किसी देश के प्रतिकूल भुगतान संतुलन को ठीक करने हेतु मौद्रिक उपायों के साथ-साथ अमौद्रिक उपाय भी कारगार सिद्ध होते है। इन उपायों का भी उपयोग किया जाता है।
सामान्यतः निम्नांकित अमौद्रिक उपाय अपनाये जा सकते हैं: –
- आयातों के लिए अभ्यंश निर्धारण :- भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता को दूर करने हेतु अमौद्रिक उपार्यो में सर्वाधिक प्रचलित उपाय है। आयातों की मात्रा में कमी करना इन हेतु सरकार द्वारा आयात किये जाने वाले माल की अधिकतम सीमा निर्धारित की जाती है। उस से अधिक मात्रा का आयात नहीं किया जा सकता है। आयात की मात्रा ही नही निर्धारित की जाती उसकी भी निर्धारित करा ली जाती है। आयात कम होने से भुगतान हेतु कम विदेशी मुद्रा की आवश्यकता है तथा इससे भुगतान संतुलन को संतुलित किया जा सकता है। सामान्यतः आयात अभ्यंश का निर्धारण एक पक्षीय कोटा प्रणाली पर आधारित होता है। इसके अंतर्गत आयातीत माल की मात्रा निर्धारित कर अनुज्ञापत्र जारी किये जाते है। निर्धारित सीमा तक माल विश्व के किसी भी देश से मंगाया जा सकता है। यह वैश्विक कोटा कहलाता है। किन्तु कई बार केन्द्रीय सत्ता प्राय देश के अनुसार अभ्यंश निर्धारित किया जाता है। इसे आंवटित अभ्यंश प्रणाली कहा जाता है। कई बार सरकार एक निश्चित मात्रा के पश्चात् आयात करने पर प्रतिबन्ध नहीं लगती है, किन्तु आयात किये जाने वाले माल को महंगा करने हेतु आयात कर की दर को बढ़ाया जाता है। इससे आयात की मात्रा सीमित हो जाती है।
- प्रशुल्क की दर में वृद्धि :- प्रतिकूल भुगतान संतुलन को संतुलित करने हेतु आयात की जाने वाली वस्तुओं पर लगने वाले प्रशुल्क की दरों में वृद्धि की जाती है। फलस्वरूप आयात महंगे हो जाते है एवं आयात की मांग कम हो जाती है। निर्यात की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा में वृद्धि होती है तथा प्रतिकूल भुगतान संतुलन ठीक होता है।
- निर्यात प्रोत्साहन :- प्रतिकूल भुगतान संतुलन को ठीक करने हेतु एक ओर आयात कम करने के प्रयास किये जाते है तो दूसरी ओर निर्यात संवर्द्धन हेतु भी कार्यक्रम पारंभ किये जाते है। इस हेतु विदेशों में स्वदेशी वस्तुओं की मांग सृजन हेतु प्रयास किये जाते है। निर्यात करों कटौती की जाती है। देश में निर्यात आधारित ईकाइयां स्थापित की जाती है। निर्यात इकाइयों को माल एवं मशीनरी क्रय करने हेतु सहायता प्रदान की जाती है। आयात प्रतिस्थापन के प्रयास भी जाते है।
- पर्यटन पर विशेष जोर: – देश में विदेशी मुद्रा की मात्रा में वृद्धि हेतु पर्यटकों कोआमंत्रित किया जाता है। उनके लिए विशेष प्रोत्साहन योजनाएं चलाई जाती है । जितनी अधिक मात्रा में विदेशी पर्यटक देश में आते है उतनी ही अधिक विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। इससे भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता दूर करने में सहायता मिलती है। इस प्रकार किसी देश के प्रतिकूल भुगतान संतुलन को दूर करने हेतु मौद्रिक एवं अमौद्रिक उपाय अपनाएं जाते है। अर्थव्यवस्था की स्थिति एवं भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता के कारणों के आधार पर कौन से उपाय अपनाए जाय यह निश्चित किया जाता है। अधिकांशतः भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता दूर करने हेतु मौद्रिक उपायों की तुलना में अमौद्रिक उपाय अधिक व्यावहारिक होते है, तथा इनका प्रभाव तुरन्त दिखाई देता है। मौद्रिक उपार्यो में मुद्रा अवमूल्यन का प्रयोग सामान्य परिस्थिति में नहीं किया जाता है जहां तक प्रश्न विकासशील देशों का है प्रतिकूल भुगतान संतुलन को संतुलित करने हेतु नये बाजारों की खोज जैसे निर्यात संवर्द्धन से संबंधित उपाय अधिक उपयोगी सिद्ध होते है ।