-

क्रियात्मक संगठन के प्रमुख लाभ अग्र प्रकार है-

(1) संगठन संरचना में विशेषज्ञों का पूरा-पूरा लाभ उठाया जा सकता है।

(2) इसमें अधिकारियों पर से विशिष्ट तकनीकी मामलों के बोझ को कम किया जा सकता है।

(3) इसमें प्रशिक्षण का कार्य सुविधाजनक हो जाता है।

(4) इसमें निर्णय भी शीघ्र लिये जा सकते हैं। साथ ही, निर्णयों का क्रियान्वयन एवं नियंत्रण भी सरल हो जाता है। निर्णयों में एकरूपता लायी जा सकती है।

(5) कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

(6) यह संगठन लोचपूर्ण होता है। इसमें परिवर्तनों का समायोजन करना सरल होता है।

(7) विशिष्टीकरण के कारण किस्म, कीमत व सेवाओं में सुधार होता है, जिससे संस्था की प्रतिस्पर्धी स्थिति में सुधार हो जाता है।

(8) इस प्रारूप में प्रबन्ध सत्ता सर्वोच्च व्यक्ति के पास केन्द्रित न होकर विभिन्न विशेषज्ञों में बंटी हुई होती है अतः एकाकी नियंत्रण के दोष समाप्त हो जाते हैं।

क्रियात्मक संगठन के दोष :– लाभों के साथ-साथ क्रियात्मक संगठनों में कुछदोष भी विद्यमान हैं। ये निम्न प्रकार से हैं

(1) क्रियात्मक संगठन संरचना में विभागों तथा उप-विभागों की क्रियाओं में समन्वय करना कठिन होता हैं। ग्ल्यूक के अनुसार, “समन्वय की लागत क्रियात्मक विभागों के बीच ऊँची रहती है।

(2) यह संगठन आदेश की एकता के सिद्धान्त के विरूद्ध है। इसमें परस्परव्यापी अधिकार सत्ता के दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इसमें एक कर्मचारी को अनेक अधिकारियों के आदेशों का पालन करना होता हैं। अतः वह भ्रमित हो जाता है।

(3) आदेशों की एकता समाप्त हो जाने से असफलता की दशा में उत्तरदायित्व का निर्धारण करना कठिन हो जाता है।

(4) यह संगठन संरचना विशेषज्ञों का निर्माण तो करती है, किन्तु सभी क्षेत्रों में निपुण सामान्य प्रबन्धकों के विकास में बाधक सिद्ध होती हैं।

(5) ऐसे संगठनों के अधीनस्थों में अनुशासन बनाए रखना भी कठिन हो जाता हैं।

(6) इसमें उत्तरदायित्व से बचने की प्रवृत्ति विकसित होती है।

(7) विभागों के मध्य संघर्ष ज्यादा होते हैं। इससे कर्मचारियों का मनोबल भी गिरता है।

(8) यह प्रारूप कागजी कार्यवाही को बढ़ाता है तथा निर्णयन में देरी उत्पन्न करता है। छोटे-छोटे कार्यों के लिए आदेश निकालने पड़ते हैं। इससे कार्यों में विलम्ब होता है।

(9) यह प्रायः अधीनस्थों के कार्यभार को बढ़ा देता है।

(10) यह प्रारूप विशेषज्ञों की तुलना में सामान्य प्रबन्धकों के महत्व को कम कर देता है।

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