आव्यूह (मैट्रिक्स) संगठन :- सह अनुकूली संगठन ढांचे का दूसरा प्रकार है. जिसका उद्देश्य स्वायत्त प्रोजेक्ट संगठन और कार्यात्मक विशिष्टीकरण के लाभों को एक साथ प्राप्त करना होता है। मैट्रिक्स संगठन के ढांचे में कार्यात्मक विभाग होते है। जिनके विभिन्न प्रोजेक्टों में काम करने के लिए विशिष्ट कर्मचारी पूर्णकालिक आधार पर प्रतिनियुक्त किए जाते हैं। ये कर्मचारी एक से प्रोजेक्टों में प्रोजेक्ट प्रबंधक के व्यापक निर्देशन व पथ प्रदर्शन में काम करते हैं। जब प्रोजेक्ट का काम पूरा हो जाता है, तब उसमें लगे व्यक्ति अपने कार्यात्मक विभागों को वापस चले जाते है जहां से उन्हें फिर किसी अन्य प्रोजेक्ट में भेज दिया जाता है। यह व्यवस्था उन स्थितियों में उपयुक्त पाई जाती है जहां संगठन ठेके (contract) वाले प्रोजेक्ट कार्य में लगा होता है और अनेक प्रोजेक्ट प्रबंधक होते हैं। जैसे कि किसी बडी निर्माण कम्पनी या किसी इंजीनियरीरिंग फर्म की स्थिति में।
यह क्रियात्मक संगठनात्मक ढाँचे से किस तरह भिन्न है ?
मैट्रिक्स संरचना और क्रियात्मक संगठन के बीच का अंतर मुख्य रूप से उनके संरचित और प्रबंधित होने के तरीके पर निर्भर करता है। कई उत्पाद समूहों के साथ पैमाने पर महत्वपूर्ण संगठनों के लिए, एक मैट्रिक्स संरचना प्रबंधन उद्देश्य के लिए आदर्श है। यदि संगठन छोटा या मध्यम पैमाने पर है और इसमें कम विविध कार्य हैं. तो एक क्रियात्मक संगठन अपनाना उचित है। आदेश की उचित श्रृंखला और संसाधनों के प्रभावी आवंटन के कारण उच्च कर्मचारी प्रेरणा और लागत बचत होती है। इस प्रकार संगठन संरचना का चयन देखभाल के साथ किया जाना चाहिए |
अनौपचारिक संगठन के लाभ –
1. अनौचारिक संगठन, औपचारिक संगठनों के पूरक होते हैं।
2. ये कर्मचारियों को सन्तुष्टि प्रदान करते हैं।
3. ये संगठन कर्मचारियों को कार्य के प्रति प्रेरणा प्रदान करते हैं।
4. ऐसे संगठनों में सहयोग की भावना अधिक होती है।
5. ये संगठन निर्बाध सन्देशवाहन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है।
6. संगठनों में कर्मचारियों के मध्य आपसी सम्बन्ध मधुर होते हैं।
7. संगठनों में कर्मचारी अपनी अधिकतम कार्य क्षमता का उपयोग करते हैं।
औपचारिक संगठन के प्रमुख लाभ :–Collagestudy
1. सत्ता, अधिकारों, अवस्थितियों, दायित्वों एवं उत्तरदयेता के स्पष्ट रूप से परिभाषित होने से कार्य निष्पादन कुशलता से होता है।
2. इसमें किसी कार्य के छूट जाने अथवा अतिछादन की स्थिति उत्पन्न नहीं होती।
3. इसमें अन्र्त व्यक्तिगत टकराहट न्यूनतम रह जाती है।
4. इसमें कोई भी व्यक्ति अपनी असफलता का दोषारोपण किसी अन्य व्यक्ति पर नहीं कर सकते हैं।
5. इसमें विभिन्न व्यक्तियों एवं अवस्थितियों के मध्य सम्बन्धों को संगठनात्मक चार्ट के माध्यम से सुगमता से दर्शाया जा सकता है।
6. औपचारिक संगठन से संगठनों के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
7. इसमें प्रबन्ध के विभिन्न सिद्धान्तों को अपनाने के फलस्वरूप संगठनात्मक कार्यकुशलता में वृद्धि होती हैं |
1. इसमें दायित्वों से बचना संभव नहीं है।
2. प्रभावशाली नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है।
3. शीघ्र संदेशवाहन संभव होता है।
4. कार्यों में समन्वय करना सुगम होता है।
5. लालफीताशाही नहीं पायी जाती है।
6. कर्मचारियों से प्रत्यक्ष सम्पर्क करना सुगम होता है।
7. यह संगठन को स्थायित्व प्रदान करता है।
8. एकात्म नियंत्रण बना रहता है।
9. प्रबन्धकीय योग्यता का विकास होता है।
10. यह संगठन संरचना का सरल प्रारूप है।
11. इस संगठन में पूर्णतः मितव्ययिता बनी रहती है।
12. इसमें लोच रहता है जिससे आवश्यकतानुसार परिवर्तन करना सरल होता है।
1. एकाकी तथा शीघ्रता में लिये गये निर्णय कभी-कभी हानिप्रद सिद्ध होते हैं।
2. यह सरचना एकतंत्रीय प्रणाली पर आधारित होती है अतः शीर्ष प्रबन्धक की अनुपस्थिति में संगठन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
3. ऐसे संगठनों में विशेषज्ञों की सेवाओं का लाभ नहीं उठाया जा सकता है।
4. नियोजन, अनुसंधान तथा विकास जैसे महत्वपूर्ण कार्यों का अभाव होता है।
5. पर्याप्त विशिष्टीकरण का अभाव रहता है।
6. बडे व्यवसायों के लिए यह संरचना अनुपयुक्त होती है।
7. प्रबन्धक पर दायित्वों का अधिक भार रहता है।
8. सामान्यत ऐसे संगठन अपरिवर्तनीय होते हैं।
9. अधीनस्थों में बहुत अधिक प्रबन्धकीय गुणों का विकास नहीं हो पाता है।
10. व्यक्तियों में कई प्रबन्धकीय गुणों की आवश्यकता होती है। ऐसे योग्य व्यक्तियों का मिलना कठिन होता है।
11. अधीनस्थों की कार्य स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है।